उनकी किताब "सराबों का सफ़र" से एक ग़ज़ल आप सब की नज्र-
उसकी शफ़क़त का हक़ यूँ अदा कर दिया
उसको सजदा किया और खुदा कर दिया
उम्र भर मैं उसी शै से लिपटा रहा
जिस ने हर शै से मुझको जुदा कर दिया
इस लिए ही तो सर आज नेज़ों पे है
हम से जो कुछ भी उसने कहा कर दिया
दिल की तकलीफ़ जब हद से बढ़ने लगी
दर्द को दर्दे-दिल कि दवा कर दिया
ऐसे फ़नकार की सनअतों को सलाम
जिस ने पत्थर को भी देवता कर दिया
आप का मुझपे एहसान है दोस्तो
क्या था मैं, आपने क्या से क्या कर दिया
कौन गुज़रा दरख्तों को छू कर 'नफ़स'
ज़र्द पत्तों को किसने हरा कर दिया
शफ़क़त=मेहरबानी,सनअतों=कारीगरी