मैनें लफ़्ज़ों को बरतने में लहू थूक दिया
आप तो सिर्फ़ ये देखेंगे ग़ज़ल कैसी है
मुनव्वर साहब का ये शे’र बेमिसाल है और अच्छी ग़ज़ल कहने में होने वाली मश्क की तरफ इशारा करता है।लफ़्ज़ों को बरतने का सलीका आना बहुत ज़रूरी है और ये उस्ताद की मार और निरंतर अभ्यास से ही आ सकता है।ग़ज़ल जैसी सिन्फ़ का हज़ारों सालों से ज़िंदा रहने का यही कारण है शायर शे’र कहने के लिए बहुत मश्क करता है और इस्लाह शे’र को निखार देती है। लफ़्ज़ों की थोड़ी सी फेर-बदल से मायने ही बदल जाते हैं।
नाज़ुकी उसके लब की क्या कहिए,
पंखुड़ी इक गुलाब की सी है
दूसरे मिसरे में सी के इस्तेमाल ने शे’र की नाज़ुकी को दूना कर दिया है। इसी हुनर की तरफ़ मुनव्वर साहब ने इशारा किया है। खैर!मुशायरे की अंतिम क़िस्त में मुझे अपनी ग़ज़ल आपके सामने रखते हुए एक डर सा लग रहा है। जब आप ग़ज़ल की बारीकियों की बात करते हैं तो अपना कलाम रखते वक़्त डर लगेगा ही। ये बहर सचमुच कठिन थी और अब पता चला की मुनीर नियाज़ी ने पाँच ही शे’र क्यों कहे। कई दिन इस ग़ज़ल पर द्विज जी से चर्चा होती रही। और ग़ज़ल आपके सामने है । Only Result counts , not long hours of working..ये भी सच है।
सतपाल ख़याल
उन गलियों में जा कर देखो
गुज़रा वक़्त बुला कर देखो
क्या-क्या जिस्म के साथ जला है
अब तुम राख उठा कर देखो
क्यों सूली पर सच का सूरज
सोच के दीप जला कर देखो
हम क्या थे? क्या हैं? क्या होंगे?
थोड़ी खाक़ उठा कर देखो
दर्द के दरिया थम से गए हैं
ज़ख़्म नए फिर खा कर देखो
मुशायरे में हिस्सा लेने वाले सब शायरों का तहे-दिल से शुक्रिया और कुछ शायरों को तकनीकी खामियों के चलते हम शामिल नहीं कर सके, जिसका हमें खेद है।
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Friday, December 3, 2010
Monday, November 29, 2010
सोच के दीप जला कर देखो
इस बहर में शे’र कहना सचमुच पाँव में पत्थर बाँध कर पहाड़ पर चढ़ने जैसा है। क्योंकि इसमें तुकबंदी की तो बहुत गुंज़ाइश थी लेकिन शे’र कहना बहुत कठिन। इसी वज़ह से तीन-चार शायरों को हम इसमें शामिल नहीं कर सके । दानिश भारती जी(मुफ़लिस) ने कुछ ग़ल्तियों की तरफ़ इशारा किया था, उनको हमने सुधारने की कोशिश की है और आप सबसे गुज़ारिश है कि कहीं कुछ ग़ल्ति नज़र आए तो ज़रूर बताएँ। हमारा मक़सद यह भी रहता है कि नये प्रयासों को भी आपके सामने लेकर आएँ और अनुभवी शायरों को भी। भावनाएँ तो हर शायर की एक जैसी होती हैं लेकिन उनको व्यक्त करने की शैली जुदा होती है। और यही अंदाज़े-बयां एक शायर को दूसरे से जुदा करता है और यही महत्वपूर्ण है।
द्विज जी का ये शे’र
यह बस्ती कितनी रौशन है
सोच के दीप जला कर देखो
इसी अंदाज़े-बयां का एक उदाहरण है। हर शायर ने तारीकी दूर करने के लिए सोच के दीप जलाए हैं लेकिन बस्ती कितनी रौशन है उसको देखने के लिए भी सोच के दीप जलाए जा सकते हैं । बात को जुदा तरीके से रखने का ये हुनर ही शायरी है जिसकी मिसाल है ये एक और शे’र -
जाओ, इक भूखे बच्चे को
लोरी से बहला कर देखो
