Thursday, September 30, 2021

मुख्य बहरें और उनके उदाहरण- Part 1

 

   आज हम ग़ज़ल की बहरों को लेकर चर्चा आरम्भ कर रहे हैं | आपके प्रश्नों का स्वागत है |

आठ बेसिक अरकान:

फ़ा-इ-ला-तुन (2-1-2-2)
मु-त-फ़ा-इ-लुन(1-1-2-1-2)
मस-तफ़-इ-लुन(2-2-1-2)
मु-फ़ा-ई-लुन(1-2-2-2)
मु-फ़ा-इ-ल-तुन (1-2-1-1-2)
मफ़-ऊ-ला-त(2-2-2-1)
फ़ा-इ-लुन(2-1-2)
फ़-ऊ-लुन(1-2-2)
***

फ़ारसी मे 18 बहरें:

1.मुत़कारिब(122x4) चार फ़ऊलुन
2.हज़ज(1222x4) चार मुफ़ाईलुन
3.रमल(2122x4) चार फ़ाइलातुन
4.रजज़:(2212) चार मसतफ़इलुन
5.कामिल:(11212x4) चार मुतफ़ाइलुन
6 बसीत:(2212, 212, 2212, 212 )मसतलुन फ़ाइलुऩx2
7तवील:(122, 1222, 122, 1222) फ़ऊलुन मुफ़ाईलुन x2
8.मुशाकिल:(2122, 1222, 1222) फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
9. मदीद : (2122, 212, 2122, 212) फ़ाइलातुन फ़ाइलुनx2
10. मजतस:(2212, 2122, 2212, 2122) मसतफ़इलुन फ़ाइलातुनx2
11.मजारे:(1222, 2122, 1222, 2122) मुफ़ाइलुन फ़ाइलातुनx2 सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ सूरत में.
12 मुंसरेह :(2212, 2221, 2212, 2221) मसतफ़इलुन मफ़ऊलात x2 सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ सूरत में.
13 वाफ़िर : (12112 x4) मुफ़ाइलतुन x4 सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ सूरत में.
14 क़रीब ( 1222 1222 2122 ) मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलातुन सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ सूरत में.
15 सरीअ (2212 2212 2221) मसतफ़इलुन मसतफ़इलुन मफ़ऊलात सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ सूरत में.
16 ख़फ़ीफ़:(2122 2212 2122) फ़ाइलातुन मसतफ़इलुन फ़ाइलातुन सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ सूरत में .
17 जदीद: (2122 2122 2212) फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन मसतफ़इलुन सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ सूरत में.
18 मुक़ातज़ेब (2221 2212 2221 2212) मफ़ऊलात मसतफ़इलुनx2 सिर्फ़ मुज़ाहिफ़ सूरत में.
19. रुबाई

***

1.बहरे-मुतका़रिब:

1.मुत़कारिब(122x4) मसम्मन सालिम
(चार फ़ऊलुन )

*सितारों के आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तिहां और भी हैं.

*कोई पास आया सवेरे-सवेरे
मुझे आज़माया सवेरे-सवेरे.

ये दोनों शे'र बहरे-मुतकारिब में हैं और ये बहुत मक़बूल बहर है. बहर का सालिम शक्ल में इस्तेमाल हुआ है यानि जिस शक्ल में बहर के अरकान थे उसी शक्ल मे इस्तेमाल हुए.ये मसम्मन बहर है इसमे आठ अरकान हैं एक शे'र में.तो हम इसे लिखेंगे: बहरे-मुतका़रिब मफ़रद मसम्मन सालिम.अगर बहर के अरकान सालिम या शु्द्ध शक्ल में इस्तेमाल होते हैं तो बहर सालिम होगी अगर वो असल शक्ल में इस्तेमाल न होकर अपनी मुज़ाहिफ शक्ल में इस्तेमाल हों तो बहर को मुज़ाहिफ़ कह देते हैं.सालिम मतलब जिस बहर में आठ में से कोई एक बेसिक अरकान इस्तेमाल हुआ हो. हमने पिछले लेख मे आठ बेसिक अरकान का ज़िक्र किया था जो सारी बहरों का आधार है.मुज़ाहिफ़ मतलब अरकान की बिगड़ी हुई शक्ल.जैसे फ़ाइलातुन सालिम शक्ल है और फ़ाइलुन मुज़ाहिफ़. सालिम शक्ल से मुज़ाहिफ़ शक्ल बनाने के लिए भी एक तरकीब है जिसे ज़िहाफ़ कहते हैं.तो हर बहर या तो सालिम रूप में इस्तेमाल होगी या मुज़ाहिफ़ मे, कई बहरें सालिम और मुज़ाहिफ़ दोनों रूप मे इस्तेमाल होती हैं. अरकानों से ज़िहाफ़ बनाने की तरकीब बाद में बयान करेंगे.हम हर बहर के मुज़ाहिफ़ और सालिम रूप की उदाहरणों का उनके गुरु लघू तरकीब से , अरकानों के नाम देकर समझेंगे जो मैं समझता हूँ कि आसान होगा , नहीं तो ये खेल पेचीदा हो जाएगा.

