tag:blogger.com,1999:blog-3037144839326735283.post8836237982032408298..comments2024-02-09T13:59:35.591+05:30Comments on आज की ग़ज़ल : देवमणि पाण्डेय की ग़ज़लेंसतपाल ख़यालhttp://www.blogger.com/profile/18211208184259327099noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-3037144839326735283.post-16818253811911011562011-08-10T23:57:08.408+05:302011-08-10T23:57:08.408+05:30भाई देवमणि पाण्डेय जी की ग़ज़ल "खिली धूप में हू...भाई देवमणि पाण्डेय जी की ग़ज़ल "खिली धूप में हूँ उजालों में गुम हूँ" पढ़ी. अच्छी लगी. ग़ज़ल पढ़ के लगा कि किसी बहर और औजान के जानकर ने ग़ज़ल कही है. आखिर में बहरे मुतकारिब मुसम्मन बता कर इसका एहसास भी कराया गया है. लेकिन मिसरा "मेरे दोस्तों की मेहरबानियाँ हैं" बेबहर हो गया है. मेहरबानी में ह मुतहर्रिक नहीं है. लिहाज़ा मेहरबानी का वज़न मुफाईलुन न होकर फाइलातुन होता है. अतः मेहरबानियाँ का वज़न फ़ऊलुनफ़ऊ न होकर फ़ाइलुनमिफ़ा हो जाएगा. अगर मिसरा ऐसा होता "मेरे दोस्तो मेहरबानी तुम्हारी" तो वज़न के ऐतबार से मिसरा ठीक हो जाता.<br />कोई साधारण शायर होता तो मैं इतनी सारी बातें नहीं लिखता. लेकिन पाण्डेय जी एक मशहूर शायर हैं इसीलिए इतना कुछ कहना ज़रूरी समझता हूँ.<br />बहरहाल ये एक बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल है.<br />साकेत रंजन प्रवीर<br />saket07@rediffmail.comSaket Ranjan Praveernoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3037144839326735283.post-69579029679276174862010-02-09T16:44:37.721+05:302010-02-09T16:44:37.721+05:30Shukria Devmani ji
ye to aapka baRappan hai varna...Shukria Devmani ji<br /><br />ye to aapka baRappan hai varna hamara kya vajood.Apna aashirvaad dete rahiye .<br />regardsसतपाल ख़यालhttps://www.blogger.com/profile/18211208184259327099noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3037144839326735283.post-77308819154287992662010-02-09T16:25:09.730+05:302010-02-09T16:25:09.730+05:30आप सब सहृदय लोगों के इतने सुंदर और सार्थक कमेंट पढ...आप सब सहृदय लोगों के इतने सुंदर और सार्थक कमेंट पढ़कर मेरा हौसला बढ़ गया है। बहुत-बहुत शुक्रिया । आपने सच कहा- 'आज की ग़ज़ल'तो ग़ज़ल लेखन की कार्यशाला है । इस टीम के सभी सदस्यों को इस श्रेष्ठ कार्य के लिए बधाई ।<br /><br />देवमणि पाण्डेयdevmanipandey.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3037144839326735283.post-29420814772991422652010-02-06T19:15:27.965+05:302010-02-06T19:15:27.965+05:30ांअज आपके ब्लाग से उमदा गज़लें तो पढने को मिली ही म...ांअज आपके ब्लाग से उमदा गज़लें तो पढने को मिली ही मगर बहुत कुछ सीखने को भी मिला मुझ जैसे अनजान के लिये तो किसी खजाने से कम नही। देवमणि पाण्डेय जी जैसे गज़ल के उस्ताद को मैं कमेन्ट क्या दे सकती हूँ लाजवाब लगी निशब्द हूँ सतपाल जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद्निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3037144839326735283.post-47876412393288172562010-02-05T12:19:00.684+05:302010-02-05T12:19:00.684+05:30बहुत खूबसूरत गज़ल और दमदार आवाज ने इस गज़ल को मुक्क्...