नाम : कवि कुलवंत सिंह
जन्म: 1967 उतरांचल(रुड़की)
शिक्षा: आई आई टी रुड़की.(अभियंत्रिकी)
प्रकाशित पुस्तकें: निकुंज (काव्य संग्रह)
शिक्षा: आई आई टी रुड़की.(अभियंत्रिकी)
प्रकाशित पुस्तकें: निकुंज (काव्य संग्रह)
रुचियां - कवि सम्मेलनो में भाग लेना। मंच संचालन। क्विज मास्टर। विज्ञान प्रश्न मंच प्रतियोगिता आयोजन। मानव सेवा धर्म - डायबिटीज, जोड़ों का दर्द, आर्थराइटिस, कोलेस्ट्रोल का प्राकृतिक रूप से स्थाई एवं मुफ़्त इलाज।
निवास: मुम्बई.
फ़ोन: 09819173477
href="mailto:singhkw@indiatimes.com">singhkw@indiatimes.com
ग़ज़ल- तप कर गमों की आग में ..
बहर - 2212 1211 2212 12
तप कर गमों की आग में कुंदन बने हैं हम
खुशबू उड़ा रहा दिल चंदन सने हैं हम
रब का पयाम ले कर अंबर पे छा गए
बिखरा रहे खुशी जग बादल घने हैं हम
सच की पकड़ के बाँह ही चलते रहे सदा
कितने बने रकीब हैं फ़िर भी तने हैं हम
छुप कर करो न घात रे बाली नहीं हूँ मैं.
हमला करो कि अस्त्र बिना सामने हैं हम
खोये किसी की याद में मदहोश है किया
छेड़ो न साज़ दिल के हुए अनमने हैं हम.
15 comments:
बिखरा रहे खुशी जग बादल घने हैं हम
**इसे विस्तार से समझाएं.
सतपाल जी बहुत खुशी की बात है कि आपने मेरी गजल को चुना और प्रकाशित किया.. धन्यवाद..
बिखरा रहे खुशी जग बादल घने हैं हम
रब ने एक संदेश के साथ हमें(इंसान को) इस दुनिया में भेजा है..परोपकार का इंसान से मोहब्ब्त का.. उसी संदेश को लेकर हम बादल बन कर जग में छा एहे हैं और खुशियां बिखेरते चल रहे हैं...
अगर बहर की बात करें तो आपने "दिल", "जग" "कर" इन शब्दों को 11 के बजन मे लिया है जो मेरे हिसाब से गलत है .इन्हें हम 2 या गुरु के बजन मे ही लेंगे.आप इस पर अपनी राय दें.......
बहुत खूब जी
मैने गजल छंदशास्त्री महर्षि जी से इस गजल पर चर्चा की थी और उन्होने इस प्रकार की संधि को गलत नही माना है..
खोये किसी की याद ने मदहोश है किया
छेड़ो न साज़ दिल के हुए अनमने हैं हम.
यह पंक्तियाँ अच्छी लगी कुलवन्त जी...
रंजू जी सुनीता जी आपका हार्दिक धन्यवाद..
Kaviji
aapka dhanyawaad
bhai sunder prastuti hai
Devi
dnangrani@gmail.com
कुलवंत जी,
आप छंदशास्त्री महर्षि जी को मेरी नमस्ते कहिएगा.अगर उन्होने इसे सही कहा है कि "दिल" को ११ और २ के बज़न मे ले सकते हैं तो.. no comment he himself is an authority. pls pay my regards to this great poet.This issue is over now.
गजल अच्छी लगी ,बधाई!
सतपाल जी देवी जी ने आपका फोन मांगा था । मैने दिया है.. वहा आप से बात करना चाहती हैं...
कवी कुलवंत नए दौर के सबसे रचनाशील कवी है.
CHANDRAPAL,MUMBAI
तप कर गमों की आग में कुंदन बने हैं हम
खुशबू उड़ा रहा दिल चंदन सने हैं हम
matla sher nahii ban paya hai kyonki dono misroN ka aapas me koi rabt nahii hai..
रब का पयाम ले कर अंबर पे छा गए
बिखरा रहे खुशी जग बादल घने हैं हम
सच की पकड़ के बाँह ही चलते रहे सदा
कितने बने रकीब हैं फ़िर भी तने हैं हम
in dono sher me fasahat nahi hai
छुप कर करो न घात रे बाली नहीं हूँ मैं.
हमला करो कि अस्त्र बिना सामने हैं हम
ek hi sher me two different persons ka sambodhan yani main aur hum aib paida kar raha hai..
खोये किसी की याद में मदहोश है किया
छेड़ो न साज़ दिल के हुए अनमने हैं हम.
hum to kisi ki yaad me madhosh hain abhi..
aur bhi kai tarah se baat kahii ja sakti hai..
magar madhosh hain to anmane kyon hain justify nahii ho pata hai..
aap ki ghazal k liye jo dedication hai, isme koi shaq-o-subha nahi hai ye mashq yunhi jari rahna chahiye.. jald hi achhe sher honge aapki qalam se...
regards..
mahen...
द्विज जी दिल के लिए तो २ ही आता है; लेकिन कुछ विशेष तकनीक के अंतर्गत संधि की जा सकती है । ऐसा महर्षि जी का मानना है। इस गजल की मैने पुन: उनसे चर्चा की उन्होने कहा कि यहां दिल सही है.. यह तकनीक बहुत कम लोगों को मालुम है..और भी कै बातें उन्होंने समझाईं..कुछ पल्ले नहीं भी पड़ीं..
Post a Comment