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शे’र मेरे तो हैं बस हर्फ़े-तसल्ली की तरह
मैं मसीहा नहीं सूली पे चढ़ाओ न मुझे
एक
यूँ तो एक उम्र साथ-साथ हुई
जिस्म की रूह से न बात हुई
क्यों ख़यालों मे रोज़ आते हैं
इक मुलाक़ात जिनके साथ हुई
कितना सोचा था दिल लगाएँगे
सोचते-सोचते हयात हुई
लाख ताकीद हुस्न करता रहा
इश्क़ से ख़ाक अहतियात हुई
इक फ़क़त वस्ल का न वक़्त हुआ
दिन हुआ रोज, रोज़ रात हुई
क्या बताएँ बिसात ज़र्रे की
ज़र्रे-ज़र्रे से कायनात हुई
शायद आई है रुत चुनावों की
कल जो कूचे में वारदात हुई
क्या थी मुशकिल *विसाले-हक़ में "सदा"
तुझ से बस रद्द न तेरी ज़ात हुई
*विसाले-हक़--प्रभु मिलन
बहरे-खफ़ीफ़ की मुज़ाहिफ़ शक्ल
फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़ालुन
2122 1212 22/112
दो
दिल न माना मना के देख लिया
लाख समझा-बुझा के देख लिया
वो जो मूसा ने तूर पर देखा
हमने पर्दा उठाके देख लिया
लोग कहते हैं दिल लगाना जिसे
रोग वो भी लगा के देख लिया
बेवफ़ाई है तेरी रग-रग में
आज़मा, आज़मा के देख लिया
ज़ख्म दिल का है लादवा यारो
चारागर को दिखाके देख लिया
उनसे निभता नहीं कोई रिश्ता
दोस्त, दुशमन बना के देख लिया
उनका नज़रें चुरा के देखना भी
उनसे नज़रें चुरा के देख लिया
बहरे-खफ़ीफ़ की मुज़ाहिफ़ शक्ल
फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़ालुन
2122 1212 22/112
तीन
दाग़े-दिल दुनिया की नज़रों से छुपाने के लिए
दिल जो रोए भी तो हँस देंगे दिखाने के लिए
लीजिए *रस्में-मुदारात निभाने के लिए
हम भी पी लेते हैं यारों को पिलाने के लिए
ज़िंदगी रस्म है इक मौत से पहले शायद
साँस लेते रहो तुम रस्म निभाने के लिए
ख़ान-ए-दिल पे तेरी याद है क़ाबिज़ वर्ना
दर्द क्या-क्या नहीं इस घर को सजाने के लिए
रंग लाई है "सदा" खूब तेरी *हक़गोई
चार कांधे न मिले लाश उठाने के लिए
रमल की मुज़ाहिफ़ सूरत
फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ालुन
2122 1122 1122 112/22
हक़गोई-सच बयानी , रस्में-मुदारात -मेहमाँ नवाज़ी