Friday, April 3, 2009
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे-अंतिम भाग
मिसरा-ए-तरह "कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे" पर कही गई शेष ग़ज़लें हम पेश कर रहे हैं. बहुत ही बढ़िया आयोजन रहा. ये सारा कुछ श्री द्विज जी के आशीर्वाद से हुआ और आप सभी शायरों के सहयोग से जिन्होंने इस मिसरे पर इतनी अच्छी ग़ज़लें कही. मै चाहता हूँ कि तमाम पाठक थोड़ा समय देकर इतमिनान से सारी ग़ज़लें पढ़े और पसंदीदा अशआर पर दाद ज़रूर दें.ये तरही मुशायरा "नसीम भरतपुरी" को आज की ग़ज़ल की तरफ़ से श्रदाँजली है.
1.पवनेन्द्र पवन
उछल कर आसमाँ तक जब गिरा बाज़ार चुटकी में
सड़क पर आ गए कितने ही साहूकार चुटकी में
जो कहते थे नहीं होता कभी है प्यार चुटकी में
चुरा कर ले गये दिल करके आँखें चार चुटकी में
कभी है डूब जाती नाव भी मँझधार चुटकी में
घड़ा कच्चा लगा जाता कभी है पार चुटकी में
पहाड़ी मौसमों-सा रँग बदलता है तेरा मन भी
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
नहीं कोई करिश्मा कर दिखाती है यहाँ बुल्लेट
बदल जाती है बैलेट से मगर सरकार चुटकी में
रहा बरसों पड़ा बीमार बिन तीमारदारी के
मरा तो बन के वारिस पहुँचे रिश्तेदार चुटकी में
यहाँ दो जून रोटी भी जुटाना खीर टेढ़ी है
मगर उपलब्ध हैं बन्दूक बम तलवार चुटकी में
बड़ा अर्सा है गहराती मनों में उग रही खाई
खड़ी होती नहीं आँगन में है दीवार चुटकी में
बना वो ही सिकन्दर वो ही जीता है लड़ाई में
झपट कर जिसने कर डाला है पहला वार चुटकी में
मुकम्मल इनको करने के लिए इक उम्र छोटी है
नहीं बनते ग़ज़ल के हैं ‘पवन’ अशआर चुटकी में.
2.डी. के मुफ़लिस
उठो,आगे बढो कर लो समुन्दर पार चुटकी में
वगरना ग़र्क़ कर देगा तुम्हें मँझदार चुटकी में
किया, जब भी किया उसने, किया इज़हार चुटकी में
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
अगर होता रहा यूँ फ़ैसला हर बार चुटकी में
तो बनता काम भी हो जाएगा बेकार चुटकी में
रहा मुझ पर कुछ ऐसा ही असर उसकी मुहब्बत का
इधर दिल में ख़याल आया, उधर दीदार चुटकी में
बहुत मग़रूर कर देता है शोहरत का नशा अक्सर
फिसलते देखे हैं हमने कई किरदार चुटकी में
ख़ुदा की ज़ात पर जिसको हमेशा ही भरोसा है
उसी का हो गया बेडा भंवर से पार चुटकी में
परख ली जब वसीयत गौर से ,बीमार बूढे की
टपक कर आ गये जाने कई हक़दार चुटकी में
विदेशों की कमाई से मकाँ अपने सजाने को
कई लोगों ने गिरवी रख दिये घर-बार चुटकी में
किया वो मोजिज़ा नादिर नफस-दमसाज़ ईसा ने
मुबारक हो गये थे अनगिनत बीमार चुटकी में
खयालो-सोच की ज़द में तेरा इक नाम क्या आया
मुकम्मिल हो गये मेरे कई अश`आर चुटकी में
सफलता के लिए 'मुफ़लिस' कड़ी मेहनत ज़रूरी है
नहीं होता यूँ ही सपना कोई साकार चुटकी में
3.दर्पण शाह ‘दर्शन’
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
मरासिम का किया फिर इस तरह इज़हार चुटकी में।
वही मौसम, वही मंज़र,वही मैकश, वही साकी,
हुई है फिर मेरी यारों, कसम बेकार चुटकी में।
कभी वो प्याज़ के आँसू, कहीं पर अल्पमत होना,
बदलती है हमारे देश की सरकार चुटकी में।
मेरा ये देश 'वन्दे मातरम्' के गीत से जागा,
उठा गाण्डीव झटके से, उठी तलवार चुटकी में।
बहुत सी लज्ज़तें ऐसीं, भुलाई जो नहीं जाती,
उतरता है ख़ुमारे-मय, ख़ुमारे-यार चुटकी में।
तेरी इस रुह की ये आग, सदियों तक नहीं बुझती,
लगी है जुस्तजू-ए-लौ मगर, हर बार चुटकी में।
मुझे जो आरज़ू है मौत की, ता-ज़िन्दगी-सी है,
मगर ये मौत देती है मुझे दीदार चुटकी में।
कहाँ है, कोई भी इस शहर में, अंजान सी बातें ?