अगली और अंतिम क़िस्त में मैं अपना प्रयास आपके सामने रखूंगा।लीजिए मुलाहिज़ा कीजिए द्विज जी की ग़ज़ल-
द्विजेंद्र द्विज
चोट नई फिर खा कर देखो
शहरे-वफ़ा में आ कर देखो
अपनी छाप गँवा बैठोगे
उनसे हाथ मिला कर देखो
आए हो मुझको समझाने
ख़ुद को भी समझा कर देखो
सपनों को परवाज़ मिलेगी
आस के पंख लगा कर देखो
जिनपे जुनूँ तारी है उनको
ज़ब्त का जाम पिलाकर देखो
जाओ, इक भूखे बच्चे को
लोरी से बहला कर देखो
लड़ जाते हो दुनिया से तुम
ख़ुद से आँख मिला कर देखो
यह बस्ती कितनी रौशन है
सोच के दीप जला कर देखो
सन्नाटे की इस बस्ती में
‘द्विज’, अशआर सुना कर देखो
द्विज जी का ये शे’र
यह बस्ती कितनी रौशन है
सोच के दीप जला कर देखो
इसी अंदाज़े-बयां का एक उदाहरण है। हर शायर ने तारीकी दूर करने के लिए सोच के दीप जलाए हैं लेकिन बस्ती कितनी रौशन है उसको देखने के लिए भी सोच के दीप जलाए जा सकते हैं । बात को जुदा तरीके से रखने का ये हुनर ही शायरी है जिसकी मिसाल है ये एक और शे’र -
जाओ, इक भूखे बच्चे को
लोरी से बहला कर देखो
अगली और अंतिम क़िस्त में मैं अपना प्रयास आपके सामने रखूंगा।लीजिए मुलाहिज़ा कीजिए द्विज जी की ग़ज़ल-
द्विजेंद्र द्विज
चोट नई फिर खा कर देखो
शहरे-वफ़ा में आ कर देखो
अपनी छाप गँवा बैठोगे
उनसे हाथ मिला कर देखो
आए हो मुझको समझाने
ख़ुद को भी समझा कर देखो
सपनों को परवाज़ मिलेगी
आस के पंख लगा कर देखो
जिनपे जुनूँ तारी है उनको
ज़ब्त का जाम पिलाकर देखो
जाओ, इक भूखे बच्चे को
लोरी से बहला कर देखो
लड़ जाते हो दुनिया से तुम
ख़ुद से आँख मिला कर देखो
यह बस्ती कितनी रौशन है
सोच के दीप जला कर देखो
सन्नाटे की इस बस्ती में
‘द्विज’, अशआर सुना कर देखो
Thursday, November 25, 2010
सोच के दीप जला कर देखो-आठवीं क़िस्त
पहले शायर : कमल नयन शर्मा । आप द्विज जी के भाई हैं और एयर-फ़ोर्स में हैं। इस मंच पर हम इनका स्वागत करते हैं।
कमल नयन शर्मा
दुख को मीत बना कर देखो
खुद को सँवरा पा कर देखो
मिलता है वो, मिल जाएगा
मन के अंदर जाकर देखो
कब भरते हैं पेट दिलासे
असली फ़स्लें पाकर देखो
भर देंगे वो तेरी झोली
उनकी धुन में गा कर देखो
कब लौटे है जाने वाले
फिर भी आस लगाकर देखो
मत भटको यूं द्वारे-द्वारे
सोच के दीप जला कर देखो
आप 'कमल' खुद खिल जाओगे
जल से बाहर आकर देखो
दूसरे शायर हैं जनाब कवि कुलवंत जी
कुलवंत सिंह
सोच के दीप जला कर देखो
खुशियां जग बिखरा कर देखो
सबको मीत बना कर देखो
प्रेम का पाठ पढ़ा कर देखो
खून बने अपना ही दुश्मन
हक़ अपना जतला कर देखो
मज़मा दो पल में लग जाता
कुछ सिक्के खनका कर देखो
सिलवट माथे दिख जायेंगी
शीशे को चमका कर देखो
जनता उलझी है सालों से
नेता को उलझा कर देखो
खुद में खोये यह बहरे हैं
जोर से ढ़ोल बजा कर देखो
और शाइरा निर्मला कपिला जी का स्वागत है आज की ग़ज़ल पर।
निर्मला कपिला
मन की मैल हटा कर देखो
सोच के दीप जला कर देखो
सुख में साथी सब बन जाते
दुख में साथ निभा कर देखो
राम खुदा का झगडा प्यारे
अब सडकों पर जा कर देखो
लडने से क्या हासिल होगा?
