Thursday, April 3, 2025
Saturday, March 29, 2025
खिड़की पर अश'आर
Monday, March 24, 2025
विनोद कुमार शुक्ल
Tuesday, March 18, 2025
"चर्ख़े" पर चंद अश'आर
Saturday, March 15, 2025
"पुल" लफ़्ज़ पर कुछ अश'आर
Thursday, March 13, 2025
"बटन" पर कुछ अशआर
एक शे'र मेरा भी -
तंज़ करते हैं क़मीज़ों के बटन टूटे हुए
सतपाल ख़याल
Monday, March 10, 2025
फ़हमी बदायूनी -बड़े शायर का बड़ा शे'र -6 वीं क़िस्त
4 जून 1952 बदायूँ , उत्तर प्रदेश
20 अक्तूबर 2024 बदायूँ ,उत्तर प्रदेश
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शायरी एक्सप्रेशन है , कैफ़ियत है , नज़ाकत है और attitude भी है -
शायर एक तरह से दीवाने ही होते हैं जैसे जौन एलिया कहते हैं -
मैं भी बहुत अजीब हूँ इतना अजीब हूँ कि बस
ख़ुद को तबाह कर लिया और मलाल भी नहीं
लेखक -सतपाल ख़याल @copyright
Wednesday, March 5, 2025
तहज़ीब हाफ़ी -बड़े शायर का बड़ा शे'र - पांचवीं क़िस्त
तहज़ीब हाफ़ी की शोहरत उसकी शायरी से बड़ी है और बहुत कम शायरों को ये नसीब होती है | मुशायरों में बहुत क्रेज़ है इनका और मुशायरे की शायरी थोड़ी अलग होती है जो वाह वाही की ज़्यादा परवाह करती है और तहजीब हाफ़ी ने युवा श्रोताओं की नब्ज़ पकड़ी है | इंटरनेट की दुनिया का सबसे पापुलर शायर है हांफ़ी| पाकिस्तानी पंजाब के तौंसा शरीफ़ में 1989 में इनका जन्म हुआ | यहाँ की मिट्टी शायर और शायरी के शौकीन ज़्यादा पैदा करती है और लोग ज़मीन से जुड़े हुए सादगी पसंद हैं |
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Tuesday, March 4, 2025
नासिर काज़मी -बड़े शायर का बड़ा शे'र -चौथी क़िस्त
Samuel Taylor Coleridge -"Poetry- the best words in the best order."
एक अच्छा शे'र क्या होता है देखिए -
शब्द अर्थ लेकर नहीं चलते बल्कि असर लेकर भी चलते हैं और एक गहरी बात कहता चलूँ शब्द असर ही नहीं कहने वाले के भाव की सच्चाई लेकर भी चलते हैं | मैंने कहीं पढ़ा है -
Language is intention not the words that comes out from your mouth nor the script in which it is written.
