नए साल की सब को बधाई और इस मौके पर कुछ ग़ज़लें प्रस्तुत हैं. मै सब शायरों का आभारी हूँ जिन्होंने अपना-अपना कलाम हमें भेजा.
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प्राण शर्मा की एक ग़ज़ल:
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गज़ल:
छेड़ ऐसी ग़ज़ल इस नए साल में
झूमे मन का कँवल इस नए साल में
कोई ग़मगीन माहौल क्यों हो भला
हर तरफ़ हो चहल इस नए साल में
गिर न पाये कभी है यही आरजू
हसरतों का महल इस नए साल में
याद आए सदा कारनामा तेरा
मुश्किलें कर सहल इस नए साल में
नेकियों की तेरी यूँ कमी तो नहीं
हर बदी से निकल इस नए साल में
पहले ख़ुद को बदल कर दिखा हमसफ़र
फिर तू जग को बदल इस नये साल में
रोज़ इतना ही काफी है तेरे लिए
मुस्करा पल दो पल इस नए साल में
बहरे-मुतदारिक मसम्मन सालिम
(फ़ाइलुन x4)
देवी नागरानी की एक ग़ज़ल:
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गज़ल:
मुबारक नया साल फिर आ रहा है
जिसे देखिये झूमकर गा रहा है
हूआ ख़त्म आंसू बहाने का मौसम
ख़ुशी देके हमको वो हर्षा रहा है
नए साल ने भर दिए है ख़ज़ाने
जिसे देखिये वो ही इतरा रहा है
है मस्ती दिलों में नशा है निराला
कोई जाम पर जाम छलका रहा है
भरो अपना दामन बड़ों की दुआ से
नया साल हमको ये समझा रहा है
यह पुरकैफ़ माहौल देवी है भाया
जिसे देखिये खुश नज़र आ रहा है
फ़ऊलुन x4
बहरे-मुतकारिब मसम्मन सालिम
डा. अहमद अली वर्की आज़मी की एक ग़ज़ल:
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गज़ल:
नया साल है और नई यह ग़ज़ल
सभी का हो उज्जवल यह आज और कल
ग़ज़ल का है इस दौर मेँ यह मेज़ाज
है हालात पर तबसेरा बर महल
बहुत तल्ख़ है गर्दिशे रोज़गार
न फिर जाए उम्मीद पर मेरी जल
मेरी दोस्ती का जो भरते हैँ दम
छुपाए हैँ ख़ंजर वह ज़ेरे बग़ल
न हो ग़म तो क्या फिर ख़ुशी का मज़ा
मुसीबत से इंसाँ को मिलता है बल
वह आएगा उसका हूँ मैं मुंतज़िर
न जाए खुशी से मेरा दम निकल
है बेकैफ हर चीज़ उसके बग़ैर
नहीँ चैन मिलता मुझे एक पल
न समझेँ अगर ग़म को ग़म हम सभी
तो हो जाएँगी मुशकिले सारी हल
सभी को है मेरी यह शुभकामना
नया साल सबके लिए हो सफल
ख़ुदा से है बर्की मेरी यह दुआ
ज़माने से हो दूर जंगो जदल
मुतकारिब की मुजाहिफ़ शक्ल
122 122 122 12
चन्द्रभान भारद्वाज की एक ग़ज़ल:
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गज़ल:
पड़ी मांग सूनी कटी है कलाई;
नये साल की बंधु कैसी बधाई।
खड़ा है खुले आम दुश्मन हमारा,
कुटिल उसका मन आंख में बॆहयाई।
बनाकर गये धूल चंदन वतन की,
हमें गर्व है उन शहीदों पे भाई।
सधे थे कदम हाथ लाखों जुड़े थे,
बहे आँसुओं ने शमा जब जलाई।
वो बलिदान है आरती इस वतन की,
जलाई जो लौ हर तरफ जगमगाई ।
ये इतिहास भूगोल बदले तुम्हारा,
'भारद्वाज'सरहद अगर फिर जगाई।
फ़ऊलुन x4
बहरे-मुतकारिब मसम्मन सालिम
द्विजेन्द्र द्विज की एक ग़ज़ल:
