Monday, April 13, 2009
डा. दरवेश भारती की एक ग़ज़ल
डा. दरवेश भारती एक अच्छे शायर के साथ-साथ अरूज़ी भी हैं और एक त्रैमासिक पत्रिका का संपादन भी कर रहे हैं.आज की ग़ज़ल पर उनकी एक ग़ज़ल आप सब के लिए.
ग़ज़ल
उनसे मिलना पाप हो गया
जीवन इक अभिशाप हो गया
उनका इकदम भूलना मुझे
दुर्वासा का शाप हो गया
पहले तो था बाप बाप ही
अब तो बेटा बाप हो गया
इतना मुश्किल काम क्या कहे
कैसे यूं चुपचाप हो गया
तुमसे गुपचुप बात हो गयी
गायत्री का जाप हो गया
शायद थे सत्कर्म पूर्व के
उनसे जो संलाप हो गया
जाने क्यों "दरवेश" आजकल
तू से तुम फिर आप हो गया
दो अशआर
ये बनाते हैं कभी रंक कभी राजा तुम्हें
ख्वाब तो ख़्वाब हैं ख़्वाबों पे भरोसा न करो
प्यार कर लो किसी लाचार से बेबस से फकत
चाहे पूजा किसी पत्थर की करो या न करो
शायर का पता:
डा॰ ‘दरवेश’ भारती
1414/14, गाँधी नगर
रोहतक - 124001
(हरियाणा)
+ 91 9968405576, 9416514461
ghazalkebahane.darveshbharti@gmail.com
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25 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति है इस ग़ज़ल में......जीवनकी छोटी छोटी बातों को ले कर सीधे और साफ़ शब्दों में लिखी है ग़ज़ल
उनका इकदम भूलना मुझे
दुर्वासा का शाप हो गया
तुमसे गुपचुप बात हो गयी
गायत्री का जाप हो गया
KITNI GAHRI BAAT HAI........
तुमसे गुपचुप बात हो गयी
गायत्री का जाप हो गया
bahut khoobsurat, vicharon ke saath ek umda rachna ke liye badhai.
वाह! उम्दा.
गज़ल सुन्दर है. क्या यहाँ टंकण दोष है ?
उनका इकदम भूलना मुझे
दुर्वासा का शाप हो गया
( संभवत: " उनका इकदम मुझे भूलना " )
अच्छी गजल जीवन के हर सच को बड़े ही करीने से शब्दों में पिरोया है....
भारती जी से रूबरू होना और उनके सच्चाई लिए हुए प्यारी सी ग़ज़ल से अपने आप में हर्षित और रोमांचित होने जैसा है ... ज़िन्दगी की छोटी छोटी बातो को बड़े ही करीने से पेश किया है इन्होने ... ढेरो बधाई..
अर्श
बहुत खूब. शुक्रिया.
Dear rakesh khandelwal ji ,
उनका इकदम भूलना मुझे
दुर्वासा का शाप हो गया
ye sahi hai
उनका इकदम मुझे भूलना
aisa likhne misra bahar se khariz ho jata hai.
vazan:
22 22 2121 2.
आपके ब्लाग पर अक्सर आता रहता हूं । आप जो प्रयास कर रहे हैं वो प्रशंसनीय है । समयाभाव के कारण टिपपणी नहीं कर पाता उसके लिये क्षमा चाहता हूं । किन्तु उसका मतलब ये नहीं है कि मैं आपके द्वारा भेजी जा रही लिंक को फालो नहीं करता हूं । साहित्य आज जिस दौर में है उसे दौर में जो कुछ भी किया जाये वो कम है । हम सब गिलहरी की तरह राम सेतु के निर्माण में अपना अपना योगदान दे रहे हैं । उम्मीद है कि साहित्य की सुनहरी सुबह कभी वापिस आयेगी । आपको पुन: एक नेक काम के लिये बधाई ।
bahut hi sundar rachna..