बहरे-मुतका़रिब मुज़ाहफ़ शक्लें:
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊ (फ़ऊ या फ़+अल)
122 122 122 12
गया दौरे-सरमायादारी गया
तमाशा दिखा कर मदारी गया.(इक़बाल)
दिखाई दिए यूँ कि बेखुद किया
हमें आप से भी जुदा कर चले.(मीर)(ये महज़ूफ ज़िहाफ़ का नाम है)

नबर दो:
फ़ऊल फ़ालुन x 4
121 22 x4
(सौलह रुक्नी)

ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल दुराये नैना बनाये बतियाँ
कि ताब-ए-हिज्राँ न दारम ऐ जाँ न लेहु काहे लगाये छतियाँहज़ार राहें जो मुड़के देखीं कहीं से कोई सदा न आई.
बड़ी वफ़ा से निभाई तूने हमारी थोड़ी सी बेवफ़ाई.नंबर तीन:फ़ऊल फ़ालुन x 2
121 22 x 2
वो ख़त के पुरज़े उड़ा रहा था.
हवाओं का रुख दिखा रहा था.
नंबर चार:फ़ालुन फ़ऊलुन x2
22 122 x2

नै मुहरा बाक़ी नै मुहरा बाज़ी
जीता है रूमी हारा है काज़ी (इकबाल)
नंबर पाँच:
फ़ाइ फ़ऊलुन
21 122 x 2

सोलह रुक्नी
21 122 x4

नंबर छ:22 22 22 22
चार फ़ेलुन या आठ रुक्नी.
इस बहर में एक छूट है इसे आप इस रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं.

211 2 11 211 22
दूसरा, चौथा और छटा गुरु लघु से बदला जा सकता है.

एक मुहव्ब्त लाख खताएँ
वजह-ए-सितम कुछ हो तो बताएँ.

अपना ही दुखड़ा रोते हो
किस पर अहसान जताते हो.(ख्याल)


नंबर सात:(सोलह रुक्नी)
22 22 22 22 22 22 22 2(11)
यहाँ पर हर गुरु की जग़ह दो लघु आ सकते हैं सिवाए आठवें गुरु के.
* दूर है मंज़िल राहें मुशकिल आलम है तनहाई का
आज मुझे अहसास हुआ है अपनी शिकस्ता पाई का.(शकील)

* एक था गुल और एक थी बुलबुल दोनों चमन में रहते थे
है ये कहानी बिल्कुल सच्ची मेरे नाना कहते थे.(आनंद बख्शी)

* पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने है.(मीर)
और..
एक ये प्रकार है
22 22 22 22 22 22 22
इसमे हर गुरु की जग़ह दो लघु इस्तेमाल हो सकते हैं.
नंबर आठ:
फ़ालुन फ़ालुन फ़ालुन फ़े.
22 22 22 2

अब इसमे छूट भी है इस को इस रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं
211 211 222
* मज़हब क्या है इस दिल में
इक मस्जिद है शिवाला है
अब मुद्दे की बात करते हैं आप समझ लें कि मैं संगीतकार हूँ और आप गीतकार या ग़ज़लकार तो मैं आपको एक धुन देता हूँ
जो बहरे-मुतकारिब मे है. आप उस पर ग़ज़ल कहने की कोशिश करें. इस बहर को याद रखने के लिए आप चाहे इसे :
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
(122 122 122 122)
या
छमाछम छमाछम छमाछम छमाछम
या
तपोवन तपोवन तपोवन तपोवन
कुछ भी कह लें महत्वपूर्ण है इसका वज़्न, बस...