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गज़ल:
ज़िन्दगी हो सुहानी नये साल में
दिल में हो शादमानी नये साल में
सब के आँगन में अबके महकने लगे
दिन को भी रात-रानी नये साल में
ले उड़े इस जहाँ से धुआँ और घुटन
इक हवा ज़ाफ़रानी नये साल में
इस जहाँ से मिटे हर निशाँ झूठ का
सच की हो पासबानी नये साल में
है दुआ अबके ख़ुद को न दोहरा सके
नफ़रतों की कहानी नये साल में
बह न पाए फिर इन्सानियत का लहू
हो यही मेहरबानी नये साल में
राजधानी में जितने हैं चिकने घड़े
काश हों पानी-पानी नये साल में
वक़्त ! ठहरे हुए आँसुओं को भी तू
बख़्शना कुछ रवानी नये साल में
ख़ुशनुमा मरहलों से गुज़रती रहे
दोस्तों की कहानी नये साल में
हैं मुहब्बत के नग़्मे जो हारे हुए
दे उन्हें कामरानी नये साल में
अब के हर एक भूखे को रोटी मिले
और प्यासे को पानी नये साल में
काश खाने लगे ख़ौफ़ इन्सान से
ख़ौफ़ की हुक्मरानी नये साल में
देख तू भी कभी इस ज़मीं की तरफ़
ऐ नज़र आसमानी ! नये साल में
कोशिशें कर, दुआ कर कि ज़िन्दा रहे
द्विज ! तेरी हक़-बयानी नये साल में.
बहरे-मुतदारिक मसम्मन सालिम
(फ़ाइलुन x4)** शादमानी - प्रसन्नता ; जाफ़रानी-केसर जैसी सुगन्ध जैसी ; पासबानी-सुरक्षा ; हुक्मरानी-सत्ता,शासन ;
हक़-बयानी : सच कहने की आदत ; कामरानी-सफलता; मरहले-पड़ाव
देवमणि पांडेय की एक ग़ज़ल:
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गज़ल:
नया साल हमसे दग़ा न करे
गए साल जैसी ख़ता न करे
अभी तक है छलनी हमारा शहर
नया ज़ख़्म खाए ख़ुदा न करे
नए साल में रब से मांग दुआ
किसी को किसी से जुदा न करे
सभी के लिए ज़िंदगी है मेरी
भले कोई मुझसे वफ़ा न करे
फरिश्ता तुझे मान लेगा जहां
अगर तू किसी का बुरा न करे
मोहब्बत से कह दो परे वो रहे
मेरी ज़िंदगी बेमज़ा न करे
झमेले बहुत ज़िंदगानी के हैं
तुझे भूल जाऊं ख़ुदा न करे
न टूटे कोई ख़्वाब इसके सबब
कुछ ऐसा ये बादे-सबा न करे
तो ख़्वाबों की ताबीर मुमकिन नहीं
अगर ज़िंदगानी वफ़ा न करे
अमीरों के दर से न पाएगा कुछ
भिखारी से कह दो दुआ न करे
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गज़ल:
छेड़ ऐसी ग़ज़ल इस नए साल में
झूमे मन का कँवल इस नए साल में
कोई ग़मगीन माहौल क्यों हो भला
हर तरफ़ हो चहल इस नए साल में
गिर न पाये कभी है यही आरजू
हसरतों का महल इस नए साल में
याद आए सदा कारनामा तेरा
मुश्किलें कर सहल इस नए साल में
नेकियों की तेरी यूँ कमी तो नहीं
हर बदी से निकल इस नए साल में
पहले ख़ुद को बदल कर दिखा हमसफ़र
फिर तू जग को बदल इस नये साल में
रोज़ इतना ही काफी है तेरे लिए
मुस्करा पल दो पल इस नए साल में
बहरे-मुतदारिक मसम्मन सालिम
(फ़ाइलुन x4)
देवी नागरानी की एक ग़ज़ल:
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गज़ल:
मुबारक नया साल फिर आ रहा है
जिसे देखिये झूमकर गा रहा है
हूआ ख़त्म आंसू बहाने का मौसम
ख़ुशी देके हमको वो हर्षा रहा है
