परिचय:
22 जुलाई 1973 को मनोहर शर्मा साग़र पालमपुरी के घर मारण्डा (पालमपुर) मे जन्में नवनीत शर्मा हिमाचल प्रदेश विश्व्विद्यालय से एम. बी. ए. हैं. हिमाचल में हिंदी कविता के सशक्त युवा हस्ताक्षरों में अग्रणी नवनीत शर्मा की कविताओं का जादू तो सुनने —पढ़ने वाले के सर चढ़ कर बोलता ही है ,इनकी ग़ज़लें भी अपने ख़ास तेवर रखती हैं.हिन्दी और पहाड़ी साहित्य की लगभग सभी विधाओं में लिखने वाले क़लम के धनी नवनीत पिछले ग्यारह वर्षों से समाचार पत्रों के सम्पादन से जुड़े हैं.
संप्रति : मुख्य उप संपादक, दैनिक जागरण, बनोई,तहसील शाहपुर— ज़िला काँगड़ा (हि.प्र.)
मोबाइल नं.: 94180— 40160
**
एक.
22 जुलाई 1973 को मनोहर शर्मा साग़र पालमपुरी के घर मारण्डा (पालमपुर) मे जन्में नवनीत शर्मा हिमाचल प्रदेश विश्व्विद्यालय से एम. बी. ए. हैं. हिमाचल में हिंदी कविता के सशक्त युवा हस्ताक्षरों में अग्रणी नवनीत शर्मा की कविताओं का जादू तो सुनने —पढ़ने वाले के सर चढ़ कर बोलता ही है ,इनकी ग़ज़लें भी अपने ख़ास तेवर रखती हैं.हिन्दी और पहाड़ी साहित्य की लगभग सभी विधाओं में लिखने वाले क़लम के धनी नवनीत पिछले ग्यारह वर्षों से समाचार पत्रों के सम्पादन से जुड़े हैं.
संप्रति : मुख्य उप संपादक, दैनिक जागरण, बनोई,तहसील शाहपुर— ज़िला काँगड़ा (हि.प्र.)
मोबाइल नं.: 94180— 40160
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एक.
अब पसर आए हैं रिश्तों पे कुहासे कितने
अब जो ग़ुर्बत में है नानी तो नवासे कितने
चोट खाए हुए लम्हों का सितम है कि उसे
रूह के चेहरे पे दिखते हैं मुहाँसे कितने
सच के क़स्बे पे मियाँ झूठ की है सरदारी
अब अटकते हैं लबों पर ही ख़ुलासे कितने
थे बहुत ख़ास जो सर तान के चलते थे यहाँ
अब इसी शहर में वाक़िफ़ हैं अना से कितने
अब भी अंदर है कोई शय जो धड़कती है मियाँ
वरना बाज़ार में बिकते हैं दिलासे कितने .
2122,1122,1122 ,112
दो.
अनकही का जवाब है प्यारे
ये जो अंदर अज़ाब है प्यारे
आस अब आस्माँ से रक्खी है
छत का मौसम ख़राब है प्यारे
अश्क, आहें ख़ुशी ठहाके भी
ज़िंदगी वो किताब है प्यारे
रोक लेते हैं याद के हिमनद
दिल हमारा चिनाब है प्यारे
प्यार अगर है तो उसकी हद पाना
सबसे मुश्किल हिसाब है प्यारे
कट चुकी हैं तमाम ज़ंजीरें
फिर भी ख़ाना ख़राब है प्यारे
कौन तेरा है किसका है तू भी
ऐसा कोई हिसाब है प्यारे!
212,212,1222
तीन.
मुझे उम्मीद थी भेजोगे नग़्मगी फिर से
तुम्हारे शहर से लौटी है ख़ामुशी फिर से
यहाँ दरख़्तों के सीने पे नाम खुदते हैं
मगर है दूर वो दस्तूर—ए—बंदगी फिर से
गड़ी है ज़िन्दगी दिल में कँटीली यादों —सी
ज़रा निजात मिले, तो हो ज़िंदगी फिर से
बची जो नफ़रतों की तेज़ धूप से यारो
ये शाख़ देखना हो जाएगी हरी फिर से
सनम तो हो गया तब्दील एक पत्थर में
मेरे नसीब में आई है बंदगी फिर से
मुझे भुलाने चले थे वो भूल बैठे हैं
उन्हीं के दर पे मैं पत्थर हूँ दायमी फिर से
1212, 1122, 121 2,112
bahr' mujtas
चार.