1.बहरे- मुत़कारिब
(122x4)

(चार फ़ऊलुन )एक बहुत ही मशहूर गीत है जो इस बहर मे है वो है.
अ- के ले- अ -के -ले क- हाँ जा- र- हे -हो
(1 2 2 1 2 2 1 2 2 1 2 2)
मु- झे सा- थ ले -लो य -हाँ जा र -हे हो.
(1 2 2 1 2 2 1 2 2 1 2 2)

2 .
हज़ज मसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन(1222x4)
ये सबसे मक़बूल और आसान बहर है.शायर इस बहर से ही अमूमन लिखना सीखता है.
उदाहरण:
अँधेरे चंद लोगों का अगर मकसद नही होते
यहाँ के लोग अपने आप मे सरहद नहीं होते(द्विज)

हज़ारों ख्वाहिशे ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले.(गा़लिब)

नुमाइश के लिए गुलकारियाँ दोनों तरफ़ से हैं
लड़ाई की मगर तैयारियाँ दोनों तरफ़ से हैं
मै शायर हूँ ज़बां मेरी कभी उर्दू कभी हिंदी
कि मैने शौक़ से बोली कभी उर्दू कभी हिंदी( सतपाल ख्याल)2 हज़ज मसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ मक़सूर महज़ूफ़:
मफ़ऊल मफ़ाईल मुफ़ाईल फ़लुन या मफ़ाईल
22 11 22 11 22 11 2 2 (1)
या यूँ 22 11 22 11 22 11 22
उदाहरण:
गो हाथ मे जुंबिश नहीं हाथों मे तो दम है
रहने दो अभी साग़रो-मीना मेरे आगे.(गालिब)

रंज़िश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिए से मुझे छोड़के जाने के लिए आ.( फ़राज़)

अशआर मेरे यूँ तो ज़माने के लिये हैं
कुछ शे'र फ़कत तुमको सुनाने के लिए हैं.( जां निसार अखतर)

3 हज़ज मसम्मन मक़बूज़:
मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
1212 X4
ये बहुत ही सुंदर बहर है.
उदाहरण:
*सुना रहा है ये समां सुनी -सुनी सी दास्तां.

जवां है रात साकिया शराब ला शराब ला.
अभी तो मै जवान हूँ, अभी तो मै ज़वान हूँ.
4.हज़ज मसम्मन अशतर:
फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन
212 1222 212 1222
उदाहरण:
ज़िक्र उस परीवश का और फिर बयान अपना
बन गया रक़ीब आखिर था जो राज़दाँ अपना.(गालिब)

5.हज़ज अशतर मक़बूज़:
फ़ाइलुन मफ़ाइलुन फ़ाइलुन मफ़ाइलुन
212 1212 212 1212


6.हज़ज मुसद्द्स मक़सूर महज़ूफ़

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
1222 1222 122.
उदाहरण:
*तेरे बारे मे जब सोचा नहीं था
मै तनहा था मगर इतना नही था.

*अकेले हैम चले आऒ कहाँ हो
कहाँ आवाज़ दें तुमको कहाँ हो.

* मुसाफिर चलते-चलते थक गया है
सफर जाने अभी कितना पड़ा है.

* दरीचा बेसदा कोई नही है
अगरचे बोलता कोई नहीं है
7.मुसद्दस अख़रब मक़बूज़ मक़सूर महज़ूफ़ :
मफ़ऊलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन
222 212 122
या 2211 212 122
मिलती है ज़िंदगी कहीं क्या...

8. हज़ज मसम्मन अखरबमफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊल मुफ़ाईलुन
221 1222 221 1222
उदाहरण:
*हंगामा है क्योम बर्पा थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नही डाला चोरी तो नहीं की है.( अकबर अलाहाबादी)

3.बहरे-मुतदारिक मसम्मन सालिम:फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन(212 212 212 212 )

उदाहरण:

या ख़ुदा तुम रखो अब मेरी आबरू
ग़श न आए मुझे जब वो हों रूबरु.