मिलजुल हाथ मिला कर देखो
औरों के घर रोज़ जलाते
अपना भी जलवा कर देखो
देता झोली भर कर सब को
द्वार ख़ुदा के जाकर देखो
बिन रोजी के जीना मुश्किल
रोटी दाल चला कर देखो
कमल नयन शर्मा
दुख को मीत बना कर देखो
खुद को सँवरा पा कर देखो
मिलता है वो, मिल जाएगा
मन के अंदर जाकर देखो
कब भरते हैं पेट दिलासे
असली फ़स्लें पाकर देखो
भर देंगे वो तेरी झोली
उनकी धुन में गा कर देखो
कब लौटे है जाने वाले
फिर भी आस लगाकर देखो
मत भटको यूं द्वारे-द्वारे
सोच के दीप जला कर देखो
आप 'कमल' खुद खिल जाओगे
जल से बाहर आकर देखो
दूसरे शायर हैं जनाब कवि कुलवंत जी
कुलवंत सिंह
सोच के दीप जला कर देखो
खुशियां जग बिखरा कर देखो
सबको मीत बना कर देखो
प्रेम का पाठ पढ़ा कर देखो
खून बने अपना ही दुश्मन
हक़ अपना जतला कर देखो
मज़मा दो पल में लग जाता
कुछ सिक्के खनका कर देखो
सिलवट माथे दिख जायेंगी
शीशे को चमका कर देखो
जनता उलझी है सालों से
नेता को उलझा कर देखो
खुद में खोये यह बहरे हैं
जोर से ढ़ोल बजा कर देखो
और शाइरा निर्मला कपिला जी का स्वागत है आज की ग़ज़ल पर।
निर्मला कपिला
मन की मैल हटा कर देखो
सोच के दीप जला कर देखो
सुख में साथी सब बन जाते
दुख में साथ निभा कर देखो
राम खुदा का झगडा प्यारे
अब सडकों पर जा कर देखो
लडने से क्या हासिल होगा?
मिलजुल हाथ मिला कर देखो
औरों के घर रोज़ जलाते
अपना भी जलवा कर देखो
देता झोली भर कर सब को
द्वार ख़ुदा के जाकर देखो
बिन रोजी के जीना मुश्किल
रोटी दाल चला कर देखो
Monday, November 22, 2010
सोच के दीप जला कर देखो-सातवीं क़िस्त
रंजन के इस खूबसूरत शे’र-
कष्ट, सृजन की नींव बनेगा
सोच के दीप जला कर देखो
के साथ हाज़िर हैं तरही की अगली दो ग़ज़लें-
रंजन गोरखपुरी
नफ़रत बैर मिटा कर देखो
प्यार के फूल खिला कर देखो
गुंजाइश मुस्कान की है बस
बिगडी बात बना कर देखो
ग़ज़लें बेशक छलकेंगी फिर
बस तस्वीर उठा कर देखो
डोर जुडी हो अब भी शायद
वक्त की धूल उड़ा कर देखो
मुझसे सरहद अक्सर कहती
मसले चंद भुला कर देखो
राम को फिर वनवास मिला है
आज अयोध्या जा कर देखो
मिले बुलंदी बेशक साहेब
घर में वक्त बिता कर देखो
कष्ट, सृजन की नींव बनेगा
सोच के दीप जला कर देखो
अरसे बाद मिले हो "रंजन"
कोई शेर सुना कर देखो
डा.अजमल हुसैन खान माहक
हाथ से हाथ मिला कर देखो
सपने साथ सजा कर देखो
दुनिया तकती किसकी जानिब
"ओवामा" तुम आ कर देखो
हैं नादाँ जो दीवाने से
उनको भी समझा कर देखो
सब अँधियारा मिट जायेगा
सोच के दीप जला कर देखो
बात नही ये रुकने वाली
"माहक" आस लगा कर देखो।
कष्ट, सृजन की नींव बनेगा
