सहारनपुर के युवा शायर अमित अहद की एक ग़ज़ल
तेरे मेरे ग़म का मंज़र
हर सू है मातम का मंज़र
मुद्दत से इक जैसा ही है
यादों की अलबम का मंज़र
दहशत में डूबा डूबा है
अब सारे आलम का मंज़र
दूर तलक अब तो दिखता है
पलकों पर शबनम का मंज़र
ज़ख्मों के बाज़ार सजे हैं
ग़ायब है मरहम का मंज़र
चीखों के इस शोर में मौला
पैदा कर सरगम का मंज़र
रफ़्ता-रफ़्ता अब आहों में
बदला है मौसम का मंज़र
लाशें ही लाशें बिखरी है
हर सू देख सितम का मंज़र
'अहद' नहीं देखा बरसों से
पायल की छम छम का मंज़र
फेसबुक लिंक अमित अहद -
3 comments:
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मनगलवार 07 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
Yashoda Agrawal ji ,atleast you should ask once to share any post.
बहुत सुन्दर
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