Thursday, March 13, 2025

"बटन" पर कुछ अशआर


दाएरे अँधेरों के रौशनी के पोरों ने
कोट के बटन खोले टाई की गिरह खोली
बशीर बद्र

मोहज़्ज़ब आदमी पतलून के बटन तो लगा
कि इर्तिक़ा है इबारत बटन लगाने से
जौन एलिया

मेरी इक शर्ट में कल उस ने बटन टाँका था
शहर के शोर में चूड़ी की खनक आज भी है
तनवीर ग़ाज़ी

बटन बस शर्ट में इक टाँक देते
तो सब ग़ुस्सा उतर जाता हमारा
फ़हमी बदायूनी

कभी क़मीज़ के आधे बटन लगाते थे
और अब बदन से लबादा नहीं उतरता है
शकील जमाली

जेब ग़ाएब है तो नेफ़ा है बटन के बदले
तुम ने पतलून का पाजामा बना रखा है
ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी

है ज़िंदगी क़मीज़ का टूटा  हुआ बटन 
बिँधती हैं उँगलियाँ भी जिसे टाँकते हुए
द्विजेन्द्र द्विज 

एक शे'र मेरा भी -

हो गया मसरूफ़ इतना घर कि अब ये हल है 
तंज़ करते हैं  क़मीज़ों के बटन टूटे हुए 

सतपाल ख़याल 



Monday, March 10, 2025

फ़हमी बदायूनी -बड़े शायर का बड़ा शे'र -6 वीं क़िस्त





4 जून 1952 बदायूँ , उत्तर प्रदेश 
 20 अक्तूबर 2024 बदायूँ ,उत्तर प्रदेश 

Hijr Ki Dusri Dawa Book>> https://amzn.to/4kuePs2

टहलते फिर रहे हैं सारे घर में
तिरी ख़ाली जगह को भर रहे है
 फ़हमी बदायूनी 

शायरी एक्सप्रेशन है , कैफ़ियत है , नज़ाकत है और attitude भी है -

काश वो रास्ते में मिल जाए
मुझ को मुँह फेर कर गुज़रना है

ख़ुशी से काँप रही थीं ये उँगलियाँ इतनी
डिलीट हो गया इक शख़्स सेव करने में

पूछ लेते वो बस मिज़ाज मिरा
कितना आसान था इलाज मिरा

बहुत कहती रही आँधी से चिड़िया
कि पहली बार बच्चे उड़ रहे हैं

फ़हमी बदायूनी 


छोटी बहर में कितने अच्छे  अशआर  कहे हैं  फ़हमी बदायूनी  साहब ने | लगातार शे'र कहते रहते थे  और नये-नये शब्द  ,नये ज़ाविये लेकर आते थे  | फ़ेसबुक पर हर रोज़ मुलाक़ात  हो जाती थी | सरहद पार तक इनके शे'र गूँज रहे थे  | ये भी  मीर के घराने से ही लगते  हैं  लेकिन  प्रयोग बहुत करते हैं  ,सादा अल्फाज़ में गहरी बात  कह  जाते थे | इस उम्दा शायर  को सलाम है |

शायर एक  तरह से दीवाने ही होते हैं  जैसे  जौन एलिया कहते हैं -

मैं भी बहुत अजीब हूँ इतना अजीब हूँ कि बस
 ख़ुद को तबाह कर लिया और मलाल भी नहीं


लेखक -सतपाल ख़याल @copyright

disclaimer-affiliatedlink in article


Wednesday, March 5, 2025

तहज़ीब हाफ़ी -बड़े शायर का बड़ा शे'र - पांचवीं क़िस्त


पेड़ मुझे हसरत से देखा करते थे
मैं जंगल में पानी लाया करता था

तहज़ीब हाफ़ी की शोहरत उसकी शायरी से बड़ी है और बहुत कम शायरों को ये नसीब होती है | मुशायरों में बहुत क्रेज़ है इनका और मुशायरे की शायरी थोड़ी अलग होती है जो वाह वाही की ज़्यादा परवाह करती है और तहजीब हाफ़ी ने युवा श्रोताओं की नब्ज़ पकड़ी है | इंटरनेट की दुनिया का सबसे पापुलर शायर है हांफ़ी|  पाकिस्तानी पंजाब के तौंसा शरीफ़ में 1989 में इनका जन्म हुआ | यहाँ की मिट्टी शायर और शायरी के शौकीन ज़्यादा पैदा करती है और लोग ज़मीन से जुड़े हुए सादगी पसंद  हैं | 

tehzeeb hafi shayari book in hindi >> https://amzn.to/4krZ7Og

सहरा से हो के बाग़ में आया हूँ सैर को
हाथों में फूल हैं मिरे पाँव में रेत है

मिरे हाथों से लग कर फूल मिट्टी हो रहे हैं
मिरी आँखों से दरिया देखना सहरा लगेगा

If you ask me I would say -Poetry is romance with sadness 

T.S. Eliot“Poetry is not an expression of personality but an escape from personality.”

