Wednesday, April 1, 2015

सिराज फ़ैसल खान














ग़ज़ल

हमें वफ़ाओं की ताक़त पे था यक़ीन बहुत
इसी यक़ीन पे अब तक थे मुतमईन बहुत

वो एक शख़्स जो दिखने में ठीक-ठाक सा था
बिछड़ रहा था तो लगने लगा हसीन बहुत

तू जा रहा था बिछड़ के तो हर क़दम पे तेरे
फ़िसल रही थी मेरे पाँव से ज़मीन बहुत

वो जिसमें बिछड़े हुए दिल लिपट के रोते हैं
मैँ देखता हूँ किसी फ़िल्म का वो सीन बहुत

तेरे ख़याल भी दिल से नहीं गुज़रते अब
इसी मज़ार पे आते थे ज़ायरीन बहुत

तड़प तड़प के जहाँ मैंने जान दी "फ़ैसल"
खड़े हुए थे वहीं पर तमाशबीन बहुत

बहरे-मजतस
म'फ़ा'इ'लुन फ़'इ'लातुन म'फ़ा'इ'लुन फ़ा'लुन
1212 1122 1212 22/ 112

6 comments:

शारदा अरोरा said...

बढ़िया लगी ग़ज़ल...

वैवकु said...

सीन वाला शेर बेस्ट है सरजी

अभिव्यक्ति मेरी said...

बहुत खूब कहा जनाब वाह.वाह।
अब खून भी बहता नहीं, पर जख्म भी बढते गये,
और दर्द शायरी में , उतरता चला गया .........click on http://manishpratapmpsy.blogspot.com

अभिव्यक्ति मेरी said...

बहुत खूब कहा जनाब वाह.वाह।
अब खून भी बहता नहीं, पर जख्म भी बढते गये,
और दर्द शायरी में , उतरता चला गया .........click on http://manishpratapmpsy.blogspot.com

gurpreet singh said...

Agar koi mujhe yeh bta de ki yeh ghazal Kon si beher mein hai to us ka bahut shukriya hoga

Consumer Mitr said...

Very well said sir... Waaah Waaah...