सोच के दीप जला कर देखो
के साथ हाज़िर हैं तरही की अगली दो ग़ज़लें-
रंजन गोरखपुरी
नफ़रत बैर मिटा कर देखो
प्यार के फूल खिला कर देखो
गुंजाइश मुस्कान की है बस
बिगडी बात बना कर देखो
ग़ज़लें बेशक छलकेंगी फिर
बस तस्वीर उठा कर देखो
डोर जुडी हो अब भी शायद
वक्त की धूल उड़ा कर देखो
मुझसे सरहद अक्सर कहती
मसले चंद भुला कर देखो
राम को फिर वनवास मिला है
आज अयोध्या जा कर देखो
मिले बुलंदी बेशक साहेब
घर में वक्त बिता कर देखो
कष्ट, सृजन की नींव बनेगा
सोच के दीप जला कर देखो
अरसे बाद मिले हो "रंजन"
कोई शेर सुना कर देखो
डा.अजमल हुसैन खान माहक
हाथ से हाथ मिला कर देखो
सपने साथ सजा कर देखो
दुनिया तकती किसकी जानिब
"ओवामा" तुम आ कर देखो
हैं नादाँ जो दीवाने से
उनको भी समझा कर देखो
सब अँधियारा मिट जायेगा
सोच के दीप जला कर देखो
बात नही ये रुकने वाली
"माहक" आस लगा कर देखो।
Saturday, November 20, 2010
सोच के दीप जला कर देखो- छटी क़िस्त
इस ब्लागिंग के ज़रिये एक नया परिवार बन गया है-ग़ज़ल परिवार। जिनके मुखिया जैसे थे महावीर जी। उनका अचनाक चले जाना बहुत दुखद है। हम सब अब एक अनोखे से बंधन में बंध गए हैं। शब्दों और शे’रों का रिश्ता सा बन गया है आप सब से। है तो ये सब एक सपना सा ही लेकिन हक़ीकत से कम नहीं। खैर! ये तो रंग-मंच है। जब अपना क़िरदार ख़त्म हुआ तो परदे के पीछे चले जाना हैं। लेकिन खेल चलता रहता है , यही सब से बड़ी माया है। महावीर जी को आज की ग़ज़ल की तरफ से विनम्र श्रदाँजलि। तरही मुशायरे के क्रम को आगे बढ़ाते हैं।
मुशायरे के अगले शायर और शाइरा हिमाचल प्रदेश से हैं। मिसरा-ए-तरह" सोच के दीप जला कर देखो" पर इनकी ग़ज़लें मुलाहिज़ा कीजिए।
चंद्र रेखा ढडवाल
सूनी आँख सजा कर देखो
सपना एक जगा कर देखो
यह भी एक दुआ, पिंजरे से
पाखी एक उड़ा कर देखो
तपती रेत पे सहरा की तुम
दरिया एक बहा कर देखो
उसको भी हँसना आता है
मीठे बोल सुना कर देखो
वो भी जी का हाल कहेगा
अपना हाल सुना कर देखो
राह सिमट जाएगी पल में
बस इक पाँव बढ़ाकर देखो
अपना चाहा बहुत दिखाया
मेरा ख़्वाब दिखाकर देखो
धू-धू जलती इस बस्ती में
अपना आप बचाकर देखो
वक़्त बहुत धुँधला-धुँधला है
सोच के दीप जलाकर देखो
जान तुम्हारी के सौ सदक़े
ग़ैर की जान बचा कर देखो
जोग निभाना तो आसाँ है
रिश्ता एक निभा कर देखो
एम.बी.शर्मा मधुर
सोये ख़्वाब जगा कर देखो
दुनिया और बना कर देखो
हो जाएँगी सदियाँ रौशन
सोच के दीप जला कर देखो
रूठो यार से लेकिन पहले
मन की बात बता कर देखो
मिल जाएगा कोई तो अपना
सबसे हाथ मिलाकर देखो
शर्म-हया का नूर है अपना
