उर्दू के जदीद ग़ज़लगो शो'अरा में आलोक श्रीवास्तव का नाम अगली सफों के शायरों में आता है. वो ग़ज़ल की संगलाख ज़मीन पर इतनी मोहतातरवि से चलते हैं के उनके नक़्शे क़दम साफ़ पहचान लिए जाते हैं. उर्दू अदब की तारीख़ और रिवायत के गहरे मुताले की वजह से उनकी ग़ज़ल ज़्यादा धारदार और चमकदार हो जाती है. उर्दू ग़ज़ल के वो शायकीन जिन्हें ग़ज़ल के मुस्तक़बिल की हमेशा फिक्र रहती है उनके लिए ये इत्मीनान की बात है के आलोक जैसे शायर ग़ज़ल की शाखे समरदार को अपना खून-ए-जिगर पिला रहे हैं.
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