पाँव जब भी इधर-उधर रखना
अपने दिल में ख़ुदा का डर रखना
रास्तों पर कड़ी नज़र रखना
हर क़दम इक नया सफ़र रखना
वक़्त, जाने कब इम्तेहां माँगे
अपने हाथों में कुछ हुनर रखना
मंज़िलों की अगर तमन्ना है
मुश्किलों को भी हमसफ़र रखना
खौफ़, रहज़न का तो बजा, लेकिन
रहनुमा पर भी कुछ नज़र रखना
सख्त लम्हों में काम आएँगे
आँसुओं को सँभाल कर रखना
चुप रहा मैं, तो लफ़्ज़ बोलेंगे
बंदिशें मुझ पे, सोच कर रखना
आएँ कितने भी इम्तेहां "दानिश"
अपना किरदार मोतबर रखना
अपने दिल में ख़ुदा का डर रखना
रास्तों पर कड़ी नज़र रखना
हर क़दम इक नया सफ़र रखना
वक़्त, जाने कब इम्तेहां माँगे
अपने हाथों में कुछ हुनर रखना
मंज़िलों की अगर तमन्ना है
मुश्किलों को भी हमसफ़र रखना
खौफ़, रहज़न का तो बजा, लेकिन
रहनुमा पर भी कुछ नज़र रखना
सख्त लम्हों में काम आएँगे
आँसुओं को सँभाल कर रखना
चुप रहा मैं, तो लफ़्ज़ बोलेंगे
बंदिशें मुझ पे, सोच कर रखना
आएँ कितने भी इम्तेहां "दानिश"
अपना किरदार मोतबर रखना
3 comments:
लाजवाब ग़ज़ल, हर शेर मुकम्मल।
khoobsoorat gazal ke liye badhai sweekaren sirji
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वक़्त, जाने कब इम्तेहां माँगे
अपने हाथों में कुछ हुनर रखना
मंज़िलों की अगर तमन्ना है
मुश्किलों को भी हमसफ़र रखना
खौफ़, रहज़न का तो बजा, लेकिन
रहनुमा पर भी कुछ नज़र रखना
सख्त लम्हों में काम आएँगे
आँसुओं को सँभाल कर रखना
चुप रहा मैं, तो लफ़्ज़ बोलेंगे
बंदिशें मुझ पे, सोच कर रखना
वाह ! वाऽह…!
मोहतरम जनाब दानिश साहब
आपकी ग़ज़लियात से जब जब रू-ब-रू होते हैं यही दिक्कत पेश आती है कि
किस शे'र को कोट न किया जाए...
हमेशा की तरह बहुत उम्दा कलाम !
एक-एक शे'र अदब के ख़ज़ाने का लालो-गौहर !
हर मिसरा शाइरी की ज़ीनत !
लुटाते रहिए अदब के मोती इसी तरह...
बने रहिए प्रेरणा-पुंज ग़ज़ल के विद्यार्थियों के लिए...
बहुत बहुत बहुत शुभकामनाओं मंगलकामनाओं के साथ...
-राजेन्द्र स्वर्णकार
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