Wednesday, February 22, 2023
ग़ज़ल -सतपाल ख़याल
Wednesday, August 17, 2022
कविता-सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
यदि तुम्हारे घर के
एक कमरे में आग लगी हो
तो क्या तुम
दूसरे कमरे में सो सकते हो?
यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में
लाशें सड़ रहीं हों
तो क्या तुम
दूसरे कमरे में प्रार्थना कर सकते हो?
यदि हाँ
तो मुझे तुम से
कुछ नहीं कहना है।
देश कागज पर बना
नक्शा नहीं होता
कि एक हिस्से के फट जाने पर
बाकी हिस्से उसी तरह साबुत बने रहें
और नदियां, पर्वत, शहर, गांव
वैसे ही अपनी-अपनी जगह दिखें
अनमने रहें।
यदि तुम यह नहीं मानते
तो मुझे तुम्हारे साथ
नहीं रहना है।
इस दुनिया में आदमी की जान से बड़ा
कुछ भी नहीं है
न ईश्वर
न ज्ञान
न चुनाव
कागज पर लिखी कोई भी इबारत
फाड़ी जा सकती है
और जमीन की सात परतों के भीतर
गाड़ी जा सकती है।
जो विवेक
खड़ा हो लाशों को टेक
वह अंधा है
जो शासन
चल रहा हो बंदूक की नली से
हत्यारों का धंधा है
यदि तुम यह नहीं मानते
तो मुझे
अब एक क्षण भी
तुम्हें नहीं सहना है।
याद रखो
एक बच्चे की हत्या
एक औरत की मौत
एक आदमी का
गोलियों से चिथड़ा तन
किसी शासन का ही नहीं
सम्पूर्ण राष्ट्र का है पतन।
ऐसा खून बहकर
धरती में जज्ब नहीं होता
आकाश में फहराते झंडों को
काला करता है।
जिस धरती पर
फौजी बूटों के निशान हों
और उन पर
लाशें गिर रही हों
वह धरती
यदि तुम्हारे खून में
आग बन कर नहीं दौड़ती
तो समझ लो
तुम बंजर हो गये हो-
तुम्हें यहां सांस लेने तक का नहीं है अधिकार
तुम्हारे लिए नहीं रहा अब यह संसार।
आखिरी बात
बिल्कुल साफ
किसी हत्यारे को
कभी मत करो माफ
चाहे हो वह तुम्हारा यार
धर्म का ठेकेदार,
चाहे लोकतंत्र का
स्वनामधन्य पहरेदार।
Saturday, May 21, 2022
एक कप चाय - कहानी सतपाल ख़याल
#teaday #चाय
एक कप चाय : सतपाल ख़याल
“उम्र अस्सी की हो गई | दस साल पहले पत्नी छोड़ गई ,बेटी विदेश में ब्याही हुई है | बेटा इसी शहर में है लेकिन किसी कारणवश साथ नहीं रहता ,खैर !”
इतना कहकर गुप्ता जी ने ठंडी आह भरी और मुझे पूछा कि चाय पीओगे ?
मैंने “हाँ” में सर हिला दिया |
चाय बनाते हुए गुप्ता जी ने मुझे कहा कि एक कप चाय मुझे बनानी नहीं आती और बहुत मुश्किल भी है ,एक कप चाय बनाना | एक कप चाय बनाना अगर आदमी सीख ले तो उसे खुश रहने के लिए किसी की ज़रूरत नहीं पड़ेगी |
गुप्ता जी ने चाय मेज़ पे रख दी और मैं भी उनके साथ चाय पीने लगा |
मैंने उनसे पूछा कि आप इस उम्र में इतने बड़े मकान में अकेले रहते हो और बीमार भी हैं तो ..
“बेटा , ज़्यादा से ज्यादा क्या होगा ,मर जाउंगा ,बस | इससे बुरा और क्या हो सकता है, अब मुझे मौत का डर नहीं है | लेकिन ज़िन्दगी को लेकर कुछ नाराज़गियां तो हैं |”
मैंने पूछा “क्या नाराजगी है”?
“यही कि एक कप चाय कैसी बनानी है, ये न सीख पाया” गुप्ता जी थोड़ा मुस्कुरा कर चुटकीले अंदाज़ में बोले |
“अंकल , अफ़सोस होता है क्या कि आप उम्र भर जिस परिवार के लिए कमाया उनमें से कोई भी साथ में नहीं है”
“बेटा , ये न्यू नार्मल है | ऐसा होता ही है | तुम भी अभी से एक कप चाय बनान सीख लो”
मैं चाय ख़त्म करके उठा और गुप्ता जी से कहा कि अगर कोई ज़रूरत हो तो मुझे बताइयेगा |
गुप्ता जी ने कहा – “नहीं, मेरा बेटा है न | पास में ही तो है |”
मैंने सोचा बाप ,बाप ही होता है ,बेटा चाहे कैसा भी हो ,उससे नाराज़ होते हुए भी नाराज़गी ज़ाहिर नहीं करता |
मैं बापस घर आ गया और रात भर सोचता रहा कि हासिल क्या है इस ज़िन्दगी का | जो आदमी सारी उम्र परिवार के लिए मरता है , अंत में परिवार उसे छोड़ देता है और क्या ये बाकई न्यू नार्मल है | मृत्यू से बड़ा दुःख तो ज़िंदगी है | मृत्यु तो वरदान है जो इस अभीशिप्त जीवन के दुःख से मुक्त कर देती है | ये सोचते- सोचते सुबह हो गई |
मैं उठकर दो कप चाय बनाकर लाया और पत्नी से पूछा कि पीओगी क्या ?