बिके हैं रोज़ ही सारे, यहाँ अख़बार चुटकी में।
लगे है सरहदें 'दर्शन', घरों के बीच की दूरी,
मिला तू हाथ हाथों से, गिरा दीवार चुटकी में।
4.मनु 'बेतख़ल्लुस'
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
हज़ारों रंग बदले है निगाहे-यार चुटकी में
मैं रूठा सौ दफ़ा लेकिन मना इक बार चुटकी में
ये क्या जादू किया है आपने सरकार चुटकी में
बड़े फ़रमा गए, यूँ देखिये तस्वीरे-जाना को,
ज़रा गर्दन झुकाकर कीजिये दीदार चुटकी में
कहो फिर सब्र का दामन कोई थामे भला कैसे,
अगर ख़्वाबों में हो जाए विसाले-यार चुटकी में
ग़ज़ल का रंग फीका हो चला है धुन बदल अपनी
तराने छेड़ ख़ुशबू के, भुलाकर ख़ार चुटकी में
न होना हो तो ये ता-उम्र भी होता नहीं यारो
मगर होना हो तो होता है ऐसे प्यार चुटकी में
वजूद अपना बहुत बिखरा हुआ था अब तलक लेकिन
वो आकर दे गया मुझको नया आकार चुटकी में
जो मेरे ज़हन में रहता था गुमगश्ता किताबों-सा
मुझे पढ़कर हुआ वो सुबह का अखबार चुटकी
कभी बरसों बरस दो काफ़िये तक जुड़ नहीं पाते
कभी होने को होते हैं कई अश'आर चुटकी में
5.योगेश वर्मा स्वप्न
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
ज़माना आ गया ऐसा , करो अब प्यार चुटकी में
हुई जब बात फ़िल्मों की, दिखाने की तो बेगम-सा
हुई तैयार चुटकी में, किया सिंगार चुटकी में
जो आती बेलनों के संग देखीं , पत्नियाँ अपनी
उठे मयख़्वार चुटकी में, भगे सब यार चुटकी में
है उनकी आँख का जलवा , या साँसों का है ये जादू
कि चंगे हो गए देखो सभी बीमार चुटकी में
ग़ज़ल कहते न थे कल तक न कोई नज़्म लिखते थे
बनाया ब्लॉग चुटकी में, बने फ़नकार चुटकी में
असर है टिप्पणी का हम वगरना थे कहाँ काबिल
कलम ली हाथ चुटकी में , ग़ज़ल तैयार चुटकी में
6.कवि कुलवंत सिंह
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
कनखियों से जो देखा तो हुआ फिर प्यार चुटकी में.
कहाँ खोजेंगे मतलब आप भी माडर्न पेंटिंग का,
बना देते हैं आड़े तिरछे वो आकार चुटकी में ।
कभी भी जिंदगी में तुम न फिर इनका यकीं करना,
सियासत में बदलते हैं सभी किरदार चुटकी में ।
अहं में भर के जिसने भी दुखाया दिल है अपनों का,
बिखरते देखे हैं ऐसे कई परिवार चुटकी में ।
दुखों के भार से है दब गया इंसान हे भगवन !
