Friday, September 10, 2021

एक शे'र

 


निदा फ़ाज़ली और कबीर-एक ज़मीन दो शायर -Nida Fazli-Kabir

 

निदा फ़ाज़ली और कबीर एक ही ज़मीन में दोनों की ग़ज़लें-


निदा साहब -

ये दिल कुटिया है संतों की यहाँ राजा-भिखारी क्या
वो हर दीदार में ज़रदार है, गोटा-किनारी क्या.

ये काटे से नहीं कटते ये बांटे से नहीं बंटते
नदी के पानियों के सामने आरी-कटारी क्या.

उसी के चलने-फिरने-हँसने-रोने की हैं तस्वीरें
घटा क्या, चाँद क्या, संगीत क्या, बाद-ए-बहारी क्या.

किसी घर के किसी बुझते हुए चूल्हे में ढूँढ उसको
जो चोटी और दाढ़ी में रहे वो दीनदारी क्या.

हमारा मीर जी से मुत्तफिक़ होना है नामुमकिन
उठाना है जो पत्थर इश्क़ का तो हल्का-भारी क्या


 कबीर -Kabiirdas


हमन है इश्क मस्ताना, हमन को होशियारी क्या ?
रहें आजाद या जग से, हमन दुनिया से यारी क्या ?

जो बिछुड़े हैं पियारे से, भटकते दर-ब-दर फिरते,
हमारा यार है हम में हमन को इंतजारी क्या ?

खलक सब नाम अनपे को, बहुत कर सिर पटकता है,
हमन गुरनाम साँचा है, हमन दुनिया से यारी क्या ?

न पल बिछुड़े पिया हमसे न हम बिछड़े पियारे से,
उन्हीं से नेह लागी है, हमन को बेकरारी क्या ?

कबीरा इश्क का माता, दुई को दूर कर दिल से,
जो चलना राह नाज़ुक है, हमन सिर बोझ भारी क्या ?


फरहत शहज़ाद साहब का ताज़ा शे'र

 काट कर पैर ,कर दिया आज़ाद जब उसने मुझे

देख सकती थीं जो आंखें ,उनको नम होना पड़ा
फरहत शहजाद साहब |

Thursday, September 9, 2021

राहत इंदौरी साहब के पांच खूबसूरत शेर - Rahat Indori

 

शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम

आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे

 

रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है

चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है


हाथ ख़ाली हैं तिरे शहर से जाते जाते

जान होती तो मिरी जान लुटाते जाते

 

बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए

मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए

 

आते जाते हैं कई रंग मिरे चेहरे पर

लोग लेते हैं मज़ा ज़िक्र तुम्हारा कर के


राहत इंदौरी

1 Jan1950-11 August 2020

आज का शे'र -ग़ालिब /Ghalib