बहुत खूबसूरत गज़ल और दमदार आवाज ने इस गज़ल को मुक्क्मल बना दिया। देवमणि जी की गजलों की जितनी भी तारीफ़ की जाय कम है।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3037144839326735283.post-8789711761122464132010-02-04T23:37:23.773+05:302010-02-04T23:37:23.773+05:30सतपाल जी,
आभारी हूँ, आपने मेरे सामने खड़े एक प्रश...सतपाल जी, <br />आभारी हूँ, आपने मेरे सामने खड़े एक प्रश्न का सहजता से उत्तर दे दिया है। वस्तुत: भाई देवमणि जी की रचनाओं पर बात करने से पहले मैं अपने ही प्रश्न के उत्तर की तलाश में उलझ गया और इतनी प्यारी ग़ज़लों पर कुछ भी नहीं कहा। <br />ग़ज़लें तो माशाअल्लाह, एक से बढ़कर एक शेर हैं किस किस की तारीफ करूँ?<br /><br />अगर किसी पर दिल आ जाए इसमें दिल का दोष नहीं<br />अच्छा चेहरा देखके हम भी मर जाते हैं कभी कभी<br /><br />पर तो एक शेर कहने से रुक नहीं पा रहा कि:<br />सजधज के कोई आये, और आप नहीं देखें,<br />ये ज़ुल्म है एै लोगों, हद से भी बहुत आगे।<br />अब भाई मरना, गिरना तो चलता रहता है सारी उम्र, कभी किसी पे कभी किसी पे। क्यूँ न उसपर मरा जाये जो मरने पर सम्हाल लेता है।<br /><br />महर्षि साहब की सात किताबों के बारे में सुना है, अगर आप प्राप्त करने का जरिया बता सकें तो मेहरबानी होगी।तिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3037144839326735283.post-63013612697527631622010-02-04T21:00:48.651+05:302010-02-04T21:00:48.651+05:30umda gazalen..umda gazalen..kavi kulwanthttps://www.blogger.com/profile/07096995143341561602noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3037144839326735283.post-24818823805555059302010-02-04T18:44:00.128+05:302010-02-04T18:44:00.128+05:30तिलक जी,
अगर हम मात्रिक छंद के हवाले से बात करें त...तिलक जी,<br />अगर हम मात्रिक छंद के हवाले से बात करें तो कोई एक मिसरा पकड़ लीजिए जो लय में लगे और फिर शुरू हो जाइए, जो हो भी रहा है और फिर मात्राएँ गिन कर निपटा दीजिए लेकिन मैं किसी को ऐसा करने के लिए कहूँगा नहीं।<br />निर्धारित बहरों में लिखें तो ज़्यादा सही है लेकिन एक बात और है बहरे-मुतदारिक की मुज़ाहिफ़ शक्लें और मात्रिक छंदों में ज़रा सा फ़र्क है और एक बात और भी है कि मात्रिक छंदों में भी मिठास बराबर है। मैं तो ये कहता हूँ कि आप मात्रिक छंद चुनो लेकिन जो गुरू-लघु की तरकीब भी follow कर लो तो सोने पे सुहागा हो जाएगा और शब्दों में लय और उभर कर सामने आएगी।<br />खेतों को चिड़ियां चुग जातीं बीते कल की बात हुई<br />अब तो मौसम भी फ़सलों को चर जाते हैं कभी कभी<br />अब इसमें जो scheme गुरू-लघु की पहले मिसरे में है वो अगर दूसरे में भी हो मज़ा दूना हो जाएगा। लेकिन ये भी सही है और इस पर आर.