तुम्हारे शहर से लौटी है ख़ामुशी फिर से
यहाँ दरख़्तों के सीने पे नाम खुदते हैं
मगर है दूर वो दस्तूर—ए—बंदगी फिर से
गड़ी है ज़िन्दगी दिल में कँटीली यादों —सी
ज़रा निजात मिले, तो हो ज़िंदगी फिर से
बची जो नफ़रतों की तेज़ धूप से यारो
ये शाख़ देखना हो जाएगी हरी फिर से
सनम तो हो गया तब्दील एक पत्थर में
मेरे नसीब में आई है बंदगी फिर से
मुझे भुलाने चले थे वो भूल बैठे हैं
उन्हीं के दर पे मैं पत्थर हूँ दायमी फिर से
1212, 1122, 121 2,112
bahr' mujtas
चार.
यह जो बस्ती में डर नहीं होता
सबका सजदे में सर नहीं होता
तेरे दिल में अगर नहीं होता
मैं भी तेरी डगर नहीं होता
रेत के घर पहाड़ की दस्तक
वाक़िया ये ख़बर नही होता
ख़ुदपरस्ती ये आदतों का लिहाफ़
ख़्वाब तो हैं गजर नहीं होता
मंज़िलें जिनको रोक लेती हैं
उनका कोई सफ़र नहीं होता
पूछ उससे उड़ान का मतलब
जिस परिंदे का पर नहीं होता
आरज़ू घर की पालिए लेकिन
हर मकाँ भी तो घर नहीं होता
तू मिला है मगर तू ग़ायब है
ऐसा होना बसर नहीं होता
इत्तिफ़ाक़न जो शे`र हो आया
क्या न होता अगर नहीं होता.
212,212,1222
पाँच.
वहम जब भी यक़ीन हो जाएँ
हौसले सब ज़मीन हो जाएँ
ख़्वाब कुछ बेहतरीन हो जाएँ
सच अगर बदतरीन हो जाएँ
ना—नुकर की वो संकरी गलियाँ
हम कहाँ तक महीन हो जाएँ
ख़ुद से कटते हैं और मरते हैं
लोग जब भी मशीन हो जाएँ
आपको आप ही उठाएँगे
चाहे वृश्चिक या मीन हो जाएँ.
212,212,1222
छ:
उनका जो ख़ुश्बुओं का डेरा है
हाँ, वही ज़ह्र का बसेरा है
सच के क़स्बे का जो अँधेरा है
झूठ के शहर का सवेरा है
मैं सिकंदर हूँ एक वक़्फ़े का
तू मुक़द्दर है वक्त तेरा है
दूर होकर भी पास है कितना
जिसकी पलकों में अश्क मेरा है
जो तुझे तुझ से छीनने आया
यार मेरा रक़ीब तेरा है
मैं चमकता हूँ उसके चेहरे पर
चाँद पर दाग़ का बसेरा है.
212,212,1222
सात.
तेरी याद सिकंदर अब भी
दिल बाक़ी है बंजर अब भी
सरहद—सरहद कंदीलें हैं
और दिलों में ख़ंजर अब भी
सारे ख़त वो ख़ुश्बू वाले
इक रिश्ते के खण्डर अब भी
जितना ज़ख़्मी उतना बेबस
कुछ रिश्तों का मंज़र अब भी
बेटे के सब आँसू सूखे
माँ की आँख समंदर अब भी
छू आए हो चाँद को लेकिन
दूर बहुत है अंबर अब भी
हिंदी तर्पण करने वालो
कितने और सितंबर अब भी
रूह तपा कर जी लो वरना
दुनिया सर्द दिसंबर अब भी
बाहर—बाहर हँसना— रोना
अंदर मस्त कलंदर अब भी
अर्से से आज़ाद है बस्ती
लोग मगर हैं नंबर अब भी.
22x 4
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बहुत ही जिंदा दिल इन्सान है नवनीत. भाषा पर इतनी अच्छी पकड़ कि क्या कहना.एक बहुत अच्छा मंच संचालक, बात करने का लहजा़ कमाल का फ़िर चाहे हिंदी हो या पंजाबी . बहुत ही साफ़ दिल इन्सान है नवनीत . He is multitalented man.
सतपाल ख्याल
बहुत ही जिंदा दिल इन्सान है नवनीत. भाषा पर इतनी अच्छी पकड़ कि क्या कहना.एक बहुत अच्छा मंच संचालक, बात करने का लहजा़ कमाल का फ़िर चाहे हिंदी हो या पंजाबी . बहुत ही साफ़ दिल इन्सान है नवनीत . He is multitalented man.
सतपाल ख्याल
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