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न पाने से किसी के है, न कुछ खोने से मतलब है
ये दुनिया है इसे तो कुछ न कुछ होने से मतलब है
गुज़रते वक़्त के पैरों में ज़ंजीरें नहीं पड़तीं
हमारी उम्र को हर लम्हा कम होने से मतलब है..वसीम बरेलवी
इस नये साल के मौक़े पर द्विज जी की ग़ज़ल मुलाहिज़ा कीजिए जो किसी दुआ से कम नहीं है और आप सब को नये साल की शुभकामनाएँ।
द्विजेन्द्र द्विज
ज़िन्दगी हो सुहानी नये साल में
दिल में हो शादमानी नये साल में
सब के आँगन में अबके महकने लगे
दिन को भी रात-रानी नये साल में
ले उड़े इस जहाँ से धुआँ और घुटन
इक हवा ज़ाफ़रानी नये साल में
इस जहाँ से मिटे हर निशाँ झूठ का
सच की हो पासबानी नये साल में
है दुआ अबके ख़ुद को न दोहरा सके
नफ़रतों की कहानी नये साल में
बह न पाए फिर इन्सानियत का लहू
हो यही मेहरबानी नये साल में
राजधानी में जितने हैं चिकने घड़े
काश हों पानी-पानी नये साल में
वक़्त! ठहरे हुए आँसुओं को भी तू
बख़्शना कुछ रवानी नये साल में
ख़ुशनुमा मरहलों से गुज़रती रहे
दोस्तों की कहानी नये साल में
हैं मुहब्बत के नग़्मे जो हारे हुए
दे उन्हें कामरानी नये साल में
अब के हर एक भूखे को रोटी मिले
और प्यासे को पानी नये साल में
काश खाने लगे ख़ौफ़ इन्सान से
ख़ौफ़ की हुक्मरानी नये साल में
देख तू भी कभी इस ज़मीं की तरफ़
ऐ नज़र आसमानी ! नये साल में
कोशिशें कर, दुआ कर कि ज़िन्दा रहे
द्विज ! तेरी हक़-बयानी नये साल में.