आपको देखकर देखता रह गया
क्या कहूँ और कहने को क्या रह गया.
दौड़ती भागती सोचती ज़िंदगी
हर तरफ़ हर ज़गह हर गली ज़िंदगी.( ख्याल)

हर तरफ़ हर ज़गह बेशुमार आदमी
फिर भी तनहाइयों का शिकार आदमी.

सौलह रुक्नी:
212 x8

मसद्दस:
फ़ाइलुन X 3उदाहराण:
आज जाने की ज़िद न करो
यूँ ही पहलू मे बैठे रहो.
सारे सपने कहीं खो गए
हाय हम क्या से क्या हो गए.

तुम ये कैसे जुदा हो गए
हर तरफ़ हर ज़गह हो गए.
मुज़ाहिफ़ शक्लें:

1.फ़ालुन फ़ालुन फ़ालुन फ़ालुन22 x4
ये तरक़ीब मुतकारिब मे भी आती है.

2.फ़'इ'लुन .फ़'इ'लुन .फ़'इ'लुन .फ़'इ'लुन112 x4
और 112x8.
बहुत कम इस्तेमाल होता है
.
3.फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ा और फ़'212 212 212 2 (1)
किस के ख्वाबे-निहां से है आई
गुलबदन तू कहाँ से है आई.

4.फ़ाइलुन फ़'इल फ़ाइलुन फ़'इल
212 12 212 12

5. 22 x 8 या 112x 8

***
4.
बहरे-रमल( मसम्मन सालिम)1.फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
2122 x4
( बहुत कम इस्तेमाल होती है )

मुज़ाहिफ़ शक्लें:1.फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
2122 2122 2122 212
सबसे आसान और मक़बूल बहर है.हर शायर इस्तेमाल करता है.

उदाहरण:
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल मे है
देखना है जोर कितना बाज़ु-ए-कातिल मे है.
हो गई है पीर परबत सि पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए.(दुशयंत)
आपकी कश्ती मे बैठे ढूँढते साहिल रहे

सरफ़रोशी का वो जज़्बा अब भि अपने दिल मे है
खौलता है खून हरदम चुप नहीं बैठेंगे हम.( ख्याल)
चुपके-चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
हम को अब तक आशिकी का वो ज़माना याद है.
2.फ़ाइलातुन .फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
(2122 2122 212 )

उदाहरण:
रंज़ की जब ग़ुफ़्तगू होने लगी
आप से तुम तुम से तू होने लगी.कोई दिन गर ज़िंदगानी और है
अपने जि मे हमने ठानी और है.
जब सफ़ीना मौज़ से टकरा गया
नाख़ुदा की भी खु़दा याद आ गया.

दिल गया तुमने लिया हम क्या करें
जाने वाली चीज़ का ग़म क्या करें.3.
फ़ाइलातुन फ़'इ'लातुन फ़'इ'लातुन फ़'लान(फ़ालुन)
2122 1122 1122 112
या
2122 1122 1122 22
उदाहरण:

मुझसे मिलने को वो करता था बहाने कितने
अब ग़ज़ारेगा मेरे साथ ज़माने कितने.

अपनी आँखों के समंदर मे उतर जाने दे
तेरा मुज़रिम हूँ मुझे डूब के मर जाने दे.
रस्मे-उल्फ़त को निभाएँ तो निभाएँ कैसे
हर तरफ़ आग है दामन को बचाएँ कैसे
मुझको इस रात की तनहाई मे आवाज़ न दो
जिसकी आवाज़ रुलादे मुझे वो साज़ न दो.
इतना टूटा हूँ कि छूने से बिखर जाउंगा...
4. बहरे-शिकस्ता.फ़'इ'लात फ़ाइलातुन फ़'इ'लात फ़ाइलातुन
1121 2122 1121 2122

उदाहरण:
ये न थी हमारी किस्मत कि विसाले यार होता
अगर और जीते रहते यही इंतज़ार होता