नए साल ने भर दिए है ख़ज़ाने
जिसे देखिये वो ही इतरा रहा है
है मस्ती दिलों में नशा है निराला
कोई जाम पर जाम छलका रहा है
भरो अपना दामन बड़ों की दुआ से
नया साल हमको ये समझा रहा है
यह पुरकैफ़ माहौल देवी है भाया
जिसे देखिये खुश नज़र आ रहा है
फ़ऊलुन x4
बहरे-मुतकारिब मसम्मन सालिम
डा. अहमद अली वर्की आज़मी की एक ग़ज़ल:
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गज़ल:
नया साल है और नई यह ग़ज़ल
सभी का हो उज्जवल यह आज और कल
ग़ज़ल का है इस दौर मेँ यह मेज़ाज
है हालात पर तबसेरा बर महल
बहुत तल्ख़ है गर्दिशे रोज़गार
न फिर जाए उम्मीद पर मेरी जल
मेरी दोस्ती का जो भरते हैँ दम
छुपाए हैँ ख़ंजर वह ज़ेरे बग़ल
न हो ग़म तो क्या फिर ख़ुशी का मज़ा
मुसीबत से इंसाँ को मिलता है बल
वह आएगा उसका हूँ मैं मुंतज़िर
न जाए खुशी से मेरा दम निकल
है बेकैफ हर चीज़ उसके बग़ैर
नहीँ चैन मिलता मुझे एक पल
न समझेँ अगर ग़म को ग़म हम सभी
तो हो जाएँगी मुशकिले सारी हल
सभी को है मेरी यह शुभकामना
नया साल सबके लिए हो सफल
ख़ुदा से है बर्की मेरी यह दुआ
ज़माने से हो दूर जंगो जदल
मुतकारिब की मुजाहिफ़ शक्ल
122 122 122 12
चन्द्रभान भारद्वाज की एक ग़ज़ल:
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गज़ल:
पड़ी मांग सूनी कटी है कलाई;
नये साल की बंधु कैसी बधाई।
खड़ा है खुले आम दुश्मन हमारा,
कुटिल उसका मन आंख में बॆहयाई।
बनाकर गये धूल चंदन वतन की,
हमें गर्व है उन शहीदों पे भाई।
सधे थे कदम हाथ लाखों जुड़े थे,
बहे आँसुओं ने शमा जब जलाई।
वो बलिदान है आरती इस वतन की,
जलाई जो लौ हर तरफ जगमगाई ।
ये इतिहास भूगोल बदले तुम्हारा,
'भारद्वाज'सरहद अगर फिर जगाई।
फ़ऊलुन x4
बहरे-मुतकारिब मसम्मन सालिम
द्विजेन्द्र द्विज की एक ग़ज़ल:
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गज़ल:
ज़िन्दगी हो सुहानी नये साल में
दिल में हो शादमानी नये साल में
सब के आँगन में अबके महकने लगे
दिन को भी रात-रानी नये साल में
ले उड़े इस जहाँ से धुआँ और घुटन
इक हवा ज़ाफ़रानी नये साल में
इस जहाँ से मिटे हर निशाँ झूठ का
सच की हो पासबानी नये साल में
है दुआ अबके ख़ुद को न दोहरा सके
नफ़रतों की कहानी नये साल में
बह न पाए फिर इन्सानियत का लहू
हो यही मेहरबानी नये साल में
राजधानी में जितने हैं चिकने घड़े
काश हों पानी-पानी नये साल में
वक़्त ! ठहरे हुए आँसुओं को भी तू
बख़्शना कुछ रवानी नये साल में
ख़ुशनुमा मरहलों से गुज़रती रहे
दोस्तों की कहानी नये साल में
हैं मुहब्बत के नग़्मे जो हारे हुए
दे उन्हें कामरानी नये साल में
अब के हर एक भूखे को रोटी मिले
और प्यासे को पानी नये साल में
काश खाने लगे ख़ौफ़ इन्सान से
ख़ौफ़ की हुक्मरानी नये साल में
देख तू भी कभी इस ज़मीं की तरफ़
ऐ नज़र आसमानी ! नये साल में
कोशिशें कर, दुआ कर कि ज़िन्दा रहे
द्विज ! तेरी हक़-बयानी नये साल में.
