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Monday, December 1, 2008
मुनव्वर राना की आज के हालात पर एक ग़ज़ल
ग़ज़ल
नुमाइश के लिए गुलकारियाँ दोनों तरफ़ से हैं
लड़ाई की मगर तैयारियाँ दोनों तरफ़ से हैं
मुलाक़ातों पे हँसते बोलते हैं मुस्कराते हैं
तबीयत में मगर बेज़ारियाँ दोनों तरफ़ से हैं
खुले रखते हैं दरवाज़े दिलों के रात दिन दोनों
मगर सरहद पे पहरेदारियाँ दोनों तरफ़ से हैं
उसे हालात ने रोका मुझे मेरे मसायल ने
वफ़ा की राह में दुश्वारियाँ दोनों तरफ़ से हैं
मेरा दुश्मन मुझे तकता है मैं दुश्मन को तकता हूँ
कि हायल राह में किलकारियाँ दोनों तरफ़ से हैं
मुझे घर भी बचाना है वतन को भी बचाना है
मिरे कांधे पे ज़िम्मेदारियाँ दोनों तरफ़ से हैं
***
तमाम सैनिकों को सैल्यूट जिन्होंने हाल ही मे मुंबई मे हुए आतंकी हमले मे अपनी जान देकर इस देश को बचाया और हमले में मरे सब लोग भी शहीद ही हैं.उन सब लोगों को शत-शत नमन.ऐसा हादिसा कभी दोबारा न हो इसके लिए उस मालिक से दुआ करते हैं .
शिव ओम अंबर जी ने ठीक कहा है:
राजभवनों की तरफ़ न जायें फरियादें,
पत्थरों के पास अभ्यंतर नहीं होता
ये सियासत की तवायफ़ का टुप्पटा है
ये किसी के आंसुओं से तर नहीं होता।
....और दुआ करते हैं कि सियासतदानॊं को भी कुछ सबक मिले
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