Tuesday, September 28, 2021

Bhagat Singh jayanti 2021- Ek Nazm



 भगत सिंह

कहाँ रखोगे
आप इस अंगार को?
लाल झंडों में
या भगवा वस्त्रों में
या तिरंगों में/
क्या बना पाओगे तेग
ढालकर फौलाद इस पर?
आप इस अंगार का
सेंक सह सकोगे?
रख सकोगे इसको
अपनी जेब में
अंगार है यह
गुलाब नहीं है/
क्या करोगे?
यह समता की बात करेगा
आप कहेंगे कामरेड है
हो सकता है कह दो कि
यह दहशतगर्द है
फैंको इस अंगार को
दौलत के दरिया में
या फिर दफ़ना दो
इसको तुम खेतों में/
ध्यान रहे
कि बीज न बन जाये अंगारा
उग आये अंगारों
की फिर फ़स्ल कोई
उगने लग जायें बंदूकें
खेतों में/
अंगार है यह
सुर्ख और महका हुआ
क्या करोगे आप इस अंगार का??
आप इस पर फूल डालो
चुप रहो
आगे बढ़ो
ये शरारा
आपके किस काम का/

Monday, September 27, 2021

ग़ज़ल की बाबत : वीनस केसरी -ग़ज़ल लेखन के बारे में


प्रयागराज, उत्तर प्रदेश में पुस्तक व्यवसाय से जुड़े वीनस केसरी स्वयं युवा ग़ज़लकार है तथा न केवल ग़ज़ल की बारीकियों की गहरी समझ रखते हैं, आप हमेशा इस जानकारी को अन्य साथियों के साथ साझा करने के लिये भी तत्पर रहते हैं। जब अरूज़ की बात होती है, तो देवनागरी में इतने विस्तार के साथ ग़ज़ल के व्याकरण को सरल भाषा में प्रस्तुत करने के कारण वीनस केसरी की पुस्तक ‘ग़ज़ल की बाबत’ ही ग़ज़ल के पुरोधाओं और नए सीखने वालों की पहली पसंद है|
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Friday, September 24, 2021

ZAUQ KI SHAYARI IN HINDI- RAJPAL AND SONS

लाई हयात आए, क़ज़ा ले चली चले

अपनी ख़ुशी से आये , न आए न अपनी ख़ुशी चले 

( IBRAHIM ZAUQ)

 दोस्तों ! ये पोस्ट खासकर उन नौजवान शायरों के लिए हैं जो अकसर मुझसे पूछते रहते हैं ,क्या पढ़ें | 

RAJPAL & SONS  द्वारा प्रकाशित इस किताब में  शेख मुहम्मद  इब्राहीम "  ज़ौक़ "(1854-1790) की जीवनी और उनकी शायरी आपको पढ़ने को मिलेगी | ग़ालिब को टक्कर देने वाले चुनिन्दा शायरों में इनका नाम आता है | खैर ! ग़ालिब  और  ज़ौक़ के किस्से अगली पोस्ट में डालूँगा|

 ज़ौक़ की ग़ज़लें उर्दू साहित्य में अपना विशेष स्थान रखती हैं और आज भी उर्दू शायरी के प्रशंसक उनकी ग़ज़लों और नज़्मों के दीवाने हैं| उर्दू क्लासिकल पोयट्री को हिंदी भाषा में पढ़ना थोड़ा मुश्किल होता है लेकिन मुश्किल अलफ़ाज़ के अर्थ भी हर पन्ने पर दिए हैं | मामूली सी कीमत अदा करके आप शायरी का ये अनमोल खजाना सहेज सकते हैं | 

128 पन्नों की ये किताब  AMAZON से नीचे दिए गए लिंक को क्लिक करके आप खरीद सकते हैं -

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Covid Memorial in America in 2021

 


कौन है वो जिसका ये दृश्य देखकर दिल न पसीज़ जाए | कोविड से मरने वाले एक-एक नाम को कितनी संवेदना से सहेजा है अमेरिका ने | हर एक शख्स के नाम का एक सफेद छोटा सा झंडा | एक संवेदनशील राष्ट्र को ऐसा ही होना चाहिए | हैं न मानवता की दिल को छु लेने वाली मिसाल ,दिल कहता है न कि सलाम है ऐसे राष्ट्र को ,ऐसी मनवता को |

