परिचय
46 वर्षीय श्री बृज कुमार अग्रवाल (आई. ए. एस.) उत्तर प्रदेश के ज़िला फ़र्रुख़ाबाद से हैं.
आप आई.आई. टी. रुड़की से बी.ई. और आई.आई. टी. दिल्ली से एम.टेक. करने के पश्चात 1985 से भारतीय प्रशासनिक सेवा के हिमाचल काडर में वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी हैंI आप साहित्य , कला एवं संस्कृति के मर्मज्ञ व संरक्षक तथा ग़ज़ल को समर्पित एक सशक्त हस्ताक्षर हैं I
ग़ज़ल
सच को बचाना अब तो यहाँ एक ख़्वाब है
जब आईना भी दे रहा झूठे जवाब है ।
चेहरा तो कोई और है ये जानते हैं हम
कहते हैं लोग जिसको सियासत, नकाब है।
माने नियम जो वो तो है कमज़ोर आदमी
तोड़े नियम जो आज वही कामयाब है।
मेरी बेबसी है उसको ही मैं रहनुमा कहूँ
मैं जानता हूँ उसकी तो नीयत ख़राब है ।
दो पल सुकून के मिलें तो जान जाइये
अगले ही पल में आने को कोई अज़ाब है ।
सफ़`आ उलटना एक भी दुश्वार हो गया
किसने कहा था वो तो खुली इक किताब है ।
इसे तोड़ने से पहले कई बार सोचना
तेरा भी वो न हो कहीं मेरा जो ख़्वाब है ।
मेरा सवाल फिर भी वहीं का वहीं रहा
माना जवाब तेरा बहुत लाजवाब है ।
S S I, S I S I , I S S I , S I S
बह्र मुज़ारे
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15 comments:
दोस्त गडबड कर दी जब आइने झूठ बोलने लगे हैं तो कैसे चलेगा... हम तो सोच रहे थे कि
आओ हम सब पहन लें आइना
सारे देखेंगे अपना ही चेहरा
सबको सारे हंसी दिखेंगे यहां
शानदार कोशिश है रूबरू कराते रहिए
दोस्त गडबड कर दी जब आइने झूठ बोलने लगे हैं तो कैसे चलेगा... हम तो सोच रहे थे कि
आओ हम सब पहन लें आइना
सारे देखेंगे अपना ही चेहरा
सबको सारे हंसी दिखेंगे यहां
शानदार कोशिश है रूबरू कराते रहिए
सचिन जी,
यही तो शायर कहना चाहता है कि आइना भी झूठ दिखा रहा है.यहां से आप को उम्मीद हो कि सच दिखे वहीं झूठ दिख रहा है..यही त्रासदी है.
फ़िर ऐसे मे सच को बचाना तो मुश्किल है ही..
सादर
सतपाल ख्याल
सच को बचाना अब तो यहाँ एक ख़्वाब है
जब आईना भी दे रहा झूठे जवाब है ।
चेहरा तो कोई और है ये जानते हैं हम
कहते हैं लोग जिसको सियासत, नकाब है।
bahoot khoob ....
Kuch ek sher Ghazal ko kamjor kar rahe hain .... Mukammil Ghazal umda hai
सच को बचाना अब तो यहाँ एक ख़्वाब है
जब आईना भी दे रहा झूठे जवाब है ।
चेहरा तो कोई और है ये जानते हैं हम
कहते हैं लोग जिसको सियासत, नकाब है।
bahoot khoob ....
Kuch ek sher Ghazal ko kamjor kar rahe hain .... Mukammil Ghazal umda hai
श्री बृज कुमार अग्रवाल जी की एक उम्दा गज़ल...
अच्छा लगा... एक साथी से मुलाकात का भी बहाना बना... मै भी IIT रुड़की से हूं.. 1987 से..B.E. (Metallurgy). जहां तक आइने की बात है एक शेर अर्ज करता हूँ..
