Friday, September 10, 2021

एक ज़मीन में दो शायरों की ग़ज़लें- मोमिन और बशीर बद्र(Momin Khan Momin-Bashir Badr)

 एक ज़मीन में दो शायरों की ग़ज़लें-


 

मोमिन खां मोमिन -

 असर उसको ज़रा नहीं होता 

रंज राहत-फिज़ा नहीं होता 

बेवफा कहने की शिकायत है
तो भी वादा वफा नहीं होता 

जिक़्रे-अग़ियार से हुआ मालूम,
हर्फ़े-नासेह बुरा नहीं होता 

तुम हमारे किसी तरह न हुए,
वर्ना दुनिया में क्या नहीं होता 

उसने क्या जाने क्या किया लेकर
दिल किसी काम का नहीं होता 

नारसाई से दम रुके तो रुके
मैं किसी से खफ़ा नहीं होता 

तुम मेरे पास होते हो गोया
जब कोई दूसरा नहीं होता 

हाले-दिल यार को लिखूँ क्यूँकर
हाथ दिल से जुदा नहीं होता 

क्यूं सुने अर्ज़े-मुज़तर ऐ मोमिन
सनम आख़िर ख़ुदा नहीं होता 


 बशीर बद्र

 कोई काँटा चुभा नहीं होता

दिल अगर फूल सा नहीं होता

मैं भी शायद बुरा नहीं होता
वो अगर बेवफ़ा नहीं होता

बेवफ़ा बेवफ़ा नहीं होता
ख़त्म ये फ़ासला नहीं होता

कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता

जी बहुत चाहता है सच बोलें
क्या करें हौसला नहीं होता

रात का इंतज़ार कौन करे
आज-कल दिन में क्या नहीं होता


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