
अच्छी ग़ज़लें कहना खेल नहीं अंजुम
किरनें बुनकर चाँद बनाना पड़ता है
ग़ज़ल
तोड़ कड़ियाँ ज़मीर की अंजुम
और कुछ देर तू भी जी अंजुम
एक भी गाम चल न पायेगी
इन अँधेरों में रौशनी अंजुम
ज़िंदगी तेज़ धूप का दरिया
आदमी नाव मोम की अंजुम
जिस घटा पर थी आँख सहरा की
वो समंदर पे मर गई अंजुम
*क़ुलज़मे-खूं सुखा के दम लेगी
आग होती है आगही अंजुम
जिन पे सूरज की मेहरबानी हो
उन पे खिलती है चाँदनी अंजुम
सुबह का ख़्वाब उम्र भर देखा
और फिर नींद आ गई अंजुम
*क़ुलज़म-दरिया
बहरे-खफ़ीफ़ की मुज़ाहिफ़ शक्ल
फ़ा’इ’ला’तुन म’फ़ा’इ’लुन फ़ा’लुन