Monday, March 3, 2025
मुमताज़ गुर्मानी-बड़े शायर का बड़ा शे'र --तीसरी क़िस्त
इस दौर में बहुत शायरी हो रही है और शायर भी बेशुमार हैं ,ऐसा लगता है हर तीन में एक आदमी शायर हो गया हो लेकिन तकनीक के इस दौर शायरी से वो गहराई ग़ायब हो गई और ये बात भी सही है कि अच्छे शायर के लिए कम्पीटीशन न के बराबर है | कहीं-कहीं कोई गुरमानी साहब की तरह उम्दा शायर मिल जाता है | बाक़ी बहुत से शायर हैं जिन की शायरी उन की ज़ुल्फ़ों से कहीं कमतर हसीन है | नाम बड़े और दर्शन छोटे वाली बात है | खैर इस शायर का अपना एक अलग अंदाज़ है -
Saturday, March 1, 2025
मीर तक़ी मीर- बड़े शायर का बड़ा शे'र -दूसरी क़िस्त
मीर तक़ी मीर (1723 - 1810)
ओशो ने एक बार कहीं कहा था कि कवि और संत में एक बड़ा अंतर ये है कि संत हर वक़्त संत होता है और कवि सिर्फ़ उस वक़्त संत होता है जब कविता की आमद हो रही होती है क्योंकि कविता भी एक पारलौकिक घटना है जो किसी शाख़ पर नन्हीं कोंपल की तरह अपने आप फूटती है | ये बात और कि कवि उसे छंद से ,बहर से और उपमाओं से सजाता है | मीर शायद एक ऐसे शायर थे जो हर वक़्त फ़क़ीर भी रहे होंगे | सूफ़ीवाद या भक्ति काल जो 14वीं सदी से 17 वीं सदी तक रहा उस का असर 1723 में आगरा में जन्में मीर की शायरी में भी साफ़ झलकता है , हालांकि वो उर्दू के शायर रहे लेकिन उन का कलाम सूफ़ियों जैसा ही है ,एक दीवान उनका फ़ारसी में भी है ,छ: दीवान उर्दू में हैं | ग़ालिब भी मीर की तारीफ़ करते हुए कहते हैं -
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Friday, February 28, 2025
जौन एलिया -बड़े शायर का बड़ा शे'र पहली क़िस्त

विलियम शेक्सपीयर
भी कहते हैं -Friday, February 21, 2025
नासिर काज़मी- -ग़ज़ल
Saturday, February 15, 2025
ताज़ा ग़ज़ल - सतपाल ख़याल
आख़िर उन का जवाब आ ही गया
दिल के बदले गुलाब आ ही गया
रोज़ बदला है चाँद सा चहरा
रफ़्ता -रफ़्ता शबाब आ ही गया
बस इशारा सा इक किया उस ने
लेके साक़ी शराब आ ही गया
साथ लाया उदासियाँ अपने
इश्क़ ले कर अज़ाब आ ही गया
उस ने देखा पलट-पलट के "ख़याल"
कोशिशों का जवाब आ ही गया
Friday, February 14, 2025
झील में सोने का सिक्का -नवनीत शर्मा
ईश्वर का प्रमुख गुण है कि वो रचता है ,हर पल ,सतत सृजन करता है ईश्वर और फिर यही गुण कवि का भी है | फ़र्क केवल इतना है कि ईश्वर सहजता से ,स्वभाव से रचयिता है लेकिन कवि साधता है ,पहले विधा को ,भाषा को ,छन्द को , बह्र को ,भाव को और फिर छन्द को धागा बनाकर उसमें भाषा को ,भाव को ,अलंकार को पिरोता है और पाठक के सामने प्रस्तुत करता है | पाठक तक कविता या ग़ज़ल भाव रूप में पहुंचती है और भाव को कवि ने बह्र आदि से सजाया होता है तो पाठक उदास शेर पढ़कर भी विभोर हो जाता और बरबस वाह !! वाह !! कह उठता है | बात जब ग़ज़ल की हो तो बहुत फूँक –फूँक के क़दम रखना पढ़ता है , यानी जब आप किसी औरत से मुख़ातिब होते हैं तो आपके लहज़े में नरमी बहुत ज़रूरी है ,शायद इसीलिए ग़ज़ल को कभी माशूक सी की गई गुफ़्तगू कहा गया है | बात भले आप सियासत के ख़िलाफ़ करें ,भले शायर आक्रोश में हो लेकिन वो नरमी ग़ज़ल की असली पहचान है जैसे ये शेर, मैं नवनीत जी के ग़ज़ल संग्रह “झील में सोने का सिक्का” से रख रहा हूँ-
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ग़ज़ल हर घड़ी यूँ ही सोचता क्या है? क्या कमी है ,तुझे हुआ क्या है? किसने जाना है, जो तू जानेगा क्या ये दुनिया है और ख़ुदा क्या है? दर-बदर खाक़ ...
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आज हम ग़ज़ल की बहरों को लेकर चर्चा आरम्भ कर रहे हैं | आपके प्रश्नों का स्वागत है | आठ बेसिक अरकान: फ़ा-इ-ला-तुन (2-1-2-2) मु-त-फ़ा-इ-लुन(...






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