यह तुम शम्अ बुझाकर देखो
सर टकराने वाले लाखों
तुम दीवार बनाकर देखो
सबका है महबूब तसव्वुर
पंख ‘मधुर’ ये लगाकर देखो
मुशायरे के अगले शायर और शाइरा हिमाचल प्रदेश से हैं। मिसरा-ए-तरह" सोच के दीप जला कर देखो" पर इनकी ग़ज़लें मुलाहिज़ा कीजिए।
चंद्र रेखा ढडवाल
सूनी आँख सजा कर देखो
सपना एक जगा कर देखो
यह भी एक दुआ, पिंजरे से
पाखी एक उड़ा कर देखो
तपती रेत पे सहरा की तुम
दरिया एक बहा कर देखो
उसको भी हँसना आता है
मीठे बोल सुना कर देखो
वो भी जी का हाल कहेगा
अपना हाल सुना कर देखो
राह सिमट जाएगी पल में
बस इक पाँव बढ़ाकर देखो
अपना चाहा बहुत दिखाया
मेरा ख़्वाब दिखाकर देखो
धू-धू जलती इस बस्ती में
अपना आप बचाकर देखो
वक़्त बहुत धुँधला-धुँधला है
सोच के दीप जलाकर देखो
जान तुम्हारी के सौ सदक़े
ग़ैर की जान बचा कर देखो
जोग निभाना तो आसाँ है
रिश्ता एक निभा कर देखो
एम.बी.शर्मा मधुर
सोये ख़्वाब जगा कर देखो
दुनिया और बना कर देखो
हो जाएँगी सदियाँ रौशन
सोच के दीप जला कर देखो
रूठो यार से लेकिन पहले
मन की बात बता कर देखो
मिल जाएगा कोई तो अपना
सबसे हाथ मिलाकर देखो
शर्म-हया का नूर है अपना
यह तुम शम्अ बुझाकर देखो
सर टकराने वाले लाखों
तुम दीवार बनाकर देखो
सबका है महबूब तसव्वुर
पंख ‘मधुर’ ये लगाकर देखो
Monday, November 15, 2010
मुशायरे के अगले दो शायर
मिसार-ए-तरह" सोच के दीप जला कर देखो" पर अगली दो ग़ज़लें मुलाहिज़ा कीजिए ।
जोगेश्वर गर्ग
जागो और जगा कर देखो
सोच के दीप जला कर देखो
खूब हिचक होती है जिन पर
वो सब राज़ बता कर देखो
आग लगाने वाले लोगो
इक दिन आग बुझा कर देखो
बारिश चूती छत के नीचे
सारी रात बिता कर देखो
कोई नहीं जिनका उन सब को
सीने से चिपका कर देखो
बच्चों के नन्हे हाथों को
तारे चाँद थमा कर देखो
"जोगेश्वर" उनकी महफ़िल में
अपनी ग़ज़ल सुना कर देखो
कुमार ज़ाहिद
लरज़ी पलक उठा कर देखो
ताब पै आब चढ़ा कर देखो
गिर जाएंगी सब दीवारें
सर से बोझ गिरा कर देखो
दुनिया को फिर धोक़ा दे दो
हँसकर दर्द छुपा कर देखो
तुम पर्वत को राई कर दो
दम भर ज़ोर लगा कर देखो
बंजर में भी फूल खिलेंगे
कड़ी धूप में जा कर देखो
अँधियारे में सुबह छुपी है
सोच के दीप जला कर देखो
लिपट पड़ेगी झूम के तुमसे
कोई शाख़ हिला कर देखो
ख़ाली हाथ नहीं है कोई
बढ़कर हाथ मिला कर देखो
ज़िन्दा हर तस्वीर है ‘ज़ाहिद’
टूटे कांच हटा कर देखो
जोगेश्वर गर्ग
जागो और जगा कर देखो
सोच के दीप जला कर देखो
खूब हिचक होती है जिन पर
वो सब राज़ बता कर देखो
आग लगाने वाले लोगो
इक दिन आग बुझा कर देखो
बारिश चूती छत के नीचे