पी शर्मा जी जैसे अरूज़ी भी मोहर लगाते हैं और उनका कहा तो हमारे लिए हर्फ़े-आख़िर है और देव मणि पांडेय जी एक निपुण ग़ज़लकार हैं और गीतकार भी सो उनका लय के साथ नाता तो बहुत गहरा है और रिज़वी साहब की आवाज़ उनकी ग़ज़लों को चार चाँद लगाती है।<br />धन्यवादसतपाल ख़यालhttps://www.blogger.com/profile/18211208184259327099noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3037144839326735283.post-44784308245690751252010-02-04T18:17:10.134+05:302010-02-04T18:17:10.134+05:30सतपाल भाई, मुझे ग़ज़ल का ज्ञान कम है इसलिये मेरे ल...सतपाल भाई, मुझे ग़ज़ल का ज्ञान कम है इसलिये मेरे लिये संशय की एक स्थिति निर्मित हो गयी है।<br />क्या दो पंक्तियों का कोई भी छंद जिसमें रुक्न (मूल या जिहाफ़ शक्ल में) न हों ग़ज़ल कहा जा सकता है? <br />मेरा मानना है कि अपनी सुविधा के अनुसार इसे परिभाषित करने का प्रचलन बढ़ गया है। अगर मैं कहूँ कि हिन्दी ग़ज़ल जैसा कुछ है ही नहीं तो विवाद खड़ा हो जायेगा। ऐसा कहने का मेरा आधार यह है कि हिन्दी काव्य शास्त्र में ग़ज़ल संबंधी नियम अभी भी नहीं हैं और जब तक काव्य शास्त्र में ग़ज़ल के नियम न आ जायें, ‘हिन्दी ग़ज़ल’ को भी हिन्दी शब्दावली का उपयोग करते हुए देवनागरी लिपि में लिखी ग़ज़ल कहना पर्याप्त होगा। थोड़ा सरल कहने के लिये इसे यदि ‘हिन्दी ग़ज़ल’ कहा भी जाता है तो अनावश्यक रूप से हिन्दी छंदो से इसका संबंध जोड़ना उचित नहीं है। ग़ज़ल प्रचलित नियमों के अनुसार केवल मात्रिक ही होती है, हॉं कुछ वर्णिक छंद ऐसे हैं जिनका दीर्घ-हृस्व क्रम किसी बह्र के समान है लेकिन ये छंद एक विश्ोष स्थिति पैदा करते हैं जिसमें वर्णिक छंद तो बह्र में फिट हो जाता है लेकिन उस बह्र में कहा गया हर शेर वर्णिक छंद में फिट हो जाये ये जरूरी नहीं । मात्रिक छंदों में विपरीत स्थिति है। उदाहरणस्वरूप ‘दोहा’ के नियम का पालन करते हुए बह्र तो हो सकती है लेकिन हर दोहा उस बह्र पर फिट हो जाये ये जरूरी नहीं। दोहा चरण की कुल मात्राओं की गणना पर आधारित होता है जबकि बह्र रुक्न-ब-रुक्न मात्रिक-क्रम पर। <br />अर्तजाल की सुविधाओं का उपयोग करते हुए इस विषय पर ऑनलाईन कान्फ्रेंस द्वारा एकबार हिन्दी ग़ज़ल को प्रामाणिक स्वरूप देना अब संभव भी हो गया है और आवश्यक भी।तिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3037144839326735283.post-31447403065326139732010-02-04T18:17:09.399+05:302010-02-04T18:17:09.399+05:30दमदार रचनाएँ और उतनी ही असरदार आवाज...और क्या चाहि...दमदार रचनाएँ और उतनी ही असरदार आवाज...और क्या चाहिए...आपने तो समां बाँध दिया...शुक्रिया सतपाल जी बहुत बहुत शुक्रिया...<br />नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3037144839326735283.post-82655786687244706042010-02-04T17:27:05.413+05:302010-02-04T17:27:05.413+05:30इतना सब देख सुन पढ़ सीख और समझ कर यदि कहने लायक कोई...इतना सब देख सुन पढ़ सीख और समझ कर यदि कहने लायक कोई एक शब्द पास बचा रहता है तो वह है....कोटिशः आभार....<br />आनंद आ गया..और क्या कहूँ...रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.com