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नाम- चंद्रभान भारद्वाज
जन्म - ४, जनवरी , 1938।
स्थान- गोंमत (अलीगढ) (उ प्र।)
इनके अभी तक चार ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। पगडंडियाँ,शीशे की किरचें ,चिनगारियाँ और हवा आवाज़ देती है. देश की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में गज़लें प्रकाशित होती रहीं हैं।आकाशवाणी से भी रचनाओं का प्रसारण होता रहा है। ये 1970 से अनवरत रूप से ग़ज़ल लेखन में संलग्न हैं.एक खा़स अंदाज़ की गज़ले आप सब के लिए.
ग़ज़ल 1
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हुआ मन साधु का डेरा यहाँ अपना पराया क्या;
समर्पण कर दिया उसको जगत की मोह माया क्या।
धरा आकाश हैं आँगन खिलौना हैं सभी उसके,
सितारे चाँद सूरज आग पानी धूप छाया क्या।
बचाले लाख नज़रों से छिपाले लाख परदों में,
उसे मालूम है तुमने दुराया क्या चुराया क्या.
लिखे हैं ज़िन्दगी ने झूठ के सारे बहीखाते,
बताती है मगर सच मौत खोया और पाया क्या।
नज़र की सिर्फ़ चाहत है मिले दीदार प्रियतम का,
कहाँ है होश अब इतना पिया क्या और खाया क्या।
धधकती प्यार की इस आग में जब कूदकर निकले,
निखर कर हो गए कंचन हमें उसने तपाया क्या।
खड़ा जो बेच कर ईमान 'भारद्वाज' पूछो तो,
कि उसने आत्मा के नाम जोड़ा क्या घटाया क्या।
बहरे-हज़ज सालिम
ग़ज़ल 2
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अब खुशी कोई नहीं लगती खुशी तेरे बिना;
ज़िन्दगी लगती नहीं अब ज़िन्दगी तेरे बिना।
रात में भी अब जलाते हम नहीं घर में दिया,
आँख में चुभने लगी है रोशनी तेरे बिना।
बात करते हैं अगर हम और आईना कभी,
आँख पर अक्सर उभर आती नमी तेरे बिना।
चाहते हम क्या हमें भी ख़ुद नहीं मालूम कुछ,
हर समय मन में कसकती फांस सी तेरे बिना।
सेहरा बाँधा समय ने कामयाबी का मगर,
चेहरे पर अक्श उभरे मातमी तेरे बिना।
पूर्ण है आकाश मेरा पूर्ण है मेरी धरा,
पर क्षितिज पर कुछ न कुछ लगती कमी तेरे बिना।
हम भले अब और अपना यह अकेलापन भला,
क्या किसी से दुश्मनी क्या दोस्ती तेरे बिना।
बहरे रमल
ग़ज़ल 3
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दर्द की सारी कथाएँ करवटों से पूछ लो,
प्यार की मधुरिम व्यथाएं सिलवटों से पूछ लो।
आपबीती तो कहेगा आँख का काजल स्वयं,
बात पिय की पातियों की पनघटों से पूछ लो।
ज़िन्दगी कितनी गुजारी है प्रतीक्षा में खड़े,
द्वार खिड़की देहरी या चौखटों से पूछ लो।
क्या बताएगा नज़र की उलझनें दर्पण तुम्हें,
पूछना चाहो अगर उलझी लटों से पूछ लो।
चाहती है तो न होगी कैद परदों में कहीं,
लौट आएगी नज़र ख़ुद घूंघटों से पूछ लो।
आप होंगे यह समझ कर दौड़ते हैं द्वार तक,
पांव की आती हुई सब आहटों से पूछ लो।
बहरे-रमल