Monday, October 11, 2021
उजाले की परियां -बशीर बद्र
उजालों की परियां -बशीर बद्र
उजालों की परियां ग़ज़ल संग्रह से -बशीर बद्र
उजालों की परियां -
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ग़ज़ल
अब किसे चाहें किसे ढूँढा करें
वो भी आख़िर मिल गया अब क्या करें
हल्की-हल्की बारिशें होती रहें
हम भी फूलों की तरह भीगा करें
आँख मूँदे उस गुलाबी धूप में
देर तक बैठे उसे सोचा करें
दिल मुहब्बत दीन-दुनिया शायरी
हर दरीचे से तुझे देखा करें
घर नया कपड़े नये बर्तन नये
इन पुराने काग़ज़ों का क्या करें
ग़ज़ल बशीर बद्र -उजालों की परियां
उजालों की परियां -
ग़ज़ल
वो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है
बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है
उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीने से
तुम्हें ख़ुदा ने हमारे लिये बनाया है
महक रही है ज़मीं चांदनी के फूलों से
ख़ुदा किसी की मुहब्बत पे मुस्कुराया है
उसे किसी की मुहब्बत का ऐतबार नहीं
उसे ज़माने ने शायद बहुत सताया है
तमाम उम्र मेरा दम उसके धुएँ से घुटा
वो इक चराग़ था मैंने उसे बुझाया है
Sunday, October 10, 2021
शाहिद कबीर की एक ग़ज़ल
नींद से आँख खुली है अभी देखा क्या है
देख लेना अभी कुछ देर में दुनिया क्या है
बाँध रक्खा है किसी सोच ने घर से हम को
वर्ना अपना दर-ओ-दीवार से रिश्ता क्या है
रेत की ईंट की पत्थर की हो या मिट्टी की
किसी दीवार के साए का भरोसा क्या है
घेर कर मुझ को भी लटका दिया मस्लूब के साथ
मैं ने लोगों से ये पूछा था कि क़िस्सा क्या है
संग-रेज़ो के सिवा कुछ तिरे दामन में नहीं
क्या समझ कर तू लपकता है उठाता क्या है
अपनी दानिस्त में समझे कोई दुनिया 'शाहिद'
वर्ना हाथों में लकीरों के अलावा क्या है
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ग़ज़ल हर घड़ी यूँ ही सोचता क्या है? क्या कमी है ,तुझे हुआ क्या है? किसने जाना है, जो तू जानेगा क्या ये दुनिया है और ख़ुदा क्या है? दर-बदर खाक़ ...
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स्व : श्री प्राण शर्मा जी को याद करते हुए आज उनके लिखे आलेख को आपके लिए पब्लिश कर रहा हूँ | वो ब्लागिंग का एक दौर था जब स्व : श्री महावीर प...