शायर फ़रार  चाहता है  जैसे ग़ालिब कहता है -

रहिए अब ऐसी जगह चल कर जहाँ कोई न हो
हम-सुख़न कोई न हो और हम-ज़बाँ कोई न हो
मिर्ज़ा ग़ालिब





Tuesday, March 4, 2025

नासिर काज़मी -बड़े शायर का बड़ा शे'र -चौथी क़िस्त

 



अकेले घर से पूछती है बे-कसी
तिरा दिया जलाने वाले क्या हुए

जन्म: 8 दिसंबर 1925, अंबाला, ब्रिटिश भारत
मृत्यु: 2 मार्च 1972, लाहौर, पाकिस्तान

Samuel Taylor Coleridge -"Poetry- the best words in the best order."


सही शब्द , सही क्रम में ..ये बात ग़ज़ल पर बहुत फ़िट बैठती है | सही शब्द ,कम शब्द और  सही order में |ये काम मीर तक़ी मीर के बाद नासिर काज़मी साहब ने बहुत अच्छे से किया | बात  वही बस जुदा अंदाज़ में |  वही सिम्पल सिम्बली , दिया ,दरिया ,सहरा ,समन्दर ,कश्ती के ज़रिए बेमिसाल बात कह देना जैसे -,

हमारे घर की दीवारों पे 'नासिर'
उदासी बाल खोले सो रही है

नासिर काज़मी की शायरी की किताबें >> https://amzn.to/41ox3mf

नासिर ख़ुद मानते थे कि उन पर मीर का गहरा असर रहा लेकिन फिर भी पाठक तक मीर और नासिर  जुदा -जुदा पहुँचते हैं ,यही क़ाबलियत है अच्छे शायर की |  

शे’र होते हैं मीर के, नासिर
लफ़्ज़ बस दाएं बाएं करता है

एक अच्छा शे'र क्या होता है देखिए -

ओ पिछली रुत के साथी
अब के बरस मैं तन्हा हूँ

आती रुत मुझे रोएगी
जाती रुत का झोंका हूँ

शब्द अर्थ लेकर नहीं चलते बल्कि असर लेकर भी चलते हैं और  एक गहरी बात कहता चलूँ  शब्द असर ही नहीं कहने वाले के भाव की सच्चाई लेकर भी चलते हैं | मैंने कहीं पढ़ा है -

Language is intention not the words that comes out from your mouth nor the script in which it is written.


लेखक -सतपाल ख़याल @copyright
disclaimer-affiliatedlink in article



Monday, March 3, 2025

मुमताज़ गुर्मानी-बड़े शायर का बड़ा शे'र --तीसरी क़िस्त



 आज कुछ शहर के बूढ़ों से मिलूंगा जाकर 
आज मुद्धत से पड़े बंद मकां खोलूँगा 

मुमताज़ गुर्मानी , डेरा ग़ाज़ी ख़ान  दक्षिण-पश्चिमी पंजाब के मौजूदा दौर के उम्दा शायर हैं | जिस इलाक़े से ये आते हैं वहाँ के पानी की तासीर ही कुछ ऐसी है कि हर कोई शायरना मिज़ाज का लगता है | बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा के करीब का ये इलाक़ा , जैसे मै नें जाना लोग मिट्टी से ज़्यादा जुड़े हुए हैं,    शहरी हवा अभी यहाँ फिरी नहीं मालूम होती | छोटी-छोटी निशिस्तें करते हैं शायर और मज़ा लेते हैं | कहते हैं कि गुरमानी साहब मुशायरों में कम शिरकत करते हैं लेकिन क्या कमाल की शायरी करते हैं -

कभी मैं पूछता रहता था कौन है दर पर 
और अब मैं दौड़ के जाता हूँ और देखता हूँ 

सुना है मौत मुदावा है जीस्त के ग़म का 
रुको मैं जान से जाता हूँ और देखता हूँ 
मुमताज़ गुर्मानी

Best collection >पाकिस्तानी शायरी (हिन्दी में ) >> https://amzn.to/41EOLTK


इस दौर में बहुत शायरी हो रही है और शायर भी बेशुमार हैं ,ऐसा लगता है हर तीन में एक आदमी शायर हो गया हो लेकिन तकनीक के इस दौर शायरी से वो गहराई ग़ायब हो गई और ये बात भी सही है कि अच्छे शायर के लिए कम्पीटीशन न के बराबर है | कहीं-कहीं कोई गुरमानी साहब की तरह उम्दा शायर मिल जाता है | बाक़ी बहुत से शायर हैं जिन की शायरी उन की ज़ुल्फ़ों से कहीं कमतर हसीन है | नाम बड़े और दर्शन छोटे वाली बात है | खैर इस शायर का अपना एक अलग अंदाज़ है -

मुझ पे तन्हा नहीं अफ़्लाक के दर बंद हुए
मेरा दुश्मन भी मेरे साथ ज़मीं पर आया
मुमताज़ गुर्मानी

 हिन्दी के कवि शमशेर बहादुर सिंह लिखते  हैं न -
बात बोलेगी,
हम नहीं।
भेद खोलेगी
बात ही।
ऐसे ही शे'र बोलता , शायर नहीं और बानगी देखिए -

आज कुछ शहर के बूढ़ों से मिलूंगा जाकर 
आज मुद्धत से पड़े बंद मकां खोलूँगा 

लेखक -सतपाल ख़याल @copyright
disclaimer-affiliatedlink in article