सारी रात बिता कर देखो
कोई नहीं जिनका उन सब को
सीने से चिपका कर देखो
बच्चों के नन्हे हाथों को
तारे चाँद थमा कर देखो
"जोगेश्वर" उनकी महफ़िल में
अपनी ग़ज़ल सुना कर देखो
कुमार ज़ाहिद
लरज़ी पलक उठा कर देखो
ताब पै आब चढ़ा कर देखो
गिर जाएंगी सब दीवारें
सर से बोझ गिरा कर देखो
दुनिया को फिर धोक़ा दे दो
हँसकर दर्द छुपा कर देखो
तुम पर्वत को राई कर दो
दम भर ज़ोर लगा कर देखो
बंजर में भी फूल खिलेंगे
कड़ी धूप में जा कर देखो
अँधियारे में सुबह छुपी है
सोच के दीप जला कर देखो
लिपट पड़ेगी झूम के तुमसे
कोई शाख़ हिला कर देखो
ख़ाली हाथ नहीं है कोई
बढ़कर हाथ मिला कर देखो
ज़िन्दा हर तस्वीर है ‘ज़ाहिद’
टूटे कांच हटा कर देखो
Saturday, November 13, 2010
चौथी क़िस्त - सोच के दीप जला कर देखो
इस चौथी क़िस्त में हम मिसरा-ए-तरह " सोच के दीप जला कर देखो" पर नवनीत शर्मा और तिलक राज कपूर की ग़ज़लें पेश कर रहे हैं। उम्मीद है कि ये ग़ज़लें आपको पसंद आऐंगी।
नवनीत शर्मा
खुद को शक्ल दिखा कर देखो
शख्स नया इक पा कर देखो
भरी रहेगी यूं ही दुनिया
आकर देखो, जाकर देखो
गा लेते हैं अच्छा सपने
दिल का साज बजा कर देखो
पीठ में सूरज की अंधियारा
उसके पीछे जा कर देखो
आ जाओगे खुद ही सुर में
अपना होना गा कर देखो
क्या तेरा , क्या मेरा प्यारे
ये मरघट में जाकर देखो
मिल जाएं तो उनसे कहना
मेरे घर भी आकर देखो
डूबा है जो ध्यान में कब से
उसके ध्यान में आकर देखो
दूजे के ज़ख्मों पर मरहम
ये राहत भी पा कर देखो
ज़ेहन में कितनी तारीकी है
सोच के दीप जला कर देखो
दूसरे शायर:
तिलक राज कपूर
चोट जिगर पर खाकर देखो
फिर दिल को समझा कर देखो
जाने क्या-क्या सीखोगे तुम
इक बच्चा बहला कर देखो
जिसकी कोई नहीं सुनता है
उसकी पीड़ा गा कर देखो।
कुछ देने का वादा है तो
बदरी जैसे छा कर देखो
जिसको ठुकराते आये हो
उसको भी अपना कर देखो
लड़ना है काली रातों से
सोच के दीप जला कर देखो
खून पसीने की, मेहनत की
रोटी इक दिन खाकर देखो
दर्द लहू का क्या होता है
अपना खून बहा कर देखो
चिंगारी की फि़त्रत है तो
घर में आग लगाकर देखो
अगर दबाने की इच्छा है
चाहत एक दबा कर देखो
‘राही’ नाज़ुक दिल है इसको
ऐसे मत इठला कर देखो
नवनीत शर्मा
खुद को शक्ल दिखा कर देखो
शख्स नया इक पा कर देखो
भरी रहेगी यूं ही दुनिया
आकर देखो, जाकर देखो
गा लेते हैं अच्छा सपने
दिल का साज बजा कर देखो
पीठ में सूरज की अंधियारा
उसके पीछे जा कर देखो
आ जाओगे खुद ही सुर में
अपना होना गा कर देखो
क्या तेरा , क्या मेरा प्यारे
ये मरघट में जाकर देखो
मिल जाएं तो उनसे कहना
मेरे घर भी आकर देखो
