
पाकिस्तान के मशहूर शायर राशिद आमीन की दो ग़ज़लें हाज़िर हैं। उम्मीद है कि आप पसंद करेंगे।

ग़ज़ल
घुग्गू ,घोड़े ,ढोले,माहिए छोड़ आया हूँ
रिज़्क की खातिर कितने रिश्ते छोड़ आया हूँ
दोनों आँखें क़ैद न कर लें शह्र की रौनक
इसी लिए तो गाँव में बच्चे छोड़ आया हूँ
सिट्टों पर चिड़ियों का लश्कर वार न कर दे
खेतों में लकड़ी के बावे छोड़ आया हूँ
बाग़ में जिस की मर्ज़ी जैसा फूल लगाए
मैं तो मट्टी भर के गमले छोड़ आया हूँ
शह्र की हर चौखट पर अब हिजरत से पहले
आज़ादी के परचम, नारे छोड़ आया हूँ
ग़ज़ल
पत्थर पड़े हुए कहीं रस्ता बना हुआ
हाथों में तेरे गाँव का नक़्शा बना हुआ
सहरा की गर्म धूप में बाग़े-बहिश्त में
तिनकों से तेरे हाथ का पंखा बना हुआ
संदल की इत्र में तेरी मेंहदी गुँधी हुई
सोने के तार से मेरा सेहरा बना हुआ
यादों से ले रहा हूँ हिना-ए-महक का लुत्फ़
टेबल पे रख के लौंग का काहवा बना हुआ
मेले में नाचती हुई जट्टी के रक्स पर
यारों के दरमियान है घगरा बना हुआ