करो भक्तों का अब तो आप ही उद्धार चुटकी में ।
हुआ है आदमी इस दौर का अब बेरहम देखो,
जो पाले, नोचता उसको ही बन ख़ूँखार चुटकी में ।
बढ़े हैं पाप, अत्याचार इस दुनिया में अब कितने,
हे शिव ! अब आँख खोलो नष्ट हो संसार चुटकी में ।
7.गौतम राजरिषि
निगाहों से जरा-सा वो करे यूँ वार चुटकी में
हिले ये सल्तनत सारी, गिरे सरकार चुटकी में
न मंदिर की ही घंटी से, न मस्जिद की अज़ानों से,
करे जो इश्क, वो समझे जगत का सार चुटकी में
कहो सीखे कहाँ से हो अदाएँ मौसमी तुम ये
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
झटककर ज़ुल्फ़ को अपनी, कभी कर के नज़र नीची
सरे-रस्ता करे वो हुस्न का व्योपार चुटकी में
नहीं दरकार है मुझको, करूँ क्यों सैर दुनिया की
तेरे पहलु में देखूँ जब, दिशाएँ चार चुटकी में
कई रातें जो जागूँ मैं तो मिसरा एक जुड़ता है
उधर झपके पलक उनकी, बने अशआर चुटकी में
हुआ अब इश्क ये आसान बस इतना समझ लीजे
कोई हो आग का दरिया, वो होवे पार चुटकी में.
8.रजनीश सचान
बदल देता है मेरे दिल का वो आकार चुटकी में,
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
न उकसाओ इसे, आवाम की ताक़त न यूँ परखो,
उखड़ जाते हैं महलों के सभी आधार चुटकी में
ख़ुदा ! तेरे जहाँ में कुछ भी तो क़ायम नहीं रहता ,
कभी है जीत चुटकी में कभी है हार चुटकी में
ख़ुदा से भी ज़ियादा ख़ौफ़ इनका आजकल सबको ,
बना सकते हैं खलनायक तुम्हें अख़बार चुटकी में
मैं माँ की सब दुआएँ ओढ़ के निकला था दुनिया में ,
इरादे ख़ुद-ब-ख़ुद होते गये साकार चुटकी में
मिला हमदम न जिसको उम्र भर, उसकी वसीयत को ,
कुकुरमुत्ते से उग आते हैं दावेदार चुटकी में
सियासत की अँगीठी में धरम के नाम पे जलते,
कहीं दस्तार चुटकी में कहीं ज़ुन्नार चुटकी में
शिकायत क्या कि बदला है फक़त इक फ़ैसला तुमने,
बदल जाते हैं लोगों के यहाँ किरदार चुटकी में
है कितनी कश्मकश देखो,के कितनी हाय-तौबा है,
यहीं पर छूट जाना है ये सब संसार चुटकी में
जो इतनी सरहदें धरती के सीने पर नुमाया हैं,
न थम जाए कहीं इंसान की रफ़्तार चुटकी में
ग़ज़ल ये नीम सी मेरी सज़ा ले तू जो होठों पे ,
शहद हो जाएँगे मेरे सभी अश’आर चुटकी में
9.अमितोश मिश्रा
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
किये मरघट हसीनों ने , कई घर-बार चुटकी में
उठाये थे कभी मैंने , जो उसके नाज़ हँस-हँस के
मिलेगा अब कहाँ उसको , भी ऐसा यार चुटकी में
ज़माने ने लगाये हैं, हमारे इश्क पर पहरे
न जाने कब मुझे होगा, तेरा दीदार चुटकी में
सताया करते हैं अक्सर जो मज़लूमों ग़रीबों को
वही खोले हुये बैठे , यहाँ दरबार चुटकी में
10.अबुल फ़ैज़ अज़्म सहरयावी
करम हो जाए जो मुझ पर मेरे दिलदार चुटकी में
तो फिर हो जाएगा मेरा भी बेड़ा पार चुटकी में
पस-ए पर्दा भी होता है कभी दीदार चुटकी में
लगावट भी वह रखता है कभी तकरार चुटकी में
मुहब्बत की हदों को फाँद जाता है वो जब चाहे
कभी इस पार चुटकी में कभी उस पार चुटकी में
