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राजेन्द्र नाथ 'रहबर`अदब की दुनिया का एक जाना पहचाना नाम है.इन्होंने ने हिन्दू कॉलेज अमृतसर से बी.ए., ख़ालसा कॉलेज अमृतसर से एम.ए. (अर्थ शास्त्र) और पंजाब यूनिवर्सिटी चण्डीगढ़ से एल. एल.बी. की .इन्होने शायरी का फ़न पंजाब के उस्ताद शायर पं.'रतन` पंडोरवी से सीखा जो प्रसिद्ध शायर अमीर मीनाई के चहेते शार्गिद थे। इनकी एक नज्म़ ''तेरे ख़ुशबू में बसे ख़त`` को विश्व व्यापी शोहरत नसीब हुई है। ग़ज़ल गायक श्री जगजीत सिंह इस नज्म़ को 1980 ई. से अपनी मख़्मली आवाज़ में गा रहे हैं .
प्रकाशित पुस्तकें :याद आऊंगा ,तेरे ख़ुशबू में बसे ख़त,जेबे सुख़न, ..और शाम ढल गई, मल्हार , कलस ,आगो़शे-गुल ,
आज की ग़ज़ल के पाठकों के लिए आज हम इनकी दो ग़ज़लें पेश कर रहे हैं.
ग़ज़ल
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क्या क्या सवाल मेरी नज़र पूछती रही
लेकिन वो आंख थी कि बराबर झुकी रही
मेले में ये निगाह तुझे ढूँढ़ती रही
हर महजबीं से तेरा पता पूछती रही
जाते हैं नामुराद तेरे आस्तां से हम
ऐ दोस्त फिर मिलेंगे अगर ज़िंदगी रही
आंखों में तेरे हुस्न के जल्वे बसे रहे
दिल में तेरे ख़याल की बस्ती बसी रही
इक हश्र था कि दिल में मुसलसल बरपा रहा
इक आग थी कि दिल में बराबर लगी रही
मैं था, किसी की याद थी, जामे-शराब था
ये वो निशस्त थी जो सहर तक जमी रही
शामे-विदा-ए-दोस्त का आलम न पूछिये
दिल रो रहा था लब पे हंसी खेलती रही
खुल कर मिला, न जाम ही उस ने कोई लिया
'रहबर` मेरे ख़ुलूस में शायद कमी रही
बहरे-मज़ारे
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईल फ़ाइलुन
221 2121 1221 2 12
ग़ज़ल
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जिस्मो-जां घायल, परे-परवाज़ हैं टूटे हुये
हम हैं यारों एक पंछी डार से बिछुड़े हुये
आप अगर चाहें तो कुछ कांटे भी इस में डाल दें
मेरे दामन में पड़े हैं फूल मुरझाये हुये
आज उस को देख कर आंखें मुनव्वर हो गयीं
हो गई थी इक सदी जिस शख्स़ को देखे हुये
फिर नज़र आती है नालां मुझ से मेरी हर ख़ुशी
सामने से फिर कोई गुज़रा है मुंह फेरे हुये
तुम अगर छू लो तबस्सुम-रेज़ होंटों से इसे
देर ही लगती है क्या कांटे को गुल होते हुये
वस्ल की शब क्या गिरी माला तुम्हारी टूट कर
जिस क़दर मोती थे वो सब अर्श के तारे हुये
क्या जचे 'रहबर` ग़ज़ल-गोई किसी की अब हमें
हम ने उन आंखों को देखा है ग़ज़ल कहते हुये
बहरे-रमल
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
2122 2122 2122 212
पता:
राजेन्द्र नाथ 'रहबर`
1085, सराए मुहल्ला,
पठानकोट-145001
पंजाब