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Wednesday, January 7, 2009

राज कुमार कै़स की ग़ज़लें










पंजाब मे जन्मे राज कुमार कै़स बहुत अच्छे शायर हैं. इनका एक ग़ज़ल संग्रह "सहरा-सहरा" प्रकाशित हो चुका है. इनकी ग़ज़लों मे खास बात ये है कि ग़जलों मे एक दिलकश रवानगी है.इनका यही अंदाज़ इन्हें औरों से जुदा करता है. पेश है उनकी दो ग़ज़लें.


ग़ज़ल:









देख तेरे दीवाने की अब जान पे क्या बन आई है
चुप साधें तो दम घुटता है बोलें तो रुसवाई है.

बस्ती-बस्ती, जंगल-जंगल, सहरा-सहरा घूमे हैं
हमने तेरी खोज मे अब तक कितनी खाक उड़ाई है.

दिल अपना सुनसान नगर है, फिर भी कितनी रौनक है
सपनो की बारात सजी है, यादों की शहनाई है.

यूँ तो सब कुछ हार चुके हैं, फिर भी माला-माल है हम
बातें करने को सन्नाटा, सोहबत को तनहाई है.

मेरे दिल का चौंक सा जाना, इक मामूली जज़्बा है
वो तो तेरी शोख नज़र थी, जिसने बात बढ़ाई है.

यूँ तो तेरे मयखाने मे, रंगा-रंग शराबे हैं
आज वही ऊंड़ेल जो तेरी, आँखों ने छलकाई है.

आज तो मय का इक-इक कतरा, झूम रहा है मस्ती मे
शायद मेरे ज़ाम से कोई, खास नज़र टकराई है.

आज समंदर की लहरें, ऊँची भी हैं जोशीली भी
या पानी की बेचैनी है , या तेरी अंगड़ाई है.

पहलू-पहलू दर्द उठा है, करवट-करवट रोये हैं
तुझ को क्या मालूम कि हमने ,कैसे रात बिताई है.

मोड़ -मोड़ पर बिजली लपकी, मंज़िल-मंज़िल तीर गिरे
मर-मर कर इस राह मे हमने, अपनी जान बचाई है.

देखने वाले ध्यान से देखें ,हुस्न नही है जादू है
या तो इसका मंत्र ढूँढें ,या फिर शामत आई है.

कहने को तो वस्ल की दावत ,लेके कोई आया है
हो न हो मेरी तनहाई ,भेस बदल कर आई है.

सारी सखियाँ पूछ रहीं हैं ,आज हमारी राधा से
तेरे मन के बरिंदावन मे ,किसने रास रचाई है.

(8,7 गुरु)

ग़ज़ल:







करम देखे ,वफ़ा देखी, सितम देखे , जफ़ा देखी
अजब अंदाज़ थे तेरे अजब तेरी अदा देखी.

न जाने कब तुझे पाया न जाने कब तुझे खोया
न हमने इब्तिदा देखी न हमने इंतिहा देखी.

तुम्हारी बज़्म मे जब हम न थे तो क्या कहें तुम से
अजब सूना समां देखा अजब सू्नी फ़ज़ा देखी.

इधर हम सर-ब-सिजदा थे तुम्हारी राह मे जानां
उधर गै़रों की आँखों मे हवस देखी हवा देखी.

अजब बुत है कि हर जानिब हज़ारों चाँद रौशन हैं
ख़ुदा शाहिद है हम ने आज तनवीरे-ख़दा देखी

फ़ना का वक्त था फिर भी बका़ के गीत गाता था
तुम्हारे कै़स कि कल शब अनोखी ही अदा देखी.

(हज़ज)

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COMMENTS:


Parul said...
bahut khuub..sahi hai..ravangi hai..aabhaar padhvaaney ka
January 7, 2009 1:27 AM
नीरज गोस्वामी said...
बहुत खूब...इनकी ग़ज़लों में गुज़रे ज़माने की बहुत रसीली पेशकश है...आज कल ऐसी ग़ज़लें अमूनन नहीं लिखी पढ़ी जाती...आप का शुक्रिया.नीरज
January 7, 2009 1:45 AM
दिगम्बर नासवा said...
दोनों ही गज़लों में गज़ब की रवानगी है, ग़ज़ल गा कर और भी सुंदर लगेगी, हर शेर लाजवाब है, मुझे खासकर ये बहोत पसंद आया यूँ तो तेरे मयखाने मे, रंगा-रंग शराबे हैंआज वही ऊंड़ेल जो तेरी, आँखों ने छलकाई है.
January 8, 2009 4:33 AM
गौतम राजरिशी said...
बड़े दिनों बाद ये नाजुकी गज़ल की दिखी है...पहले गज़ल का मतला "देख तेरे दीवाने की अब जान पे क्या बन आई है / चुप साधें तो दम घुटता है बोलें तो रुसवाई है"....कहर ढ़ाता हैपूरी गज़ल में एक स्वाभाविक सी गेयता और वो रूमानियत कि हाय~~~~~...सतपाल जी आप का तहे दिल से शुक्रिया.यदि संभव हो तो शायरों का संपर्क-सुत्र भी दें
January 8, 2009 7:56 AM
सतपाल said...
Dear gautamclick this link to read more about poet and his poetryhttp://www.tanhaa.net/anmol/qais/thanks
सतपाल said...
इन ग़ज़लों के बारे मे कल द्विज जी से बात हुई तो मैने उनसे ये सवाल किया था कि रिवायती, क्लासिकल और समकालीन शायरी परकुछ कहें .तो उन्होंने बताया कि रिवायती या traditional से ही ज्यादातर शुरुआत होती है लेकिन शायर धीरे-धीरे अपना रंग या अंदाज़ बना लेता है.जो आने वाले कल के लिये रिवायत बन जाता है और क्लासिकल औए रिवायती मे बहुत एक thin line का फ़र्क है.
dwij said...
'चुप साधें तो दम घुटता है बोलें तो रुसवाई है'
वाह-वाह!क्लासिकल रचाव की ऐसी शायरी की सबसे बड़ी ख़ूबसूरती गेयता ही तो है.
चुप साधें तो दम घुटता है बोलें तो रुसवाई है
ऐसी दुविधा को 'शुज़ा'ख़ावर साहब न्रे अपने एक शेर में कुछ यूँ बयान किया है:
"कुछ नहीं बोला तो मर जाएगा अन्दर से 'शुज़ा'
और कुछ बोला तो फिर बाहर से मारा जाएगा"
यहाँ आकर अस्तित्व की दुविधा भी सामने आती है लेकिन ज़रा और भी व्यापक अर्थों में.बस शेर का संदर्भ ग़मे-जाना से ग़मे-दौराँ की तरफ हो गया.Subjective से objective हो गया.शायद यहीं से रिवायती और जदीद शायरी की विभाजक रेखा भी साफ-साफ दिखाई देना शुरू हो जानी चाहिए.
January 8, 2009 11:23 PM

Dr. Ahmad Ali Barqi Azmi said...
क़ैस के अशआर मेँ है फिकरो फन की ताज़गी
उनके अंदाज़े बयाँ मेँ है नेहायत दिलकशी
अहदे हाज़िर मेँ ग़ज़ल है इम्तेज़ाजे फिकरो फन
इस कसौटी पर खरी है उनकी बर्क़ी शसायरी
डा. अहमद अली बर्की आज़मी
January 8, 2009 11:32 PM


Anonymous said...
Sabase pahale main yah batana chahta hoon ki blog par apni tippadi dene ke vajaya yahan par apne vichar vyakta kar raha hoon kyonki wahan main devnagari lipi man nahin likh paunga. main chahata hoon ki ye vichar wahan devnagari men hi dikhen, atah yadi aap chahen to mera sandharbh dekar in vicharon ko wahan de sakate hain.
Pahale riwayati,classical aur samkaalin shayari ke bare men apne vichar likh raha hoon,
(1)Riwayati yani paramparavadi (Traitional) wah ghazalen hain jo purane bimbon pratikon aur paramparaon ki prashthabhoomi par likhi hon jaise purane husna aur isk par adharit ghazalen.
(2)Shastriya(Classical) wah ghazalen jo uchcha stariya sahityik prashtha bhoomi par likhi hon.
(3)Samsamayik ya samkaalin ghazalen ve ghazalen hain jo aaj ke samay ke sandharbhon vishayon aur sarokaron ki prashthabhoomi par likhi gayeen hon.
Ab Shri Rajkumar 'Kais' ki ghazalon ke bare men, Maine abhi unki pahali ghazal hi dhyan se padi hai. ismen koi shak nahin ki inki ghazal ko pad kar ek khas prakar ki ravanagi mahsoos hoti hai. Bahut sunder ghazal hai. Meri aur se unhen aur aapko hardik badhai. Is ghazal ke kuchh misare padane men atakate hain, jaise (i) yoon to tere mayakhane men rangarang sharaben hain, iska doosara misara padane men atakta hai ise hona chahiye tha-"aaj undel use jo teri aankhon ne chhalkai hai" (ii)isi tarah "dekhanewale dhyan se dekhen husna nahin yah jadu hai" iska doosara misara bhi padane men atakta hai,doosare misare men "mantra" ki jagah par "mantar' aata to thik rahata.(iii)"kahane ko to vasla ki dawat leke koi aaya hai", iska bhi doosara misara atakta hai, ismen "ho na ho"ki jagah agar "lagata hai" hota to rawani bani rahati.(iv)makte men bhi doosara misara doshpurna hai kyonki "shabd birandaavan"likha hai jabki yah "vrandaavan" hona tha, fir "Raas" pulling hai atah "kisne raas rachaaya hai" aayega naki "kisna raas rachai hai.Maine yah sab bina kisi durbhavana ke likh diya hai ise swastha drashti se dekhen.Dhanyawad.
Chandrabhan Bhardwaj

Anonymous said...
Qais SaHeb kee shaa'iree kaa aik alag hee andaaz aur rang hai. in ghazloN pe meree hazaar_haa daad. dheer
January 9, 2009 6:57 AM
श्रद्धा जैन said...
wah gazal ke pahile hi sher ne shayar ki kalam ka loha mahnva diyabahut kamaal kahte hainSatpaal ji inse milwane ke liye bahut bahut shukriya