सियासत की अभी बाज़ीगरी आई नहीं मुझको
वगरना मैं बदल देता तेरी सरकार चुटकी में
मुझे ई मेल भी करना नहीं आता मेरे हमदम
तो मैं फिर किस तरह पहुँचूँ समुन्दर पार चुटकी में
तकब्बुर मालो दौलत पर कभी दिल में नहीं लाते
तवंगर को बना देता है वह नादार चुटकी में
कोई क़ूवत को उसकी जान ले यह कैसे मुमकिन है
बना देता है मुफ़लिस को भी जो ज़रदार चुटकी में
अजब -सी कशमकश में ख़ुद को पाया उस घड़ी मैंने
मुहब्बत का जो उसने कर दिया इज़हार चुटकी में
वह तोता चश्म है उससे सदा बचकर ही रहना तुम
निगाहें फेर लेता है वह मेरे यार चुटकी में
अजब पारा सिफ़त है उसको मैं अब तक नहीं समझा
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
मईशत का अजब बोहरान है अक़साए आलम में
हज़ारों लोग उस ने कर दिए बेकार चुटकी में
मेरी औक़ात क्या है यह बता देता है वह अकसर
निगाहों से झटक देता है वो हर बार चुटकी मेँ
हद-ए-उलफ़त की अकसर फ़िक्र ही होती नहीं उसको
झपकते ही पलक है अज़्म वह उस पार चुटकी में
11.जगदीश रावतानी
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
ज़रा चुटकी उसे काटी पड़ी दीवार चुटकी में
तुम्हारी सोच का अंजाम है अच्छा बुरा होना
तुम्हारी सोच मैं ढलता है हर किरदार चुटकी में
मुझे तो एक ही सुन्दर सा तोहफा चाहिए था बस
मेरे क़दमों में ले आया है वो बाज़ार चुटकी में
ज़माने में किसी से भी कभी कड़वा ही क्यों बोलें
किसी को ख़ामख़्वाह क्यों हम करें बेज़ार चुटकी में
कली थी शोख़ थी चंचल थी नाज़ुक गुलबदन यारो
मुहब्बत माँगने पर वो हुई तलवार चुटकी में
उन्हें कह दो सरे-बाज़ार यूँ घूमें न बेपर्दा
शरारत कर न बैठे फिर कोई दिलदार चुटकी में
ग़ज़ल कहने में लगता वक़्त है दिखता है बस आसाँ
कभी होते न ग़ालिब-से युँ ही तैयार चुटकी में
ग़ज़ल कहना शुरू ही था किया ‘जगदीश’ महफ़िल में
दुआ देने लगे छोटे बड़े फ़नकार चुटकी में
12.प्रेम भारद्वाज
बिगड़ता और बनता है यहाँ संसार चुटकी में
कभी तो ख़ार चुटकी में गले का हार चुटकी में
जुड़ें टूटें ख़ुशामद में कई सुर-तार चुटकी में
अभी है राग दीपक तो अभी मल्हार चुटकी में
समझ दुनिया का आए ख़ाक़ कारोबार चुटकी में
बदल जाए न जाने कब कहाँ व्यवहार चुटकी में
हिकारत की जड़ें तो जम चुकीं गहरे में होती हैं
भले बाहर से लगता है हुआ तकरार चुटकी में
बना डाले यहाँ इक दूसरे की जान के दुश्मन
सियासत की ज़रूरत ने हैं पक्के यार चुटकी में
यक़ीनन ख़ास ही कोई शराफ़त का मुख़ालिफ़ था
हुई नीलाम वो जैसे सरे- बाज़ार चुटकी में
सफल इन्सान ही होगा मियाँ उस्ताद गिरगिट का
कभी धुँधला, कभी उजला, कहीं रँगदार चुटकी में
नई तख़लीक़ होनी थी यहाँ जिसके भरोसे पर
वही औज़ार उसका हो गया हथियार चुटकी में
तवक़्क़ो तो है भक्तों से चढ़ाएँ झोलियाँ भर कर
बड़ी तक़लीफ़ से बाबा करें प्रतिकार चुटकी में
किसी को बुद्ध होने के लिए इक उम्र लगती है
नहीं है छूटता यूँ ही कभी घर-बार चुटकी में
