tag:blogger.com,1999:blog-3037144839326735283.post4566594169767206031..comments2024-02-09T13:59:35.591+05:30Comments on आज की ग़ज़ल : आठवीं क़िस्त- कौन चला बनवास रे जोगीसतपाल ख़यालhttp://www.blogger.com/profile/18211208184259327099noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-3037144839326735283.post-72381913435554738432010-05-26T10:33:00.888+05:302010-05-26T10:33:00.888+05:30विनोद कुमार पांडेय जी
कुमार ज़ाहिद जी
कवि कुलवंत स...विनोद कुमार पांडेय जी<br />कुमार ज़ाहिद जी<br />कवि कुलवंत सिंह जी<br />गौतम सचदेव जी<br />चैन सिंह शेखावत जी<br /><br />सभी ने इस तरही में अच्छे शे'र कहे हैं.<br /><br />इस प्रस्तुति के लिए शुक्रिया!!Sulabh Jaiswal "सुलभ"https://www.blogger.com/profile/11845899435736520995noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3037144839326735283.post-25582308470838804322010-05-25T23:40:07.343+05:302010-05-25T23:40:07.343+05:30विनोद कुमार पांडेय जी का 'अपनों ने ही गर्दन का...विनोद कुमार पांडेय जी का 'अपनों ने ही गर्दन काटी देख ज़रा इतिहास रे जोगी', कुमार ज़ाहिद का ' चाहे जिसकी चाह छुपी हो है मिथ्या संन्यास रे जोगी' कवि कुलवंत सिंह का 'रब के दरस को मारा फिरता कैसी है यह प्यास रे जोगी' तथा गौतम सचदेव जी और चैन सिंह शेखावत जी की ग़ज़लें छा गयीं।तिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3037144839326735283.post-21920314041408990142010-05-25T21:46:29.794+05:302010-05-25T21:46:29.794+05:30naye shayar vinod samet sari ghazale bhi shreshtha...naye shayar vinod samet sari ghazale bhi shreshthata ki paramparaa ko hi aage barhane vali hai. dhanyvaad...''aaj ki ghazal'' ko.girish pankajhttps://www.blogger.com/profile/16180473746296374936noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3037144839326735283.post-90880186532367626612010-05-25T20:30:54.613+05:302010-05-25T20:30:54.613+05:30खाकसार की नजर में यह मुशायरा काफी कामयाब रहा है। अ...खाकसार की नजर में यह मुशायरा काफी कामयाब रहा है। अंतिम किस्त का इंतजार तो सबसे अधिक रहेगा लेकिन इससे पहले की सभी किस्तों में अच्छी ग़ज़लें आई हैं। प्रस्तुत किस्त में विनोद कुमार पांडेय<br />साहब का : <br /><br />अपनों ने ही गर्दन काटी<br />देख ज़रा इतिहास रे जोगी<br /><br />आज ग़रीबी के आगे तो<br />मंद पड़े उल्लास रे जोगी<br /> अच्छे लगे। <br /><br />कुमार ज़ाहिद साहब ने भी अच्छे शेर कहे हैं और यह तो अलग ही लगा: गिरह लगाकर याद रखे जो<br />उसका क्या विश्वास रे जोगी<br /><br />कवि कुलवंत सिंह जी का : <br /><br />धरती ढ़ूंढी,अंबर ढ़ूंढ़ा<br />उसको पाया पास रे जोगी<br />अच्छा है। <br />गौतम सचदेव जी, मुझे अफसोस हो रहा है कि मैं कारावास काफिए का इस्तेमाल क्यसों नहीं कर सका। बहुत अच्छा : <br />मुज़रिम ये उजले कपड़ों में<br />जाएँ न कारावास रे जोगी<br /><br />मठ के ऊपर भजन आरती<br />नीचे है रनिवास रे जोगी<br /><br />क़ातिल को ज़न्नत मिलती है<br />ख़ूनी यह विश्वास रे जोगी वाह-वाह ये शेर तो बहुत ही सामयिक और संजीदा है। <br />जोग रमाये जा पर जग का<br />मत कर सत्यानास रे जोगी बधाई। <br /><br />चैन सिंह शेखावत साहब भी अच्छा लिखते हैं : <br /><br />क्यों जाना बनवास रे जोगी<br />वो है इतने पास रे जोगी<br /><br />जीवन जिनसे जीत न पाया<br />अन्न वस्त्र आवास रे जोगी<br />सतपाल जी को बधाई। सभी शो'रा हज़रात को बधाईNavneet Sharmahttps://www.blogger.com/profile/17503086917617110754noreply@blogger.com