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Wednesday, January 14, 2009
बिरजीस राशिद आरफ़ी की ग़ज़लें
जुलाई, १९४३ को क़स्बा चाँद्पुर (देहरादून) में जन्मे जनाबे-बिरजीस राशिद आरफ़ी साहब को भारत के लगभग तमाम नामी-गिरामी शायरों की मौजूदगी में अपने फ़न का जादू जगा चुके हैं. "राशिद आरफ़ी साहब की ग़ज़लों का एक-एक शेर उनके चिन्तन की गहराई और विधा पर उनकी मज़बूत पकड़ का जादू सुनने-पढ़ने वालों के सर चढ़कर बोलने की क़ाबिलियत रखता है, यह मैंने उनका शेरी मजमूआ (काव्य-संग्रह) "जैसा भी है" पढ़कर महसूस किया है." -द्विजेन्द्र 'द्विज'
आज की ग़ज़ल के पाठकों के लिए प्रस्तुत हैं उनकी ये तीन ग़ज़लें:
ग़ज़ल
धूम ऐसी मचा गया कोहरा
जैसे सूरज को खा गया कोहरा
बन के अफ़वाह छा गया कोहरा
बंद कमरों मे आ गया कोहरा
तेरे पन्नों पे आज ऐ अख़बार
कितनी लाशें बिछा गया कोहरा
साँस के साथ दिल की रग-रग में
बर्फ़ की तह जमा गया कोहरा
अपने बच्चों से क्या कहे मज़दूर
घर का चूल्हा बुझा गया कोहरा
धूप कितनी अज़ीम नेमत है
चार दिन में बता गया कोहरा
उनके चेहरे पे सुरमई आँचल
चाँद पे जैसे छा गया कोहरा.
ग़ज़ल
रात भर ढूँढता फिरा जुगनू
सुब्ह को ख़ुद ही खो गया जुगनू
रोशनी सब की खा गया सूरज
चाँद ,तारे, शमा, दिया, जुगनू
तीरगी से यह जंग जारी रख
हौसला तेरा मरहवा जुगनू
क्यों न ख़ुश हो ग़रीब की बिटिया
उसकी मुठ्ठी में आ गया जुगनू
नूर तो हर जगह पहुँचता है
कूड़ियों में पला-बढ़ा जुगनू
धुँधले-धुँधले- से हो गए तारे
मिस्ले कन्दील जब उड़ा जुगनू
चेहरे बच्चों के बुझ गए 'राशिद'
माँ के आँचल में मर गया जुगनू.
ग़ज़ल
भूल पाए न थे ट्रेन का हादसा
आज फिर हो गया एक नया हादसा
जाने क्या हो गया आजकल दोस्तो
रोज़ होता है कल से बड़ा हादसा
बाप का साया और काँच की चूड़ियाँ
एक ही पल में सब ले गय हादसा
ऐ ख़ुदा, ईश्चर,गाड, वाहे गुरु
तेरे घर में भी होने लगा हादसा
मैं हूँ शायर, हक़ीक़त करूँगा बयाँ
साज़िशों को कहूँ, क्यों भला हादसा?
किसको फ़ुर्सत है,ये कौन सोचे यहाँ
हो गया किस गुनाह की सज़ा हादसा
तेरे घर के सभी लोग महफ़ूज़ हैं
भूल जा 'आरफ़ी' जो हुआ हादसा.
संपर्क: बिरजीस राशिद 'आरफ़ी',
ग्राम:हरिपुर ,ज़िला: देहरादून- 248142
पोस्ट:हरबर्टपुर,ज़िला: देहरादून(उत्तराखण्ड)
दूरभाष 01360-258728
09897448028
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