मुसल्सल इक तरद्दुद है कहानी ज़िन्दगानी की
कभी होता नहीं देखा ये बेड़ा पार चुटकी में
गया योद्धा, मरा हाथी शिनाख़त जब नहीं होती
महाभारत में बनती जीत भी है हार चुटकी में
ख़बरची पर भरोसा एहतियातन हो ज़माने का
हवा का रुख़ बदल देता है जब अख़बार चुटकी में
ज़बाँ तो बात को कहने की हिम्मत कर नहीं पाई
नयन नीचे हुए बस हो गया इज़हार चुटकी में
बड़ी बेताबियाँ देकर बढ़ाई प्रेम की ज्वाला
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
13.प्रेमचंद सहजवाला
दिखा दो आज जलवा बख़्श दो दीदार चुटकी में
वगरना हैं शहादत के मेरी आसार चुटकी में
यहाँ मिल जाएँगे लाखों हुए सिक्के जो अंटी में
बना लेंगे जहाँ भी जाएँगे हम यार चुटकी में
अगरचे कैस से नाता है जाने कितने जन्मों से
मोहब्बत को बना लेंगे ये सब बाज़ार चुटकी में
मुहब्बत के फ़रिश्ते हैं यहाँ कितने बताओ तो
सुना दें इश्क पर जो सैंकड़ों अशआर चुटकी में
बहुत अच्छी है बीबी खुश रहा करता हूँ मैं अक्सर
बना लेती है वो 'चौमिन' मसालेदार चुटकी में
लगी जब नौकरी तो खुश हुआ बे-इन्तहा मजनू
किया लैला ने फ़ौरन प्यार का इज़हार चुटकी में
बहुत ही ख़ूब था नक्शा हसद-क़ाबिल इमारत थी
इमारत गिर गई तो गुम था ठेकेदार चुटकी में
बहुत घूमा किए खेला किए यूँ तो शहर भर में
जब आए इम्तिहाँ के दिन पड़े बीमार चुटकी में
मुक़दमा जीतने वाला था मैं ऐलान बाकी था
अदालत में उसी दिन बम फटा था यार चुटकी में
रहा करता हूँ ख़ुश अक्सर अगरचे जिंदगी में मैं
कभी करता है आँखें नम ख़याले-यार चुटकी में
तुम्हारी इस हसीं आदत का दीवाना हुआ हूँ मैं
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी में
14.द्विजेन्द्र ‘द्विज’
मिटा दे तू मेरे खेतों से खरपतवार चुटकी में
तो फ़स्लें मेरे सपनों की भी हों तैयार चुटकी में
हवा के रुख़ से वो भी हो गये लाचार चुटकी में
हवा का रुख़ बदल देते थे जो अख़बार चुटकी में
कभी अँधियार चुटकी में कभी उजियार चुटकी में
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
भले मिल जाएगा हर चीज़ का बाज़ार चुटकी में
नहीं बिकता कभी लेकिन कोई ख़ुद्दार चुटकी में
बहुत थे वलवले दिल के मगर अब सामने उनके
उड़न-छू हो गई है ताक़त-ए-गुफ़्तार चुटकी में
अजब तक़रीर की है रहनुमा ने अम्न पर यारो !
निकल आए हैं चाकू तीर और तलवार चुटकी में
तरीक़ा, क़ायदा, क़ानून हैं अल्फ़ाज़ अब ऐसे
उड़ाते हैं जिन्हें कुछ आज के अवतार चुटकी में
कभी ख़ामोश रहकर कट रहे रेवड़ भी बोलेंगे
कभी ख़ामोश होंगे ख़ौफ़ के दरबार चुटकी में
वो जिनकी उम्र सारी कट गई ख़्वाबों की जन्न्त में
हक़ीक़त से कहाँ होंगे भला दो-चार चुटकी में
नतीजा यह बड़ी गहरी किसी साज़िश का होता है
नहीं हिलते किसी घर के दरो-दीवार चुटकी में
डरा देगा तुम्हें गहराइयों का ज़िक्र भी उनकी
जो दरिया तैर कर हमने किए हैं पार चुटकी में
परिन्दे और तसव्वुर के लिए सरहद नहीं होती
कभी इस पार चुटकी में कभी उस पार चुटकी में.
