Wednesday, September 22, 2021

कहानी : सतपाल ख़याल

 

एक कप चाय : सतपाल ख़याल

 

“उम्र अस्सी की हो गई | दस साल पहले पत्नी छोड़ गई ,बेटी विदेश में ब्याही हुई है | बेटा इसी शहर में है लेकिन किसी  कारणवश साथ नहीं रहता ,खैर !”

इतना कहकर गुप्ता जी ने ठंडी आह भरी और मुझे  पूछा कि चाय पीओगे ?

मैंने हाँ में सर हिला दिया |

चाय बनाते हुए गुप्ता जी ने मुझे कहा कि एक कप चाय मुझे बनानी नहीं आती और बहुत मुश्किल भी है ,एक कप चाय बनाना | एक कप चाय बनाना अगर आदमी सीख ले तो उसे खुश रहने के लिए किसी की ज़रूरत नहीं पड़ेगी |

गुप्ता जी ने चाय मेज़ पे रख दी और मैं भी उनके साथ चाय पीने लगा |

 

मैंने उनसे पूछा कि आप इस उम्र में इतने बड़े मकान में अकेले रहते हो और बीमार भी हैं तो ..

“बेटा , ज़्यादा से ज्यादा क्या होगा ,मर जाउंगा ,बस | इससे बुरा और क्या हो सकता है, अब मुझे मौत का डर नहीं है | लेकिन ज़िन्दगी को लेकर कुछ नाराज़गियां तो हैं |”

मैंने पूछा “क्या नाराजगी है”?

“यही कि एक कप चाय  कैसी बनानी है, ये न सीख पाया” गुप्ता जी थोड़ा मुस्कुरा कर चुटकीले अंदाज़ में बोले |

“अंकल , अफ़सोस होता है क्या कि आप उम्र भर जिस परिवार के लिए कमाया उनमें से कोई भी साथ में नहीं है”

“बेटा , ये न्यू नार्मल है | ऐसा होता ही है | तुम भी अभी से एक कप चाय बनान सीख लो”

मैं चाय ख़त्म करके उठा और गुप्ता जी से कहा कि अगर कोई ज़रूरत हो तो मुझे बताइयेगा |

गुप्ता जी ने कहा – “नहीं,  मेरा बेटा है न | पास में ही तो है |”

मैंने सोचा बाप ,बाप ही होता है ,बेटा चाहे कैसा भी हो ,उससे नाराज़ होते हुए भी नाराज़गी ज़ाहिर नहीं करता |

 

मैं बापस घर आ गया और रात भर सोचता रहा कि हासिल क्या है इस ज़िन्दगी का | जो आदमी सारी उम्र परिवार के लिए मरता है , अंत में परिवार उसे छोड़ देता है और क्या ये बाकई न्यू नार्मल है | मृत्यू से बड़ा दुःख तो ज़िंदगी है | मृत्यु  तो वरदान है जो इस अभीशिप्त जीवन के दुःख से मुक्त कर देती है | ये सोचते- सोचते सुबह हो गई |

 

मैं  उठकर दो कप चाय बनाकर लाया और पत्नी से पूछा कि पीओगी क्या ?

पत्नी बोली कि आफिस के लिए लेट हो जाऊँगी तुम अकेले ही पी लो | मैं मन ही मन हंसा और गुप्ता जी का एक कप चाय पे दिया ज्ञान मुझे बरबस याद आ गया |

मैंने चाय नहीं पी , दोनों चाय के कप मेज़ पे पड़े मानो मुझ पर तंज़ कर  रहे हों और मैं उन्हें इग्नोर  करके तैयार होकर आफिस को चल दिया | गाड़ी में बैठा तो देखा की शर्ट का एक बटन टूटा हुआ था , मैंने मुस्कुरा कर आस्तीन को फोल्ड कर लिया और ख़ुद को मोटीवेट करने के लिए गाड़ी में रिकार्ड मोटीवेशनल स्पीच सुनने लगा | स्पीकर यही कह रहा था कि बस चलते रहो ,रुकना मत ,रुक गए तो खत्म हो जाओगे ,किसी तालाब की तरह सड़ने लगोगे ,बहते रहने में ही गति है | मैं आफिस में पहुंच कर एक कनीज़ की तरह अपने बादशाह सलामत बॉस को गुड मार्निंग कह कर अपनी कुर्सी पर बैठ गया |

अचानक एक कालेज के मित्र का फोन आया कि तू  फलां चाय की दुकान पे लंच टाइम में  आ जाना  | आज “एक बटा दो “ चाय का आनन्द लेते हैं | कालेज के जमाने में हम लोग ऐसे ही करते थे| दो दोस्त हों तो एक बटा दो ,तीन हों तो  एक बटा तीन ,एक बटा चार की भी नौबत आ जाती थी |

और अब दो कप चाय मेज़ पे पड़ी रह जाती है |

खैर ! इस चाय की फलासफी ने मन को उदास कर दिया |

शाम को घर पहुंचते हीपता चला कि गुप्ता अंकल की डेथ हो गई | मैं दुखी तो हुआ लेकिन पता नहीं क्यों मन का एक कोना तृप्ती से भर गया कि एकांत के चंगुल से एक आदमी को निज़ात मिल गई |

“क्या ये सही है कि हमें खुश रहने के लिए किसी की ज़रूरत नहीं पडती ? “ मैंने खुद से ही पूछा और खुद को ही जवाब दिया –

“ कोई सदियों में एक बुद्ध पैदा होता होगा जिसे अकेलेपन में खुशी मिलती होगी | हम लोग जो बेल –बूटों  की तरह पैदा होते हैं ,हमें सहारे की ज़रूरत होती है | हम अकेले में खुश नहीं रह सकते|”

गुप्ता जी एक कप चाय बनाना तो  नहीं सीख पाए लेकिन जीवन का अंतिम पहर उन्होंने एक कप चाय के सहारे ही काटा |

 

5 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

चाय का कप एक बहुत जरुरी फलसफा

अनीता सैनी said...

बहुत ही सुंदर हृदयस्पर्शी सृजन।
सादर

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

अकेले जूझते आज के बुजुर्गों की मर्मस्पर्शी स्थिति ।
और चाय का फलसफा ....
हर कोई बुद्ध नहीं हो सकता । नामुमकिन नहीं लेकिन कठिन है ।
बहुत संवेदनशील कहानी ।

मन की वीणा said...

सतपाल जी की ये कहानी अपने आप में पूरा अध्याय है , ये एक कप की फिलोसॉफी कोई साधारण बात नहीं,
साथ ही ये न्यू नार्मल गज़ब !!
सार्थक चिंतन देता सृजन।

सतपाल ख़याल said...

मन की वीणा ,संगीता स्वरूप जी और अनिता सैनी जी ,

कहानी आपको पसंद आई ,बहुत -बहुत शुक्रिया |

आभार