डा. प्रेम भारद्वाज
जन्म: 25 दिसम्बर ,1946. नगरोटा बगवाँ (हिमाचल प्रदेश)
शिक्षा: बी.एस.सी.(आनर्ज़),एम.ए.(हिन्दी, समाज शास्त्र),एम.एड.,एम.फ़िल.(गोल्ड मैडल)पी.एच.डी.
पुस्तकें :तीन ग़ज़ल संग्रह: मौसम ख़राब है,कई रूप रंग,मौसम मौसम, अपनी ज़मीन से
शोध: मनोसामाजिक अध्ययन—लोक कथा मानस
सम्मान: हिमसचल केसरी,, काँगड़ा श्री, राज्य स्तरीय पहाड़ी साहित्य सम्मान,प्रदेश सरकार द्वारा पहाड़ी गाँधी, सम्मान, साहित्य रत्न ,महापंजाब सम्मान .
सम्प्रति:प्राचार्य,शरण महिला शिक्षा महाविद्यालय,घुरकड़ी
फोन: 01892—252044,मो. 094182—18200
1.ग़ज़ल
साफ़गोई से कहा कोरा कहा
जो कहा डट कर कहा सीधा कहा
फिर पुरानी सोच पीछे पड़ गई
शे'र हमने जब कोई ताज़ा कहा
ख़ुदनुमाई हाक़िमों की क्या हुई
टट्टुओं को नस्ल का घोड़ा कहा
अक़्स अपना ढूँढते रह जाओगे
हर हसीं चेहरे को शीशा कहा
कर दिया मजबूर किसने आपको
आपने फिर क्यूँ हमें अपना कहा
बात करते हैं ग़ज़लगो प्रेम की
यार लोगों ने उन्हें क्या— क्या कहा.
बहर: रमल: फ़ायलातुन,फ़ायलातुन फ़ायलुन:2122,2122,212
2.ग़ज़ल
रिश्ते तमाम तोड़ कर अपनी ज़मीन से
अपने निशाँ तलाशियेगा खुर्दबीन से
सर पर हवा के तो नहीँ है बीज का वजूद
बरगद हुआ तभी जो मिला है ज़मीन से
देते रहेंगे उनको सदा मख़मली सुकून
हैं देखने पहाड़ जिन्हें दूरबीन से
रन्दों की रेगमार की थी फिर मजाल क्या
कटते न देवदार जो आरा—मशीन से
अख़्लाक़ के हिमायती बन्दे उसूल के
खुल खेलते रहे किसी पर्दानशीन से
रक्खा था मैनें जिसको कभी दिल में पालकर
निकला है साँप बन के मेरी आस्तीन से
इक शे'र पर भी दाद न दी बे लिहाज़ ने
गो हमने खूब शे'र कहे बेहतरीन से
इक दूसरे की टाँग जो खींची गई यहाँ
होने न पाए आप तभी चार तीन से
वो लड़खड़ाहटें नहीं अपनी ज़बान में
हम जो कहेंगे बात कहेंगे यक़ीन से
इन्सानियत बटोरती दहशत रही यहाँ
रूहानियत, रिवायतों, ईमान—ओ—दीन से
देगी नजात देखना यह प्रेम की मिठास
कड़वाहटों भरी फ़ज़ा ताज़ातरीन से.
बहर : मुज़ारे मशमन अखरब मक्ज़ूफ़,महजूफ़: मफ़ऊल, फ़ायलात, मुफ़ाईल,फ़ायलुन
(221,2121,1221 ,212)
3.ग़ज़ल
अगर मुजरों में बिकनी शायरी है
सही कहने की किसको क्या पड़ी है
हैं बाहर गर अँधेरे ही अँधेरे
ये क्या अन्दर है जिसकी रौशनी है
यूँ ही चर्चे यहाँ फ़िरदौस के हैं
बनेगा देवता जो आदमी है
हुई ख़ुश्बू फ़िदा है जिस अदा पर
बला की सादगी है ताज़गी है
करे तारीफ़ अब दुश्मन भी अपना
हुई जो आप से ये दोस्ती है
समुन्दर के लिए नदिया की चल—चल
है उसकी बन्दगी या तिश्नगी है
ज़माना प्रेम के पीछे पड़ेगा
महब्ब्त से पुरानी दुश्मनी है.
बहर:हज़ज की एक सूरत: मुफ़ायेलुन,मुफ़ायेलुन,फ़ऊलुन 1222,1222,122
आपके विचारों का इंतजा़र रहेगा.
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11 comments:
यूँ ही चर्चे यहाँ फ़िरदौस के हैं
बनेगा देवता जो आदमी है .........
खूबसूरत ग़ज़ल.
thanks Prabhaa jii
i will forward your appericiation to this poet.
thanks
teeno ghazlon main yeh jyada acchi lagi
aap apna email id aur blogger se sambandhit jo bhi jaankaari chahiye wo mujhe mail kar den rasprbha@gmail.com par...
Achh prayas hai. Kuchh aur sudhar ki avashyakata hai. Apne parichay ke sath yadi apne guru ji ka pura parichaya bhi dete to behtar hota, kyonni aapne unke saath milkar yeh blog banaya hai.
Badhai.
Chandel
satpal ji
man ko choo si gayi hai aapki gazlein
Umda sher hai
समुन्दर के लिए नदिया की चल—चल
है उसकी बन्दगी या तिश्नगी है
Jahan hal chal hi halchal ho rahi hai
Yehi to zindagi, haan zindagi hai.
Daad ke saath
Devi
दूसरे नम्बर की गज़ल बहुत अच्छी लगी...शायर साहब को बहुत-बहुत बधाई...और आपके लिये शुभकामनायें...बहुत अच्छा प्रयास कर रहे हैं आप...
प्रेम जी ....
waah क्या बात है ....
ये शेर बहुत अच्छे लगे ....
फिर पुरानी सोच पीछे पड़ गई
शे'र हमने जब कोई ताज़ा कहा
कर दिया मजबूर किसने आपको
आपने फिर क्यूँ हमें अपना कहा
ऐसे ही कह्ते रहे .........
regards
bhaut khub lika hai aapne
Bhardwazji,
Aap ke sabhi shyar acchy hain par es ki baat to kuch niral;i hi hai.
समुन्दर के लिए नदिया की चल—चल
है उसकी बन्दगी या तिश्नगी है
Beautiful
Dear Khyaalji,
Blog ke liye badhai.
Tamaam ghazalein khoobsoorat. Khaas kar Pawan, Ranjan aur Deepak ki. Ek achha prayas hai. Zaari rakhen.
Ramesh Kapur
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