बस इतना ही कहा था शहर का मौसम नहीं अच्छा
सज़ा का हो गया सच कह के ‘द्विज’ हक़दार चुटकी में
15.प्रकाश "अर्श"
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
हमारे प्यार में लटकी है ये तलवार चुटकी में
अदाएँ उसकी भी देखो मिरा दिलदार है फिर भी
चलाये तीर आँखों से जिगर के पार चुटकी में
मसलते है जो फूलों को कली की अहमियत क्या हो
बना देंगे मगर हम भी नया गुलज़ार चुटकी में
हमारे प्यार पे पहरा लगाया है ज़माने ने
दिखा देंगे सभी को हम दीवाने यार चुटकी में
सियासी खेल में यारो नया कुछ भी नहीं होता
बदलते हों खिलाड़ी दल भले हर बार चुटकी में
ज़रूर आज 'अर्श' सूरज भी कहीं निकला है पच्छिम से
मेरे महबूब ने भी कर लिया इज़हार चुटकी में
16.सतपाल ‘ख़याल’
तेरे छूने से सहरा हो गया गुलज़ार चुटकी में
ख़ुशी से झूम उट्ठा ये दिले-बीमार चुटकी में
भरोसा क्या करें तुझ पर तेरी फ़ितरत कुछ ऐसी है
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
मुसीबत में मदद माँगी जो अपनों से तो सब के सब
रफ़ू-चक्कर हुए पकड़ी ग़ज़ब रफ़्तार चुटकी में
जो बदक़िस्मत थे उनकी कश्तियाँ साहिल पे डूबी थीं
जो किस्मत के धनी थे हो गये वो पार चुटकी में
है सिक्कों की खनक में बात कुछ ऐसी कि इसने तो
किया रिश्तों को कैसे देखिये बाज़ार चुटकी में
हमारा ज़िक्र जब छेड़ा किसी ने उसकी महफ़िल में
हुए हैं सुर्ख़ तब उसके लबो-रुख़सार चुटकी में
मिले गैरों से हँस-हँस कर तू मेरा जी जलाने को
मज़ा इस बात का लेते हैं मेरे यार चुटकी में
जुआख़ाना है इक बाज़ार सट्टेबाज़ है दुनिया
किसी की जीत चुटकी में किसी की हार चुटकी में
मेरे मौला , मेरे साईं, मेरे दाता मेरी सुन ले
ग़रीबों दर्द-मंदों का तू कर उद्वार चुटकी में
‘नसीम’ उनका था नाम उस्ताद मिर्ज़ा दाग़ थे उनके
उन्होंने ही कहे चुटकी पे थे अशआर चुटकी में
सियासी लोग हैं इनकी ‘ख़याल’ अपनी सियासत है
कभी इन्कार चुटकी मे,कभी इक़रार चुटकी मे
नोट: अगर किसी शायर की ग़ज़ल रह गई हो तो दुबारा भेज सकते हैं.उसे इसी पोस्ट मे शामिल कर लिया जायेगा. अगला मिसरा-ए-तरह ज़ल्द दिया जायेगा. आज की ग़ज़ल पढ़ते रहें.
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22 comments:
बाप रे बाप! इतनी गज़लें एक साथ? जरा कतार में आएँ तो उन का इस्तकबाल तो हो!
वाह सतपाल जी, वाह...
सारी ग़ज़लें बेहतरीन हैं बहुत बेहतरीन...... पवनेंद्र पवन जी को विशेष बधाई....
और आपको व द्विज जी को भी...
वाह..
सतपाल जी
इतनी सारी गज़लें, इतने मुख्तलिफ ख्याल औए एक ही तरीके, एक ही लय, एक ही बहार में बंधे हुवे.........ये गाल, कविता, गीत, छंद या जो बी कहो उसकी सफलता है, उसको पोसने वालों की सफलता है, उसमें जीने वालों की सफलता है.
आपने इस को सफल बनाया, आपकी मेहनत तो सबसे ज्यादा है. बधाई हो अप्पको सफल आयोजन की
बहुत मेहनत का काम है ।एक साथ इतनी गज़लों को सग्रहित करना।बहुत उम्दा गज़ले हैं । बधाई स्वीकारें।
कमाल का संग्रह बन गया है यह तो ..बहुत ही बढ़िया लगी है किसी की पेशकश शुक्रिया
वाह वाह वाह सतपाल साहब,
क्या ही बेहतरीन तरही मुशायरा हुआ भाई ये तो । जवाब नहीं! आपका बहुत आभार जो आपने हमें ख़त लिख कर ख़बर की। वाक़ई संग्रहणीय।
एक से बढ़कर एक नायाब गजलें और वे भी बस चुटकी में ! अब ये चुटकी का आलम ये हैं तो मुट्ठी भर गजलों का सहज ही तसव्वुर किया जा सकता है !
वाह वाह !
wah satpal ji, aapke madhyam se dher saari gazlen ek, hi andaaz par padhne ko milin . dhanyawaad.
