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Monday, September 27, 2021

ग़ज़ल की बाबत : वीनस केसरी -ग़ज़ल लेखन के बारे में


प्रयागराज, उत्तर प्रदेश में पुस्तक व्यवसाय से जुड़े वीनस केसरी स्वयं युवा ग़ज़लकार है तथा न केवल ग़ज़ल की बारीकियों की गहरी समझ रखते हैं, आप हमेशा इस जानकारी को अन्य साथियों के साथ साझा करने के लिये भी तत्पर रहते हैं। जब अरूज़ की बात होती है, तो देवनागरी में इतने विस्तार के साथ ग़ज़ल के व्याकरण को सरल भाषा में प्रस्तुत करने के कारण वीनस केसरी की पुस्तक ‘ग़ज़ल की बाबत’ ही ग़ज़ल के पुरोधाओं और नए सीखने वालों की पहली पसंद है|
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Thursday, September 11, 2008

छोटी बहर की दो ग़ज़लें









ग़ज़ल १

उघड़ी चितवन
खोल गई मन

उजले हैं तन
पर मैले मन

उलझेंगे मन
बिखरेंगे जन

अंदर सीलन
बाहर फिसलन

हो परिवर्तन
बदलें आसन

बेशक बन—ठन
जाने जन—जन

भरता मेला
जेबें ठन—ठन

जर्जर चोली
उधड़ी सावन

टूटा छप्पर
सर पर सावन

मन ख़ाली हैं
लब 'जन—गण—मन'

तन है दल—दल
मन है दर्पन

मृत्यु पोखर
झरना जीवन

निर्वासित है
क्यूँ 'जन—गण—मन'

खलनायक का
क्यूँ अभिनंदन

द्विजेंन्द्र द्विज
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ग़ज़ल २

क्या सितम है
दर्द कम है

राहत-ए-जां
हर सितम है

क़लब सोजां
चश्म नम है

ग़म बहुत हो
फ़िर भी कम है.

दिल हमारा
जाम-ए-जम है

जिंदगी कम
दम-ब-दम है

दिल मे ढूँढो
वो सनम है.

क़लब-ए-अखगर
वक्फ़-ए-गम है.

हनीफ़ अखगर

(ये यक रुक्नी ग़ज़ल है -फ़ाइलातुन-२१२२)