यकीं किसपर करूँ मै आईना भी झूठ कहता है ।
दिखाता उल्टे को सीधा व सीधा उल्टा लगता है ॥
कवि कुलवंत सिंह
http://kavikulwant.blogspot.com
...अग्रवाल जी की रचना से मुखातिब होने का मौका मिला...इक़ नज़र परिचय पर डाली...तो समझ और भी आया...कि "फ़लक" पे भी सुकूँ की बदली में ग़मों का "सागर" भी है...पहली लाइन ने ही हलचल मचा दी..."सचिन लुधियानवी की ज़ानिब नज़र का फिरना अनासय ही तय हुआ...समझते देर न लगी...कि उन्हें समझने में कहाँ देर हुई...(अब जो गर वो गहरे में उतर गए हों तो) नहीं तो वो अभी भी अपनी अर्जियाँ लिए खडे हो सकते हैं...इक़ अधिकार के साथ.
मैं इस बात पर शायद इसलिए भी जादा कहे जा रहा हूँ, चूँकि पहली नज़र ने मुझे भी अचंभित कर दिया था...बेहतर रचना...लिखते रहें...
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सादर;
~अमित के. सागर~
http://ultateer.blogspot.com
माने नियम जो वो तो है कमज़ोर आदमी
तोड़े नियम जो आज वही कामयाब है।
मेरी बेबसी है उसको ही मैं रहनुमा कहूँ
मैं जानता हूँ उसकी तो नीयत ख़राब है
।bahut khub Brijeshji, itni sunder gazal,har shabd mey ik sachchaai. har pankti,har shabd se mai bhi sahmat hoon. par ye dono sher .......bilkool thik kahaa aapne.aise hi likhte rahie. bahut khub.
MAITREYEE.
माने नियम जो वो तो है कमज़ोर आदमी
तोड़े नियम जो आज वही कामयाब है।
मेरी बेबसी है उसको ही मैं रहनुमा कहूँ
मैं जानता हूँ उसकी तो नीयत ख़राब है
।bahut khub Brijeshji, itni sunder gazal,har shabd mey ik sachchaai. har pankti,har shabd se mai bhi sahmat hoon. par ye dono sher .......bilkool thik kahaa aapne.aise hi likhte rahie. bahut khub.
MAITREYEE.
सच को बचाना अब तो यहाँ एक ख़्वाब है
जब आईना भी दे रहा झूठे जवाब है ।
chahe sone k fraim me jad do
aaina jhoot bolta hi nahii..
KRISHN BIHARI NOOR..
(mere khayal se irrelivant hai ye sher)
चेहरा तो कोई और है ये जानते हैं हम
कहते हैं लोग जिसको सियासत, नकाब है।
bandish chust nahii hai.. aur bhi achha ho sakta hai ye sher..
माने नियम जो वो तो है कमज़ोर आदमी
तोड़े नियम जो आज वही कामयाब है।
niyam todne se kaamyabi mil hi jayegi ye zaruri to nahii.. aur kamzor kamyaab ka kya rabt hai?
मेरी बेबसी है उसको ही मैं रहनुमा कहूँ
मैं जानता हूँ उसकी तो नीयत ख़राब है ।
pahla misra bahr se kharij hai..
hai meri bebasi jo use rahnuma kahooN..
दो पल सुकून के मिलें तो जान जाइये
अगले ही पल में आने को कोई अज़ाब है ।
achha sher hua hai..
सफ़`आ उलटना एक भी दुश्वार हो गया
किसने कहा था वो तो खुली इक किताब है ।
kya kahna chahte hain spasht nahii hota.. sher kis uddeshya se kaha gaya hai?
( ye saf'ha hai ya saf'aa muafi k saath pooch raha hooN..)
इसे तोड़ने से पहले कई बार सोचना
तेरा भी वो न हो कहीं मेरा जो ख़्वाब है ।
ek khoobsurat khayal hai magar poori tarah se bandh nahii paya hai..
pahla misra bahr se kharij hai..
मेरा सवाल फिर भी वहीं का वहीं रहा
माना जवाब तेरा बहुत लाजवाब है ।
haasil-e-ghazal sher hai.. bahut achhe se kaha hai..
(apni umr se badi baad kar raha hooN..
magar tanqeedi nazariye se jo mujhe laga wo maine kaha hai)
Regards..
Mahen..