बहरे-मुतदारिक मसम्मन सालिम
(फ़ाइलुन x4)** शादमानी - प्रसन्नता ; जाफ़रानी-केसर जैसी सुगन्ध जैसी ; पासबानी-सुरक्षा ; हुक्मरानी-सत्ता,शासन ;
हक़-बयानी : सच कहने की आदत ; कामरानी-सफलता; मरहले-पड़ाव
देवमणि पांडेय की एक ग़ज़ल:
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गज़ल:
नया साल हमसे दग़ा न करे
गए साल जैसी ख़ता न करे
अभी तक है छलनी हमारा शहर
नया ज़ख़्म खाए ख़ुदा न करे
नए साल में रब से मांग दुआ
किसी को किसी से जुदा न करे
सभी के लिए ज़िंदगी है मेरी
भले कोई मुझसे वफ़ा न करे
फरिश्ता तुझे मान लेगा जहां
अगर तू किसी का बुरा न करे
मोहब्बत से कह दो परे वो रहे
मेरी ज़िंदगी बेमज़ा न करे
झमेले बहुत ज़िंदगानी के हैं
तुझे भूल जाऊं ख़ुदा न करे
न टूटे कोई ख़्वाब इसके सबब
कुछ ऐसा ये बादे-सबा न करे
तो ख़्वाबों की ताबीर मुमकिन नहीं
अगर ज़िंदगानी वफ़ा न करे
अमीरों के दर से न पाएगा कुछ
भिखारी से कह दो दुआ न करे
बहरे-मुतकारिब मुजाहिफ़ शक्ल
गौतम राजऋषि की एक ग़ज़ल:
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गज़ल:
दूर क्षितिज पर सूरज चमका,सुब्ह खड़ी है आने को
धुंध हटेगी,धूप खिलेगी,साल नया है छाने को
पेड़ों की फुनगी पर आकर बैठ गयी जो धूप जरा
आँगन में ठिठकी सर्दी को भी आये तो गरमाने को
टेढ़ी भौंहों से तो कोई बात नहीं बनने वाली
मुट्ठी कब तक भींचेंगे हम,हाथ मिले याराने को
हुस्नो-इश्क पुरानी बातें,कैसे इनसे शेर सजे
आज गज़ल तो तेवर लायी सोती रूह जगाने को
साहिल पर यूं सहमे-सहमे वक्त गंवाना क्या यारों
लहरों से टकराना होगा पार समन्दर जाने को
प्रत्यंचा की टंकारों से सारी दुनिया गुंजेगी
देश खड़ा अर्जुन बन कर गांडिव पे बाण चढ़ाने को
साल गुजरता सिखलाता है,भूल पुरानी बातें अब
साज नया हो,गीत नया हो,छेड़ नये अफ़साने को
अपने हाथों की रेखायें कर ले तू अपने वश में
’गौतम’ तेरी रूठी किस्मत आये कौन मनाने को
(22x7+2)
सतपाल ख्याल की एक ग़ज़ल:
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गज़ल:
जश्न है हर सू , साल नया है
हम भी देखें क्या बदला है.
गै़र के घर की रौनक है वो
अब वो मेरा क्या लगता है.
दुनिया पीछे दिलबर आगे
मन दुविधा मे सोच रहा है.
तख्ती पे 'क' 'ख' लिखता वो-
बचपन पीछे छूट गया है.
नाती-पोतों ने जिद की तो
अम्मा का संदूक खुला है.
याद ख्याल आई फिर उसकी
आँख से फिर आँसू टपका है.
दहशत के लम्हात समेटे
आठ गया अब नौ आता है.
(22x4)
15 comments:
नया साल सब के लिए मंगलकारी हो.सब को नए साल कि बधाई.