किस ग़ज़ल पर दाद दें और किस पर नहीं। हर एक गज़ल एक से बढ़ कर एक, और ऊपर से हर कोई ग़ज़ल के डेफ़िनिशन/बहर-ओ-वज़न पर खरी उतरती हुई। जानकर खुशी होती है कि ऐसे अच्छे ग़ज़लकार हैं जिन्हें हम इतनी आसानी से इन्टरनेट के माध्यम से पढ़ पा रहे हैं।
आपको ऐसे उम्दा आयोजन के लिये बहुत बहुत बधाई, और धन्यवाद भी। आगे भी ऐसे मुशायरे का इंतज़ार रहेगा।
सारी ग़ज़लें बेहतरीन हैं...
सतपाल भाई आपका प्रयास बहुत ही सराहनीय है । इतने सारे लोगों को एक विषय पर पढ़कर आंनदित हुए । आपसे साथ यात्रा बहुत ही मनभावन लगी ।
ग़ज़लों पर कमेंट तो बाद में तसल्ली से देने आऊंगा,,,,पहले ब्लॉग को बधाई दे दू,,
बड़े बड़े मास्टर लोगों के साथ मुझे अपनी ग़ज़ल लगी देख कर जैसा महसूस हो रहा है,,,,वो कहना मुश्किल है,,,,सतपाल जी ,,,द्विज भाई जी के साथ एक दम नए नवेले दर्पण साह की ग़ज़ल देखि तो मालूम हो गया के किस तरह से नए शाएर को प्रोत्साहन दिया जाता है,,,दिया जाना चाहिए,,,,,आमतौर पर बेहद मामूली और कभी कभी तो (बगैर बात के ) ग़ज़ल में की नुक्ताचीनी के कारण नया आदमी ग़ज़ल से घबरा जाता है,,, कम से कम अगली बार किसी नामी गिरामी शाएर के सामने तो दोबारा अपनी ग़ज़ल का ज़िक्र तक करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता ,,,,,ऐसे माहौल में यहा आना ( बिना भेद भाव के मंदिर आने जैसा लगा )
Aaaj kee Ghazal ko kamyaam mushaire ke liye badhai. sabhi ghazlen khoobsoorat hain. kyee to vakyee alag aur khaas. Allah kare Zor-e-kalam aun bhai ziyaada.
कुछ कहते नहीं बनता ! भौंचक्का रह गया मैं !
satpal jee, dosree nashist bhee kaamyaab niklee, aap ko is anjuman aaraai,y kele bahut bahut badhaayee.tamaam sho'raa kee GhazleN pasand aayeeN, khuSuSan A'zm Sehryawee Sb kee ghazal bahut achee lagee. sabhee kee khidmat meiN daad pesh kartaa hooN.
इतने दिग्गज़ों के साथ अपना भी नाम देख कर एक अजीब सी खुशी का अहसाह हो रहा है...
द्विज जी के ये शेर "डरा देगा तुम्हें गहराइयों का ज़िक्र भी उनकी/जो दरिया तैर कर हमने किए हैं पार चुटकी में"
और मुफ़लिस जी का शेर "बहुत मग़रूर कर देता है शोहरत का नशा अक्सर/फिसलते देखे हैं हमने कई किरदार चुटकी में"
मेरे ख्याल से हसिले-मुशायरा शेर हैं ये दोनों
फिर मनु जी के इस शेर की कहानी का मैं भी एक हिस्सा हूँ "वजूद अपना बहुत बिखरा हुआ था अब तलक लेकिन/वो आकर दे गया मुझको नया आकार चुटकी में"
शुक्रिया मनु जी !!!
और आदरणीय सतपाल जी, आपके लिये तो तमाम "धन्यवाद" कम हैं...
Bhai Satpal ji,
Sabhi ghazalen ek se badkar ek. Is sunder aayojan ke liye hardik badhai. Kuchh na kuchh naya karate rahane se utsukta bani rahati hai.Bhai Dwij ne achchha sujhav diya jisko aapne amali jama pahana diya. Is aayojan ke liye fir donon ko hrdik badhai.
