![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi2y26Cjz8EbiZB30t-XU8L7Et_gXyeRLoVXf7WlmWcvJBzwb8mf2tykOyryNyobRcI0o1JZcomz9ttBJw-HV5RxgWnGYHmfikLz6M9VxHkjGpR0L1hISgmBSNp_0Aua-jyDKpwVgak4viA/s400/167792_136691456392846_100001559787938_210688_4997979_n.jpg)
पर तो अता किये मगर परवाज़ छीन ली
अंदाज़ दे के खूबी-ए-अंदाज़ छीन ली
मुझको सिला मिला है मेरे किस गुनाह का
अलफ़ाज़ तो दिये मगर आवाज़ छीन ली
1930 में जन्मे कँवल ज़िआई साहब बहुत अच्छे शायर हैं। जिन्होंने बहुत से मुशायरों में शिरकत की और आप सिने स्टार राजेन्द्र कुमार के सहपाठी भी रहे हैं। मै इनके बारे में क्या कहूँ, छोटा मुँह और बड़ी बात हो जाएगी। कुछ दिन पहले इनका ग़ज़ल संग्रह "प्यासे जाम" इनके बेटे यशवंत दत्त्ता जॊ की बदौलत पढ़ने को मिला। आप हमारे बजुर्ग शायर हैं, हमारे रहनुमा हैं। भगवान इनको लम्बी उम्र और सेहत बख़्शे । राजेन्द्र कुमार जी ने कभी मजाक में कहा था कि आप शक्ल से जमींदार लगते हैं तो आप ने फ़रमाया था-
शक्ल मेरी देखना चाहें तो हाज़िर है, मगर
मेरे दिल को मेरे शेरो में उतर कर देखिये
कुछ दिन पहले २७ मई को इनकी शादी की सालगिरह थी। सो एक बार फिर दिली मुबारक़बाद। आप आर्मी से रिटायर हैं और अभी देहरादून में हैं।बहुत शोहरत कमाई है आपने और कई महफ़िलों की जान रहे हैं आप। ज़िंदगी के प्रति काफ़ी पैनी नज़र रखते हैं-
बात करनी है मुझे इक वक़्त से
बात छोटी है मगर छोटी नहीं
ज़िन्दगी को और भी कुछ चाहिये
ज़िन्दगी दो वक़्त की रोटी नहीं
उम्र के इस पड़ाव पर ख़ुद को आइने में देखकर कुछ यूँ कहते हैं-
जानी पहचानी सी सूरत जाने पहचाने से नक्श
वो यक़ीनन मैं नहीं लेकिन ये मुझ सा कौन है
एक ही उलझन में सारी रात मैंने काट दी
जिसको आईने में देखा था वो बूढ़ा कौन है
इनकी ग़ज़ल हाज़िर है-
कोई भी मसअला मरने का मारने का नहीं
सवाल हक़ का है दामन पसारने का नहीं
मैं एक पल का ही मेहमां हूँ लौट जाऊंगा
मेरा ख़याल यहाँ शब गुजारने का नहीं
उन्हें भी सादगी मेरी पसंद आती है
मुझे भी शौक नया रूप धारने का नहीं
हदूद-ए-शहर में अब जंगबाज़ आ पहुंचे
ये वक़्त रेशमी जुल्फें सवांरने का नहीं
10 comments:
हदूद-ए-शहर में अब जंगबाज़ आ पहुंचे
ये वक़्त रेशमी जुल्फें सवांरने का नहीं
bahut khoob !
जीआई साहब का परिचय और लेखन कबीले तारीफ़ तो है ही. लेकिन आपके द्वारा सुंदर आलेख में और भी सुंदर बन गया. बधाई.
मैं एक पल का ही मेहमां हूँ लौट जाऊंगा
मेरा ख़याल यहाँ शब गुजारने का नहीं
wah kya baat h...ghazab ki ghazal..
कँवल ज़िआई जी के बारे में जान कर बहुत अच्छा लगा. जितने भी शेर हैं बेहद पसंद आये और सीधे दिल में उतर गए..
कँवल जिआई साहब जैसी शख्सियत और उनके कलाम से परिचित करवाने के लिये शुक्रिया।
ईश्वर से प्रार्थना है कि कँवल जिआई साहब व्यस्त रहें, स्वस्थ रहें और मस्त रहें।
'हदूद-ए-शहर में अब जंगबाज़ आ पहुंचे
ये वक़्त रेशमी जुल्फें सवांरने का नहीं'
वाकई!...बहुत अच्छा
कँवल ज़िआई साहब देहरादून के बड़े मशहूर और मारूफ शायर हैं. मैं अपनी सर्विस के दौरान देहरादून में पोस्टेड रह चुका हूँ तथा उनके फ़न,कलाम और शोहरत से बखूबी वाकिफ हूँ. उन्हें और उनकी क़लम को सलाम.
हदूद-ए-शहर में अब जंगबाज़ आ पहुंचे
ये वक़्त रेशमी जुल्फें सवांरने का नहीं...
बहुत खूब! लाज़वाब गज़ल..
behad sundar andaaz hai jindagee se rubru hone ka ..
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कँवल जिआई जी की और धन्यवाद पढ़ाने के लिए..
Post a Comment