Thursday, October 14, 2021
सूर्य कांत त्रिपाठी निराला की ग़ज़ल
ग़ज़ल का इतिहास और भाषा -अंतिम भाग ,लेखक सतपाल ख़याल
नया दौर:
Wednesday, October 13, 2021
ग़ज़ल का इतिहास और भाषा -भाग -3 : लेखक सतपाल ख़याल
दिल्ली मे दूसरे दौर के शायर:
ग़ज़ल का इतिहास और ग़ज़ल की भाषा- भाग एक
तकरीबन 1000 साल से भी पहले ग़ज़ल का जन्म ईरान मे हुआ और वहाँ की फ़ारसी भाषा मे ही इसे लिखा या कहा गया. माना जाता है कि ये "कसीदे" से ही निकली. कसीदे राजाओं की तारीफ मे कहे जाते थे और शायर अपनी रोजी-रोटी चलाने के लिए शासकों की झूठी तारीफ़ करता था और विलासी राजाओं को वही सुनाता था जिससे वो खुश होते थे.शराब , कबाब और शबाब के साथ राजा कसीदे सुनते थे और विलासी राजा औरतों के ज़िक्र से खुश होते थे तो शायर औरतॊं और शराब का ज़िक्र ही ग़ज़लों मे करने लगे वो चाहकर भी जनता का दुख-दर्द बयान नही कर सकते थे.तो ग़ज़ल का मतलब ही औरतों के बारे मे ज़िक्र हो गया.यही पर इसका बहर शास्त्र बना जो फारसी में था.
ग़ज़ल का इतिहास और भाषा -भाग 2
अब बात करते हैं कि ये उर्दू क्या है ?
Tuesday, October 12, 2021
एक नज़्म -निदा फ़ाज़ली
वो शोख शोख नज़र सांवली सी एक लड़की
जो रोज़ मेरी गली से गुज़र के जाती है
सुना है
वो किसी लड़के से प्यार करती है
बहार हो के, तलाश-ए-बहार करती है
न कोई मेल न कोई लगाव है लेकिन न जाने क्यूँ
बस उसी वक़्त जब वो आती है
कुछ इंतिज़ार की आदत सी हो गई है
मुझे
एक अजनबी की ज़रूरत हो गई है मुझे
मेरे बरांडे के आगे यह फूस का छप्पर
गली के मोड पे खडा हुआ सा
एक पत्थर
वो एक झुकती हुई बदनुमा सी नीम की शाख
और उस पे जंगली कबूतर के घोंसले का निशाँ
यह सारी चीजें कि जैसे मुझी में शामिल हैं
मेरे दुखों में मेरी हर खुशी में शामिल हैं
मैं चाहता हूँ कि वो भी यूं ही गुज़रती रहे
अदा-ओ-नाज़ से लड़के को प्यार करती रहे
साभार -कविता कोश
निदा फ़ाज़ली की मशहूर ग़ज़लें
निदा फाज़ली की मशहूर ग़ज़लें - एक
BBC पर छपे -निदा साहब के लेख
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