सादर
ख्याल
नववर्ष की शुभकामनाएँ
NOOTAN VARSH KAA YE ANMOL UPHAAR
HAI.DHANYAVAAD SATPAL JEE.
SAB BHAI-BAHNON KO NAV VARSH,
2009 KEE SHUBH KAMNAYEN MEREE AUR
SE.
कुछ ही पलों में आने वाला नया साल आप सभी के लिए
सुखदायक
धनवर्धक
स्वास्थ्वर्धक
मंगलमय
और प्रगतिशील हो
यही हमारी भगवान से प्रार्थना है
नये साल की समस्त शुभकामनायें सतपाल जी...ईश्वर करे आपको सारी सफलतायें मिले और ये २००९ आपकी लेखनी से शब्दों के और-और कमाल दिखलाये
ये मेरे लिये वाकई सम्मान की बात है कि मेरी गज़ल को आपने इस उस्तादों की गज़ल के साथ सामने रखा...
आप सभी को नया साल मुबारक!
प्राण शर्मा, डॉ. अहमद अली बर्क़ी आज़मी, देवी नागरानी, चन्द्रभान भार्द्वाज, द्विजेन्द्र 'द्विज, देव मणि पांडेय, सतपाल 'ख़्याल' और अज़ीज़ गौतम राज ऋषि जैसे दिग्गज
शायरों के ख़ूबसूरत कलाम पढ़ कर नए साल में नई स्फूर्ति होना लाज़मी है। पढ़ कर बहुत आनंद आया। सतपाल 'ख़्याल' के हम आभारी हैं जिन्होंने नए साल को वाक़ई में 'सुहानी ज़िन्दगी' बना दी। पोस्ट के शुरू में ही इतनी दुआएं मिलें तो 'नए साल में मुश्किलें सहल हो ही जाएंगी'। अंत में डॉ. अहमद अली बर्क़ी आज़मी के इस शे'र में अपना सुर मिलाते हुए यही कहूंगाः
सभी को है मेरी यह शुभकामना
नया साल सबके लिए हो सफल।
sabhi ghazlen bahut achchi lagin. Mahaveer ji ki pratikriya bhi umda kavita se kam nahin.
Navneet.
नया साल ख़ुशियोँ का पैग़ाम लाए
डा. अहमद अली बर्क़ी आज़मी
नया साल ख़ुशियोँ का पैग़ाम लाए
ख़ुशी वह जो आए तो आकर न जाए
ख़ुशी यह हर एक व्यक्ति को रास आए
मोहबब्बत के नग़मे सभी को ससुनाए
रहे जज़बए ख़ैर ख़्वाही सलामत
रहैँ साथ मिल जुल के अपने पराए
जो हैँ इन दिनोँ दूर अपने वतन से
न उनको कभी यादे ग़ुर्बत सताए
नहीँ ख़िदमते ख़ल्क़ से कुछ भी बेहतर
जहाँ जो भी है फ़र्ज़ अपना निभाए
मुहबबत की शमएँ फ़रोज़ाँ होँ हर सू
दिया अमन और सुल्ह का जगमगाए
रहेँ लोग मिल जुल के आपस मँ बर्क़ी
सभी के दिलोँ से कुदूरत मिटाए
सतपाल जी को एक बार फिर से नववर्षाभिन्न्दन....ब्लौग का ये बदला गेट-अप मनमोहक है और नई तस्वीर भी खूब जंच रही है...
आप सभी को नूतन वर्ष की ढेरो बधाई और शुभकामनाएं ...
अर्श
शुभदायक हो, मंगलमय हो
नए साल में आपकी जय हो
देवमणि पाण्डेय
नाती-पोतों ने जिद की तो
अम्मा का संदूक खुला है.
kya baat hai, ek nayapan samete hai ye she'r. bahut khoob !!
गज़लों का गुलदस्ता है आपका ब्लॉग, या यूँ कहू गज़लों का सागर है यह ब्लॉग
देरी से ही सही पर परिचय हो गया
नव वर्ष मंगल-मय हो
Superb
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 01 जनवरी 2022 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
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