पत्नी बोली कि आफिस के लिए लेट हो जाऊँगी तुम अकेले ही पी लो | मैं मन ही मन हंसा और गुप्ता जी का एक कप चाय पे दिया ज्ञान मुझे बरबस याद आ गया |
मैंने चाय नहीं पी , दोनों चाय के कप मेज़ पे पड़े मानो मुझ पर तंज़ कर रहे हों और मैं उन्हें इग्नोर करके तैयार होकर आफिस को चल दिया | गाड़ी में बैठा तो देखा की शर्ट का एक बटन टूटा हुआ था , मैंने मुस्कुरा कर आस्तीन को फोल्ड कर लिया और ख़ुद को मोटीवेट करने के लिए गाड़ी में रिकार्ड मोटीवेशनल स्पीच सुनने लगा | स्पीकर यही कह रहा था कि बस चलते रहो ,रुकना मत ,रुक गए तो खत्म हो जाओगे ,किसी तालाब की तरह सड़ने लगोगे ,बहते रहने में ही गति है | मैं आफिस में पहुंच कर एक कनीज़ की तरह अपने बादशाह सलामत बॉस को गुड मार्निंग कह कर अपनी कुर्सी पर बैठ गया |
अचानक एक कालेज के मित्र का फोन आया कि तू फलां चाय की दुकान पे लंच टाइम में आ जाना | आज “एक बटा दो “ चाय का आनन्द लेते हैं | कालेज के जमाने में हम लोग ऐसे ही करते थे| दो दोस्त हों तो एक बटा दो ,तीन हों तो एक बटा तीन ,एक बटा चार की भी नौबत आ जाती थी |
और अब दो कप चाय मेज़ पे पड़ी रह जाती है |
खैर ! इस चाय की फलासफी ने मन को उदास कर दिया |
शाम को घर पहुंचते हीपता चला कि गुप्ता अंकल की डेथ हो गई | मैं दुखी तो हुआ लेकिन पता नहीं क्यों मन का एक कोना तृप्ती से भर गया कि एकांत के चंगुल से एक आदमी को निज़ात मिल गई |
“क्या ये सही है कि हमें खुश रहने के लिए किसी की ज़रूरत नहीं पडती ? “ मैंने खुद से ही पूछा और खुद को ही जवाब दिया –
“ कोई सदियों में एक बुद्ध पैदा होता होगा जिसे अकेलेपन में खुशी मिलती होगी | हम लोग जो बेल –बूटों की तरह पैदा होते हैं ,हमें सहारे की ज़रूरत होती है | हम अकेले में खुश नहीं रह सकते|”
गुप्ता जी एक कप चाय बनाना तो नहीं सीख पाए लेकिन जीवन का अंतिम पहर उन्होंने एक कप चाय के सहारे ही काटा |
Tuesday, April 19, 2022
Ek Baar Phir Se..Aapke liye
तकरीबन 1000 साल से भी पहले ग़ज़ल का जन्म ईरान मे हुआ और वहाँ की फ़ारसी भाषा मे ही इसे लिखा या कहा गया. माना जाता है कि ये "कसीदे" से ही निकली. कसीदे राजाओं की तारीफ मे कहे जाते थे और शायर अपनी रोजी-रोटी चलाने के लिए शासकों की झूठी तारीफ़ करता था और विलासी राजाओं को वही सुनाता था जिससे वो खुश होते थे.शराब , कबाब और शबाब के साथ राजा कसीदे सुनते थे और विलासी राजा औरतों के ज़िक्र से खुश होते थे तो शायर औरतॊं और शराब का ज़िक्र ही ग़ज़लों मे करने लगे वो चाहकर भी जनता का दुख-दर्द बयान नही कर सकते थे.तो ग़ज़ल का मतलब ही औरतों के बारे मे ज़िक्र हो गया.यही पर इसका बहर शास्त्र बना जो फारसी में था.
रचनाकार परिचय:-
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आज हम ग़ज़ल की बहरों को लेकर चर्चा आरम्भ कर रहे हैं | आपके प्रश्नों का स्वागत है | आठ बेसिक अरकान: फ़ा-इ-ला-तुन (2-1-2-2) मु-त-फ़ा-इ-लुन(...