Halaki main yahan feedback nahi deta , pehli baar de raha hun , sabse pahle hazreen ko aadab
सच को बचाना अब तो यहाँ एक ख़्वाब है
जब आईना भी दे रहा झूठे जवाब है ।
( fun-e-adab apko kuch bhi sochne ka haq nahi deta .... aap muhawara wahi istemal kar sakte hain jo ho ... aaina jhot nahi bolta , ye muhawara hai .... is liye daleel adbi sateh par bemani hai )
चेहरा तो कोई और है ये जानते हैं हम
कहते हैं लोग जिसको सियासत, नकाब है।
(hmmm)
माने नियम जो वो तो है कमज़ोर आदमी
तोड़े नियम जो आज वही कामयाब है।
(do misre tabhi sher bante hain jab un main koi rabta qayam hota hai .... komzoor ka rabta takatwar se ho sakta hai kamiyaab se nahi ... halaki aap jo baat kehna chahte hain wahan wo sahi hai par lafz apne galat chune hain)
मेरी बेबसी है उसको ही मैं रहनुमा कहूँ
मैं जानता हूँ उसकी तो नीयत ख़राब है ।
( sher behar mein nahi hai )
दो पल सुकून के मिलें तो जान जाइये
अगले ही पल में आने को कोई अज़ाब है ।
( sher theek hai .... par zabaan sahi nahi )
सफ़`आ उलटना एक भी दुश्वार हो गया
किसने कहा था वो तो खुली इक किताब है ।
( mehan ne sahi kaha hai saf'ha hota hai .... dusre misre mein na "to" ki zaroorat hai na hi "ek" ki , inko nikaal kar sher kahiye )
इसे तोड़ने से पहले कई बार सोचना
तेरा भी वो न हो कहीं मेरा जो ख़्वाब है ।
( sher behar se kharij hai ..... dusre misre mein "kahin" ki zaroorat nahi hai )
मेरा सवाल फिर भी वहीं का वहीं रहा
माना जवाब तेरा बहुत लाजवाब है ।
( hmmmmm)
regards
पुराने मुहावरे पुराने ज़माने के ज़हीन लोगों ने पुराने ज़माने के मुताबिक बनाए थे . आज के शायर को आज के मुताबिक़ मुहावरे बनाने दीजिए , आखिर शायर को महसूस हुआ है कि आइना झूट बोलने लगा है तो इसमें ग़लत है भी क्या? अगर कृष्ण बिहारी नूर साहब ने कह दिया कि आइना झूठ नहीं बोलता तो यह बात हर्फ़े—आख़िर तो नहीं हो गई? ज़बान को ठहरा हुआ पानी मत बनाइए, एक शायर का लिखा हुआ ही अगर हर्फ़े—आखिर मान लिया जाता तो मीर—ओ—ग़ालिब जैसे महान शाइरों की शाइरी सुनने के बाद तो कोई शे‘र कहने की जुर्रत भी नहीं करता. मुझे तो ‘नूर’ खूबसूरत शे‘र पढ़ लेने के बाद अग्रवाल साहब का शे‘र और भी ख़ूबसूरत लगने लगा है, क्योंकि यह शे‘र आज की ग़ज़ल का शे‘र है.
Aadab..!!
Aadil bhai aur Mahen ji ne kaafi kuch vistaar se kah diya hai..Jinse main bhi itefaaq rakhta hu.n..
mujhe is sher ke thought achhe lage,qki ye...'Khalil Gibran' ka kahaa yaad dila rahe.n hai...jo ki sach hai.. :)
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दो पल सुकून के मिलें तो जान जाइये
अगले ही पल में आने को कोई अज़ाब है
Love..Masto...
बृज कुमार अग्रवाल साहब की ग़ज़ल मुझे अच्छी लगी। ऐसे अश्आर एक सच्चा व्यक्ति ही कह सकता है। मैं जितना उनको जान पाया हूं अग्रवाल साहब जो भी लिखते हैं अनुभूति के बाद लिखते हैं..स्वयं स्थिति को जीकर। इससे बड़ी ईमानदारी और क्या होगी। नई रचना का इंतजार है।
इसे तोड़ने के पहले कई बार सोचना,तेरा भी वो हो न कहीं जो मेरा ख़्वाब है। सुन्दर शे'र , अच्छी ग़ज़ल। उप्रोक्त शे'र कथने में लाजवाब है पर " इसे तो्ड़ने" की जगह "ये तोड़ने" होता तो मुकम्मल होता। बधाई।
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