ग़ज़ल
हमें वफ़ाओं की ताक़त पे था यक़ीन बहुत
इसी यक़ीन पे अब तक थे मुतमईन बहुत
वो एक शख़्स जो दिखने में ठीक-ठाक सा था
बिछड़ रहा था तो लगने लगा हसीन बहुत
तू जा रहा था बिछड़ के तो हर क़दम पे तेरे
फ़िसल रही थी मेरे पाँव से ज़मीन बहुत
वो जिसमें बिछड़े हुए दिल लिपट के रोते हैं
मैँ देखता हूँ किसी फ़िल्म का वो सीन बहुत
तेरे ख़याल भी दिल से नहीं गुज़रते अब
इसी मज़ार पे आते थे ज़ायरीन बहुत
तड़प तड़प के जहाँ मैंने जान दी "फ़ैसल"
खड़े हुए थे वहीं पर तमाशबीन बहुत
बहरे-मजतस
म'फ़ा'इ'लुन फ़'इ'लातुन म'फ़ा'इ'लुन फ़ा'लुन
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