Saturday, March 8, 2014
Saturday, March 1, 2014
Wednesday, February 26, 2014
नफ़स अम्बालवी साहब की एक ग़ज़ल
उनकी किताब "सराबों का सफ़र" से एक ग़ज़ल आप सब की नज्र-
उसकी शफ़क़त का हक़ यूँ अदा कर दिया
उसको सजदा किया और खुदा कर दिया
उम्र भर मैं उसी शै से लिपटा रहा
जिस ने हर शै से मुझको जुदा कर दिया
इस लिए ही तो सर आज नेज़ों पे है
हम से जो कुछ भी उसने कहा कर दिया
दिल की तकलीफ़ जब हद से बढ़ने लगी
दर्द को दर्दे-दिल कि दवा कर दिया
ऐसे फ़नकार की सनअतों को सलाम
जिस ने पत्थर को भी देवता कर दिया
आप का मुझपे एहसान है दोस्तो
क्या था मैं, आपने क्या से क्या कर दिया
कौन गुज़रा दरख्तों को छू कर 'नफ़स'
ज़र्द पत्तों को किसने हरा कर दिया
शफ़क़त=मेहरबानी,सनअतों=कारीगरी
Tuesday, December 31, 2013
नये साल पर विशेष
ग़ज़ल-श्री द्विजेंद्र द्विज
ज़िन्दगी हो सुहानी नये साल में
दिल में हो शादमानी नये साल में
सब के आँगन में अबके महकने लगे
दिन को भी रात-रानी नये साल में
ले उड़े इस जहाँ से धुआँ और घुटन
इक हवा ज़ाफ़रानी नये साल में
इस जहाँ से मिटे हर निशाँ झूठ का
सच की हो पासबानी नये साल में
है दुआ अबके ख़ुद को न दोहरा सके
नफ़रतों की कहानी नये साल में
बह न पाए फिर इन्सानियत का लहू
हो यही मेहरबानी नये साल में
राजधानी में जितने हैं चिकने घड़े
काश हों पानी-पानी नये साल में
वक़्त ! ठहरे हुए आँसुओं को भी तू
बख़्शना कुछ रवानी नये साल में
ख़ुशनुमा मरहलों से गुज़रती रहे
दोस्तों की कहानी नये साल में
हैं मुहब्बत के नग़्मे जो हारे हुए
दे उन्हें कामरानी नये साल में
अब के हर एक भूखे को रोटी मिले
और प्यासे को पानी नये साल में
काश खाने लगे ख़ौफ़ इन्सान से
ख़ौफ़ की हुक्मरानी नये साल में
देख तू भी कभी इस ज़मीं की तरफ़
ऐ नज़र आसमानी ! नये साल में
कोशिशें कर, दुआ कर कि ज़िन्दा रहे
द्विज ! तेरी हक़-बयानी नये साल में.
ज़िन्दगी हो सुहानी नये साल में
दिल में हो शादमानी नये साल में
सब के आँगन में अबके महकने लगे
दिन को भी रात-रानी नये साल में
ले उड़े इस जहाँ से धुआँ और घुटन
इक हवा ज़ाफ़रानी नये साल में
इस जहाँ से मिटे हर निशाँ झूठ का
सच की हो पासबानी नये साल में
है दुआ अबके ख़ुद को न दोहरा सके
नफ़रतों की कहानी नये साल में
बह न पाए फिर इन्सानियत का लहू
हो यही मेहरबानी नये साल में
राजधानी में जितने हैं चिकने घड़े
काश हों पानी-पानी नये साल में
वक़्त ! ठहरे हुए आँसुओं को भी तू
बख़्शना कुछ रवानी नये साल में
ख़ुशनुमा मरहलों से गुज़रती रहे
दोस्तों की कहानी नये साल में
हैं मुहब्बत के नग़्मे जो हारे हुए
दे उन्हें कामरानी नये साल में
अब के हर एक भूखे को रोटी मिले
और प्यासे को पानी नये साल में
काश खाने लगे ख़ौफ़ इन्सान से
ख़ौफ़ की हुक्मरानी नये साल में
देख तू भी कभी इस ज़मीं की तरफ़
ऐ नज़र आसमानी ! नये साल में
कोशिशें कर, दुआ कर कि ज़िन्दा रहे
द्विज ! तेरी हक़-बयानी नये साल में.
Thursday, October 31, 2013
Thursday, September 19, 2013
फ़ानी जोधपुरी
ग़ज़ल
रात की बस्ती बसी है घर चलो
तीरगी ही तीरगी है घर चलो
क्या भरोसा कोई पत्थर आ लगे
जिस्म पे शीशागरी है घर चलो
हू-ब-हू बेवा की उजड़ी मांग सी
ये गली सूनी पड़ी है घर चलो
तू ने जो बस्ती में भेजी थी सदा
लाश उसकी ये पड़ी है घर चलो
क्या करोगे सामना हालत का
जान तो अटकी हुई है घर चलो
कल की छोड़ो कल यहाँ पे अम्न था
अब फ़िज़ा बिगड़ी हुई है घर चलो
तुम ख़ुदा तो हो नहीं इन्सान हो
फ़िक्र क्यूँ सबकी लगी है घर चलो
माँ अभी शायद हो "फ़ानी" जागती
घर की बत्ती जल रही है घर चलो
Thursday, August 29, 2013
सुरेन्द्र चतुर्वेदी जी की एक ग़ज़ल
ग़ज़ल
तमाम उम्र मेरी ज़िंदगी से कुछ न हुआ
हुआ अगर भी तो मेरी ख़ुशी से कुछ न हुआ
कई थे लोग किनारों से देखने वाले
मगर मैं डूब गया था, किसी से कुछ न हुआ
तमाम उम्र मेरी ज़िंदगी से कुछ न हुआ
हुआ अगर भी तो मेरी ख़ुशी से कुछ न हुआ
कई थे लोग किनारों से देखने वाले
मगर मैं डूब गया था, किसी से कुछ न हुआ
हमें ये फ़िक्र के मिट्टी के हैं मकां अपने
उन्हें ये रंज कि बहती नदी से कुछ न हुआ
रहे वो क़ैद किसी ग़ैर के ख़यालों में
यही वजह कि मेरी बेरुख़ी से कुछ न हुआ
लगी जो आग तो सोचा उदास जंगल ने
हवा के साथ रही दोस्ती से कुछ न हुआ
मुझे मलाल बहुत टूटने का है लेकिन
करूँ मैं किससे गिला जब मुझी से कुछ न हुआ
उन्हें ये रंज कि बहती नदी से कुछ न हुआ
रहे वो क़ैद किसी ग़ैर के ख़यालों में
यही वजह कि मेरी बेरुख़ी से कुछ न हुआ
लगी जो आग तो सोचा उदास जंगल ने
हवा के साथ रही दोस्ती से कुछ न हुआ
मुझे मलाल बहुत टूटने का है लेकिन
करूँ मैं किससे गिला जब मुझी से कुछ न हुआ
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