शाख़ों से टूट
जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम
आँधी से कोई कह
दे कि औक़ात में रहे
रोज़ तारों को
नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है
हाथ ख़ाली हैं
तिरे शहर से जाते जाते
जान होती तो मिरी जान लुटाते जाते
बीमार को मरज़
की दवा देनी चाहिए
मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए
आते जाते हैं
कई रंग मिरे चेहरे पर
लोग लेते हैं मज़ा ज़िक्र तुम्हारा कर के
राहत इंदौरी
1 Jan1950-11 August 2020
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