एक बहुत होनहार और नये लहज़े के मालिक विकास राना "फ़िक्र" साहब की एक ग़ज़ल हाज़िर है-
ग़ज़ल
आदमी कम बुरा नहीं हूँ मैं
हां मगर बेवफा नहीं हूँ मैं
मेरा होना न होने जैसा है
जल चुका हूँ, बुझा नहीं हूँ मैं
सूरतें सीरतों पे भारी हैं
फूल हूँ, खुशनुमा नहीं हूँ मैं
थोड़ा थोड़ा तो सब पे ज़ाहिर हूँ
खुद पे लेकिन खुला नहीं हूँ मैं
रास्ते पीछे छोड़ आया हूँ
रास्तो पे चला नहीं हूँ मैं
ज़िंदगी का हिसाब क्या दूं अब
बिन तुम्हारे जिया नहीं हूँ मैं
धूप मुझ तक जो आ रही है " फ़िक्र "
यानी की लापता नहीं हूँ मैं