लेकिन ये सब देखते हुए मुझे बहुत  कुछ याद आया ,मुझे याद आया सरकार का ये कहना की आक्सीजन की कमी की वजह से किसी की मौत नहीं हुई ,मुझे याद सरकार का मृत परिवारों को मुआवज़े से इनकार करना | याद आया मुझे कविड के समय भेड़ों जैसे लोगों का सैलाब और हमारे नेताओं को इस हजूम को देखकर मुस्कुरान भी याद है मुझे ,याद है मुझे सिलेंडर की दरकार करते लोग ,नदियों में तैरती लाशें |

क्या कहें ? संवेदनशील होने के लिए कोई मूल्य नहीं चुकाना पड़ता ,मानवता कोई मंहगी चीज़ नहीं है ,पूछो आज अपने आप से कितने संवेदनशील हैं हम ? दुनिया हमें देख रही है ,उसे हमारे  इश्तिहार भरमा नहीं सकते | यहाँ के गरीब -गुरबा वर्ग से  अगर आप  उसका हाल ही पूछ लो कि कैसे हो , तो वो खुश हो जाता है | लोगों को रोटी के साथ सम्मान भी मिलना चाहिए |

कोविड मेमोरियल की ये तस्वीरें हमें प्रेरित करती हैं की हम सीखें कि संवेदना क्या है ? मानवता क्या है ???

Wednesday, September 22, 2021

कहानी : सतपाल ख़याल

 

एक कप चाय : सतपाल ख़याल

 

“उम्र अस्सी की हो गई | दस साल पहले पत्नी छोड़ गई ,बेटी विदेश में ब्याही हुई है | बेटा इसी शहर में है लेकिन किसी  कारणवश साथ नहीं रहता ,खैर !”

इतना कहकर गुप्ता जी ने ठंडी आह भरी और मुझे  पूछा कि चाय पीओगे ?

मैंने हाँ में सर हिला दिया |

चाय बनाते हुए गुप्ता जी ने मुझे कहा कि एक कप चाय मुझे बनानी नहीं आती और बहुत मुश्किल भी है ,एक कप चाय बनाना | एक कप चाय बनाना अगर आदमी सीख ले तो उसे खुश रहने के लिए किसी की ज़रूरत नहीं पड़ेगी |

गुप्ता जी ने चाय मेज़ पे रख दी और मैं भी उनके साथ चाय पीने लगा |

 

मैंने उनसे पूछा कि आप इस उम्र में इतने बड़े मकान में अकेले रहते हो और बीमार भी हैं तो ..

“बेटा , ज़्यादा से ज्यादा क्या होगा ,मर जाउंगा ,बस | इससे बुरा और क्या हो सकता है, अब मुझे मौत का डर नहीं है | लेकिन ज़िन्दगी को लेकर कुछ नाराज़गियां तो हैं |”

मैंने पूछा “क्या नाराजगी है”?

“यही कि एक कप चाय  कैसी बनानी है, ये न सीख पाया” गुप्ता जी थोड़ा मुस्कुरा कर चुटकीले अंदाज़ में बोले |

“अंकल , अफ़सोस होता है क्या कि आप उम्र भर जिस परिवार के लिए कमाया उनमें से कोई भी साथ में नहीं है”

“बेटा , ये न्यू नार्मल है | ऐसा होता ही है | तुम भी अभी से एक कप चाय बनान सीख लो”

मैं चाय ख़त्म करके उठा और गुप्ता जी से कहा कि अगर कोई ज़रूरत हो तो मुझे बताइयेगा |

गुप्ता जी ने कहा – “नहीं,  मेरा बेटा है न | पास में ही तो है |”

मैंने सोचा बाप ,बाप ही होता है ,बेटा चाहे कैसा भी हो ,उससे नाराज़ होते हुए भी नाराज़गी ज़ाहिर नहीं करता |

 

मैं बापस घर आ गया और रात भर सोचता रहा कि हासिल क्या है इस ज़िन्दगी का | जो आदमी सारी उम्र परिवार के लिए मरता है , अंत में परिवार उसे छोड़ देता है और क्या ये बाकई न्यू नार्मल है | मृत्यू से बड़ा दुःख तो ज़िंदगी है | मृत्यु  तो वरदान है जो इस अभीशिप्त जीवन के दुःख से मुक्त कर देती है | ये सोचते- सोचते सुबह हो गई |

 

मैं  उठकर दो कप चाय बनाकर लाया और पत्नी से पूछा कि पीओगी क्या ?