Chandrabhan Bhardwaj
बड़े भाई और गुरु सरीखे श्री द्विज जी और सतपाल जी मेरा नमस्कार,
मुझे जैसे अदना को जिस तरह से आप दोनों ने अपने बिच में रखा है ये तो मेरे लिए सौभाग्य की बात है ... इतनी बड़ी हस्ती के बिच में आना अपने आप में एक संयोग है ,हर्षित हूँ के आप लोगों ने मुझे इतने उम्दा शायरों के बिच रखा..
आभार
आपका
अर्श
gautam ji aur manu ji ki baat se sehmat hote hue arsh ji ki tarah mehsoos kar raha hoon.Balki unse kahin zayada.
har ek ka ek pasandida sher (respectively):
1)बड़ा अर्सा है गहराती मनों में उग रही खाई
खड़ी होती नहीं आँगन में है दीवार चुटकी में
2)बहुत मग़रूर कर देता है शोहरत का नशा अक्सर/फिसलते देखे हैं हमने कई किरदार चुटकी में.
3)is shayar maina abhi sudhar ki zarrurat hai :)
4)बड़े फ़रमा गए, यूँ देखिये तस्वीरे-जाना को,
ज़रा गर्दन झुकाकर कीजिये दीदार चुटकी में
5)जो आती बेलनों के संग देखीं , पत्नियाँ अपनी
उठे मयख़्वार चुटकी में, भगे सब यार चुटकी में
(ha ha !!)
6)बढ़े हैं पाप, अत्याचार इस दुनिया में अब कितने,
हे शिव ! अब आँख खोलो नष्ट हो संसार चुटकी में (badi der bhai nandlala...)
7)न मंदिर की ही घंटी से, न मस्जिद की अज़ानों से,
करे जो इश्क, वो समझे जगत का सार चुटकी में
(dhai akshar prem ka...)
8)मैं माँ की सब दुआएँ ओढ़ के निकला था दुनिया में ,
इरादे ख़ुद-ब-ख़ुद होते गये साकार चुटकी में
(sabhi maaien ek hi school se padhi hoti hain)
9)सताया करते हैं अक्सर जो मज़लूमों ग़रीबों को
वही खोले हुये बैठे , यहाँ दरबार चुटकी में
10)मुझे ई मेल भी करना नहीं आता मेरे हमदम
तो मैं फिर किस तरह पहुँचूँ समुन्दर पार चुटकी में
(samayaik dard hai...
sir, mujhe e mail karna to aat hai par mera koi humdum nahi hai...)
11)ग़ज़ल कहना शुरू ही था किया ‘जगदीश’ महफ़िल में
दुआ देने लगे छोटे बड़े फ़नकार चुटकी में
(hum chote hain to hmari shubhkamaniye)
12)तवक़्क़ो तो है भक्तों से चढ़ाएँ झोलियाँ भर कर
बड़ी तक़लीफ़ से बाबा करें प्रतिकार चुटकी में
13)मुक़दमा जीतने वाला था मैं ऐलान बाकी था
अदालत में उसी दिन बम फटा था यार चुटकी में
iske liye ek abbrevation hai...
k*pd
14)डरा देगा तुम्हें गहराइयों का ज़िक्र भी उनकी
जो दरिया तैर कर हमने किए हैं पार चुटकी में
15)mere hum umr blog mitr (jo lekhan main to kahin unche hain...)
ek bangi dekhiyea:
हमारे प्यार पे पहरा लगाया है ज़माने ने
दिखा देंगे सभी को हम दीवाने यार चुटकी में
16)‘नसीम’ उनका था नाम उस्ताद मिर्ज़ा दाग़ थे उनके
उन्होंने ही कहे चुटकी पे थे अशआर चुटकी में
ek aisa tarhi mushariya jahan mein mere 4 guruon (sarv shri muflis, manu, gautam, dwij) ke or blogger mitr(arsh) ke saath space share karraha hoon....
...kehna bahut kuch hai par pehle hi bahut kuch keh diya sabhi ayajonkartaon (khas kar Satpal ji ) ka hriday se aabhari rahoonga....
bahut khoob! interesting...
Agla misra kab aa raha hai?
Satpal sahab,
Is behad laajawaab aur safal prayaas ke liye bahut bahut badhai!!
Tarahi Ghazalo'n ka ye khoobsurat guldasta is anupam blog par waqai meel ka patthar hai!
Adwiteey prayaas!
Sabhi Shayaro'n ko naman!
उम्दा, वाह
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