Monday, May 5, 2008

पवनेन्द्र ‘ पवन ’ की दो ग़ज़लें और परिचय

परिचय:

नाम: पवनेन्द्र ‘पवन’
जन्म तिथि: 7 मई 1945.
शिक्षा: बी.एस.सी. (आनर्ज़),एम.एड.
हिन्दी और पहाड़ी ग़ज़ल को समर्पित हस्ताक्षर.
अपने ख़ास समकालीन तेवर और मुहावरे के लिए चर्चित.
पहाड़ी साहित्य की लगभग सभी विधाओं में लेखन.
सम्प्रति: प्राचार्य, एम.इ.टी.पब्लिक सीनियर सेकैंडरी स्कूल, नगरोटा बगवाँ—176047 (हिमाचल प्रदेश)
स्थाई पता: धौलाधार कालोनी ,नगरोटा बगवाँ—176047 (हिमाचल प्रदेश)
दूरभाष : 01892—252079, Mob. : 094182—52675.


ग़ज़ल १

घूमती है दर—ब—दर ले कर पटारी ज़िन्दगी
पेट पापी के लिए बन कर मदारी ज़िन्दगी

गालियाँ कुछ को मिलीं, कुछ ने बटोरी तालियाँ
वक़्त की पिच पर क्रिकेट की एक पारी ज़िन्दगी

दो क़दम चलकर ही थक कर हाँफ़ने लगते हैं लोग
किसने इन पर लाद दी इनसे भी भारी ज़िन्दगी

वक़्त का टी.टी. न जाने कब इसे चलता करे
बिन टिकट के रेल की जैसे सवारी ज़िन्दगी

झिड़कियाँ, आदेश, हरदम गालियाँ सुनती रहे
चौथे दर्ज़े की हो गोया कर्मचारी ज़िन्दगी

मौत तो जैसे ‘पवन’ मुफ़लिस की ठण्डी काँगड़ी
बल रही दिन—रात दफ़्तर की बुख़ारी ज़िन्दगी.

(beher-e -Ramal. faa-i-laatun x3+ faa-i-lun)


ग़ज़ल २


भूख से लड़ता रोज़ लड़ाई माँ का पेट
सूख गया सहता महँगाई माँ का पेट

मुफ़्त ले बैठा मोल लड़ाई माँ का पेट
देकर सबको बहनें भाई माँ का पेट

कोर निगलते ले उबकाई माँ का पेट
खा जाता है ढेर दवाई माँ का पेट

सड़कों पर अधनंगे ठिठुरे सोते हैं जो
उन बच्चों को एक रज़ाई माँ का पेट

मेहमाँ, गृहवासी, फिर कौआ, कुत्ता, गाय,
अंत में जिसकी बारी आई माँ का पेट

झिड़की —ताना, हो जाता है जज़्ब सब इसमें
जाने कितनी गहरी खाई माँ का पेट.

(vazan hai: 8 faa-lun +1 fa)

7 comments:

द्विजेन्द्र ‘द्विज’ said...

प्रिय सतपाल
श्री पवनेन्द्र जी की ये ग़ज़लें सच्चे अर्थों में आज की ग़ज़लें हैं.
तुमने इन्हें प्रस्तुत भी बहुत सुन्दर तरीक़े से किया है.
द्विजेंद्र द्विज

रंजन गोरखपुरी said...

Pawan ji aapne behad inqalaabi jazbaat pesh kiye har ek sher mein.
दो क़दम चलकर ही थक कर हाँफ़ने लगते हैं लोग
किसने इन पर लाद दी इनसे भी भारी ज़िन्दगी

झिड़कियाँ, आदेश, हरदम गालियाँ सुनती रहे
चौथे दर्ज़े की हो गोया कर्मचारी ज़िन्दगी
Zaahiri taur pe behad safal vyang hai vyavastha pe!

Doosri ghazal ka marm dil ko chhoo jata hai! Maa ke tyaag aur peeda ko anokhe dhang se pesh kiya hai!! Beshaq Maa ki har baat niraali hai!!
Tahe dil se hamaari daad haazir hai Pavan ji.

Mahender Kumar 'Sani' said...

ग़ज़ल १
घूमती है दर—ब—दर ले कर पटारी ज़िन्दगी
पेट पापी के लिए बन कर मदारी ज़िन्दगी

achha hai...

गालियाँ कुछ को मिलीं, कुछ ने बटोरी तालियाँ
वक़्त की पिच पर क्रिकेट की एक पारी ज़िन्दगी

hasil-e-ghazal sher..

दो क़दम चलकर ही थक कर हाँफ़ने लगते हैं लोग
किसने इन पर लाद दी इनसे भी भारी ज़िन्दगी

khoob..


वक़्त का टी.टी. न जाने कब इसे चलता करे
बिन टिकट के रेल की जैसे सवारी ज़िन्दगी

achha hai..

झिड़कियाँ, आदेश, हरदम गालियाँ सुनती रहे
चौथे दर्ज़े की हो गोया कर्मचारी ज़िन्दगी

mujhe yakeen sher thik hoga, SUNTI RAHE..
SPASHT NAHI HAI.. YE SUNTE RAHE HAI. KYA HAI. LEKIN ACHHA KHAYAL HAI..

मौत तो जैसे ‘पवन’ मुफ़लिस की ठण्डी काँगड़ी
बल रही दिन—रात दफ़्तर की बुख़ारी ज़िन्दगी.

achha matla hai..

Is ghazal ki sabse khoobsurat baat yahii hai k angrezi shabdoN ka istemal badi saadgi se kiya hai..
tagazzul kahiiin marta nahii inse...

bahut khoob...

द्विजेन्द्र ‘द्विज’ said...

आदरणीय महेन जी,
क्योंकि बात ज़िन्दगी की हो रही है इसलिए सही अल्फ़ाज़ सुनती रहे sunatii rahe ही हैं.
पवन जी ने आपके लिए धन्यवाद कहा है.
सादर,
‘द्विज’

pallavi trivedi said...

दोनों ही गज़लें इतनी उम्दा हैं की किसी एक शेर को तारीफ के लिए नहीं चुना जा सकता! उस पर भी पहली ग़ज़ल तो सुभान अल्लाह है.

श्रद्धा जैन said...

कोर निगलते ले उबकाई माँ का पेट
खा जाता है ढेर दवाई माँ का पेट

सड़कों पर अधनंगे ठिठुरे सोते हैं जो
उन बच्चों को एक रज़ाई माँ का पेट

ye dono sher jaise aankh main aansun le aaye

satpal ji bahut bahut shukriya aapka ki aapne pawan ji ki is gazal se milaya

Rajeysha said...

बहुत ही प्‍यारी सीधी सादी गजलें