पत्नी बोली कि आफिस के लिए लेट हो जाऊँगी तुम अकेले ही पी लो | मैं मन ही मन हंसा और गुप्ता जी का एक कप चाय पे दिया ज्ञान मुझे बरबस याद आ गया |

मैंने चाय नहीं पी , दोनों चाय के कप मेज़ पे पड़े मानो मुझ पर तंज़ कर  रहे हों और मैं उन्हें इग्नोर  करके तैयार होकर आफिस को चल दिया | गाड़ी में बैठा तो देखा की शर्ट का एक बटन टूटा हुआ था , मैंने मुस्कुरा कर आस्तीन को फोल्ड कर लिया और ख़ुद को मोटीवेट करने के लिए गाड़ी में रिकार्ड मोटीवेशनल स्पीच सुनने लगा | स्पीकर यही कह रहा था कि बस चलते रहो ,रुकना मत ,रुक गए तो खत्म हो जाओगे ,किसी तालाब की तरह सड़ने लगोगे ,बहते रहने में ही गति है | मैं आफिस में पहुंच कर एक कनीज़ की तरह अपने बादशाह सलामत बॉस को गुड मार्निंग कह कर अपनी कुर्सी पर बैठ गया |

अचानक एक कालेज के मित्र का फोन आया कि तू  फलां चाय की दुकान पे लंच टाइम में  आ जाना  | आज “एक बटा दो “ चाय का आनन्द लेते हैं | कालेज के जमाने में हम लोग ऐसे ही करते थे| दो दोस्त हों तो एक बटा दो ,तीन हों तो  एक बटा तीन ,एक बटा चार की भी नौबत आ जाती थी |

और अब दो कप चाय मेज़ पे पड़ी रह जाती है |

खैर ! इस चाय की फलासफी ने मन को उदास कर दिया |

शाम को घर पहुंचते हीपता चला कि गुप्ता अंकल की डेथ हो गई | मैं दुखी तो हुआ लेकिन पता नहीं क्यों मन का एक कोना तृप्ती से भर गया कि एकांत के चंगुल से एक आदमी को निज़ात मिल गई |

“क्या ये सही है कि हमें खुश रहने के लिए किसी की ज़रूरत नहीं पडती ? “ मैंने खुद से ही पूछा और खुद को ही जवाब दिया –

“ कोई सदियों में एक बुद्ध पैदा होता होगा जिसे अकेलेपन में खुशी मिलती होगी | हम लोग जो बेल –बूटों  की तरह पैदा होते हैं ,हमें सहारे की ज़रूरत होती है | हम अकेले में खुश नहीं रह सकते|”

गुप्ता जी एक कप चाय बनाना तो  नहीं सीख पाए लेकिन जीवन का अंतिम पहर उन्होंने एक कप चाय के सहारे ही काटा |

 

Tuesday, September 21, 2021

हिंदी के पुरोधा पंडित -अनिल जन विजय

 आदरणीय अनिल जन विजय जी ने न केवल कविता कोश के माध्यम से हिंदी की सेवा की बल्कि रूस में भी हिंदी का प्रचार –प्रसार कर रहे हैं | मैं सोच रहा था कि मेरे ब्लॉग पर बहुत सारे विज़िटर रूस से कैसे आते हैं ,तो सहज ही मन में आया की ये अनिल जन विजय जी की बदौलत ही हैं  | आज की ग़ज़ल के लगभग आधे पाठक रशिया से हैं ये हैरत की बात भी है और खुशी की भी और एक बात की ग़ज़ल को रशिया में आप पढ़ा रहे हैं | 

 

जन्म :   28 जुलाई 1957

जन्म स्थान :बरेली, उत्तर प्रदेश, भारत

प्रमुख कृतियाँ

कविता नहीं है यह (1982),

माँ, बापू कब आएंगे (1990),

 राम जी भला करें (2004)

