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Saturday, March 21, 2009

जगदीश रावतानी की एक ग़ज़ल










1956 मे जन्मे जगदीश रावतानी प्रसिद्व कवि हैं और इन्होंने छोटे पर्दे पर कई धारावाहिकों मे अभिनय भी किया है.कई प्रतिभाओं के मालिक हैं जगदीश जी. आज की ग़ज़ल के पाठकों के लिए उनकी एक ग़ज़ल पेश है:


ग़ज़ल

गो मैं तेरे जहाँ मैं ख़ुशी खोजता रहा
लेकिन ग़मों-अलम से सदा आशना रहा

हर कोई आरजू में कि छू ले वो आसमां
इक दूसरे के पंख मगर नोचता रहा

यादों मैं तेरे अक्स का पैकर तराश कर
आईना रख के सामने मैं जागता रहा

कैसे किसी के दिल में खिलाता वो कोई गुल
जो नफरतों के बीज सदा बीजता रहा

आती नज़र भी क्यूं मुझे मंजिल की रौशनी
छोडे हुए मैं नक्शे कदम देखता रहा

सच है कि मैं किसी से मुहव्बत न कर सका
ता उम्र प्रेम ग्रंथ मगर बांचता रहा

बहरे-मज़ारिअ
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईल फ़ाइलुन
221 2121 1221 2 12

शायर का पता
BS-19 Shiva Enclave, A/4 Pashchim Vihar, New Delhi -110063
Ph. 011-25252635,98111-50638
jagdishrawtani@rediffmail.com