डूबा है जो ध्यान में कब से
उसके ध्यान में आकर देखो
दूजे के ज़ख्मों पर मरहम
ये राहत भी पा कर देखो
ज़ेहन में कितनी तारीकी है
सोच के दीप जला कर देखो
दूसरे शायर:
तिलक राज कपूर
चोट जिगर पर खाकर देखो
फिर दिल को समझा कर देखो
जाने क्या-क्या सीखोगे तुम
इक बच्चा बहला कर देखो
जिसकी कोई नहीं सुनता है
उसकी पीड़ा गा कर देखो।
कुछ देने का वादा है तो
बदरी जैसे छा कर देखो
जिसको ठुकराते आये हो
उसको भी अपना कर देखो
लड़ना है काली रातों से
सोच के दीप जला कर देखो
खून पसीने की, मेहनत की
रोटी इक दिन खाकर देखो
दर्द लहू का क्या होता है
अपना खून बहा कर देखो
चिंगारी की फि़त्रत है तो
घर में आग लगाकर देखो
अगर दबाने की इच्छा है
चाहत एक दबा कर देखो
‘राही’ नाज़ुक दिल है इसको
ऐसे मत इठला कर देखो
Thursday, November 4, 2010
सोच के दीप जला कर देखो-तरही की पहली क़िस्त
सबको दीपावली की शुभकामनाओं के साथ इस तरही मुशायरे का आगाज़ करते हैं। मिसरा-ए तरह " सोच के दीप जला कर देखो" पर ग़ज़लें मिलनी शुरू हो चुकी हैं और जो शायर रह गए हैं उनसे भी अनुरोध है कि जल्दी ग़ज़ल पूरी करें और भेजें।हमारे पहले शायर हैं- चंद्रभान भारद्वाज । इनके इस खूबसूरत शे’र-
स्याह अमावस पूनम होगी
सोच के दीप जला कर देखो
के साथ लीजिए इनकी ये तरही ग़ज़ल मुलाहिज़ा कीजिए-
चंद्रभान भारद्वाज
मन को पंख लगाकर देखो
पार गगन के जाकर देखो
खुद आकाश सिमट जायेगा
बाँहों को फैला कर देखो
इतनी सुंदर बन न सकेगी
दुनिया लाख बना कर देखो
धरती स्वर्ग नज़र आएगी
दीवाली पर आ कर देखो
स्याह अमावस पूनम होगी
सोच के दीप जला कर देखो
आँखों में फुलझड़ियाँ चमकें
प्यार किसी का पा कर देखो
अपना दर्द छिपाकर रखना
औरों का सहला कर देखो
नफ़रत की ऊँची दीवारें
प्यार से आज ढहा कर देखो
'भारद्वाज' रसिक ग़ज़लों का
ग़ज़लें आप सुना कर देखो
दिपावली की ढेर सारी शुभकामनाएँ !
स्याह अमावस पूनम होगी
सोच के दीप जला कर देखो
के साथ लीजिए इनकी ये तरही ग़ज़ल मुलाहिज़ा कीजिए-
चंद्रभान भारद्वाज
मन को पंख लगाकर देखो
पार गगन के जाकर देखो
खुद आकाश सिमट जायेगा
बाँहों को फैला कर देखो
इतनी सुंदर बन न सकेगी
दुनिया लाख बना कर देखो
धरती स्वर्ग नज़र आएगी
दीवाली पर आ कर देखो
स्याह अमावस पूनम होगी
सोच के दीप जला कर देखो
आँखों में फुलझड़ियाँ चमकें
प्यार किसी का पा कर देखो
अपना दर्द छिपाकर रखना
औरों का सहला कर देखो
नफ़रत की ऊँची दीवारें
प्यार से आज ढहा कर देखो
'भारद्वाज' रसिक ग़ज़लों का
ग़ज़लें आप सुना कर देखो
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