उनका कविता कोष का लिंक- www.kavitakosh.org/anil

इनका परिचय इनकी ज़बानी-

मैं अनिल जनविजय हूँ । पिछले तीस साल से मास्को में रहता हूँ । रूसी छात्रों को हिन्दी साहित्यऔर अनुवादपढ़ाता हूँ । मास्को रेडियो का हिन्दी डेस्क देखता हूँ । इसके साथ-साथ कविता कोश और गद्य कोश के सम्पादन का भार भी सम्भालता हूँ ।हिन्दी और हिन्दी साहित्य के प्रति पूरी तरह से समर्पित हूँ ।कविता लिखने-पढ़ने में मेरी रुचि है ।कविताओं का अनुवाद करना भी मुझे पसन्द है ।बहुत से रूसी, फ़िलिस्तीनी, उक्राइनी, लातवियाई, लिथुआनियाई, उज़्बेकी, अरमेनियाई कवियों की और पाब्लो नेरुदा, नाज़िम हिक़मत, लोर्का आदि कवियों की कविताओं का रूसी और अँग्रेज़ी से हिन्दी में अनुवाद किया है ।रूसी कविता से भी वैसे ही अच्छी तरह परिचित हूँ जैसे हिन्दी कविता से ।

 

अनिल जन विजय द्वारा हिन्दी में अनुवाद की गई ये रूसी कविता आप सब के लिए –

मूल रचना -ओसिप मंदेलश्ताम

(यह कविता स्तालिन के बारे में है)

पहाड़ों में निष्क्रिय है देव, हालाँकि है पर्वत का वासी

शांत, सुखी उन लोगों को वह, लगता है सच्चा-साथी

कंठहार-सी टप-टप टपके, उसकी गरदन से चरबी

ज्वार-भाटे-से वह ले खर्राटें, काया भारी है ज्यूँ हाथी

 

बचपन में उसे अति प्रिय थे, नीलकंठी सारंग-मयूर

भरतदेश का इन्द्रधनु पसन्द था औ' लड्डू मोतीचूर

कुल्हिया भर-भर अरुण-गुलाबी पीता था वह दूध

लाह-कीटों का रुधिर ललामी, मिला उसे भरपूर

 

पर अस्थिपंजर अब ढीला उसका, कई गाँठों का जोड़

घुटने, हाथ, कंधे सब नकली, आदम का ओढे़ खोल

सोचे वह अपने हाड़ों से अब और महसूस करे कपाल

बस याद करे वे दिन पुराने, जब वह लगता था वेताल

 संपर्क :  kavitakosh@gmail.com 

कविता कोष से साभार

Monday, September 20, 2021

तरही मुशायरे की चौथी ग़ज़ल : निर्मला कपिला

  

ये हिमाक़त करूं सवाल कहां

तल्ख़ बोलूं मेरी मज़ाल कहां

 

अब नसीमे सहर की उम्र ढली

धड़कनों में रही वो ताल कहां

 

फ़िक्र बच्चों की सूखी रोटी की

दे सके सब्जी और दाल कहां

 

बीता बचपन  गयी जवानी भी

मस्त हिरणी सी अब वो चाल कहां

 

एक अदना किसान हूँ यारो

मैं बताओ कि मालो माल कहां

 

मतलबी हैं यहां सभी रिश्ते

वक़्ते मुश्किल में बनते ढाल कहां

 

ठूंठ बरगद खड़ा हुया तन्हा

होती चौपाल पे रसाल कहां

 

दे गयी प्यार में दगा 'निर्मल'

बेवफा को मगर मलाल कहां

 

Saturday, September 18, 2021

तरही मुशायरे की तीसरी ग़ज़ल- शायर अमित 'अहद' (सहारनपुर)

 


ग़ज़ल

  चाहता है वो अब विसाल कहाँ

हिज्र का है उसे मलाल कहाँ

 इसलिए ही तो हम अकेले हैं

 कोई अपना है हमख़याल कहाँ

 कोई भी ज़ुल्म के ख़िलाफ़ नहीं

खून में पहले सा उबाल कहाँ

  दर्द ए दिल को ग़ज़ल बना देना

 हर किसी में है ये कमाल कहाँ

  यूँ बड़ा तो है ये समंदर भी

माँ के दिल सा मगर विशाल कहाँ

 सिर्फ़ मतलब से फ़ोन करता है

पूछता है वो हालचाल कहाँ

 वक़्त जिसका जवाब दे न सके

 ऐसा कोई 'अहद' सवाल कहाँ 

 

amitahad33@gmail.com