मुझे छोटे बहर वाली गज़लें बहुत भाती है
जितनी ये सुन्दर होती हैं, उतना ही लेखक की काबलियत को भी दर्शाती हैं
वाह, लाजवाब साहब !!
उनका इकदम भूलना मुझे
दुर्वासा का शाप हो गया
कमाल !!!
http://tanhaaiyan.blogspot.com
"तुमसे गुपचुप बात हो गयी / गायत्री का जाप हो गया" अद्भुत शेर...
दरवेश जी की "ग़ज़ल के बहाने" जो कि आदरणीय मुफ़्लिस जी और मनु जी की बदौलत प्राप्त हुआ...हम नये छात्रों के लिये बड़ी मददगार है
Pankaj ji ka tahe-dil se shukria aur unse nivedan hai ki hamara hausla baRate raheN , is se hame ahsaas hota hai ki hum sahi raah par hain.
Dr. Darvesh bharti ji se pahale ki pahachaan hai. VE to ghazal ke ustadon men se ek hain.
aajkal ghazal ki ek patrika 'ghazal ke bahaane' ka bhi prakashan kar rahe hain. aapne unki ghazal apne blog par dee uske liye apko bahut bahut badhai.
tumse gupchup baat ho gai
gaayatri ka jaap ho gaya.
bahut hi sunder sher.Dr. Bharti ji aur aapko punah badhai.
Dr. Darvesh bharti ji se pahale ki pahachaan hai. VE to ghazal ke ustadon men se ek hain.
aajkal ghazal ki ek patrika 'ghazal ke bahaane' ka bhi prakashan kar rahe hain. aapne unki ghazal apne blog par dee uske liye apko bahut bahut badhai.
tumse gupchup baat ho gai
gaayatri ka jaap ho gaya.
bahut hi sunder sher.Dr. Bharti ji aur aapko punah badhai.
मित्रो,गज़ल में बात इशारो मे कहने का रिवाज है और पंकज जी यह बखूबी जानते ही नहीं करते भी हैं ,इसीलिये उन्होने इस तथाकथित गज़ल या उस्ताद के बारे में टिपण्णी न करके भी वो बात कह दी जो और लोद कहने का साहस न कर सके।यानि इस रचना में शेरियत कहीं भी नहीं दिख रही-अब लोग ......
उनका इकदम भूलना मुझे
दुर्वासा का शाप हो गया
तुमसे गुपचुप बात हो गयी
गायत्री का जाप हो गया
???????
पंकज सुबीर said...
आपके ब्लाग पर अक्सर आता रहता हूं । आप जो प्रयास कर रहे हैं वो प्रशंसनीय है । समयाभाव के कारण टिपपणी नहीं कर पाता उसके लिये क्षमा चाहता हूं । किन्तु उसका मतलब ये नहीं है कि मैं आपके द्वारा भेजी जा रही लिंक को फालो नहीं करता हूं । साहित्य आज जिस दौर में है उसे दौर में जो कुछ भी किया जाये वो कम है । हम सब गिलहरी की तरह राम सेतु के निर्माण में अपना अपना योगदान दे रहे हैं । उम्मीद है कि साहित्य की सुनहरी सुबह कभी वापिस आयेगी । आपको पुन: एक नेक काम के लिये बधाई ।
Dear,
aap Devdaas haiN ya paaro ye to pata nahi chala lekin aap ki baat ka uttar ati zaroore hai..
agar ise alochna bhi samjheN to isme kuch buraaii nahi hai.
nazaria apna-apna hota hai .magar mujhe aisa kuch laga nahi.balke Pankaj ji ne mail karke bhi mujhe encourage hi kya hai, ho sakta hai aapko samajhne me dhoka hua ho.
मेरे गुरू कहा करते हैं कि तुलसीदास ने रामचरित मानस को लिखते समय भी जो नहीं सोचा होगा वो उसका अर्थ निकालने वाले सोच रहे हैं । कुछ अर्थ निकाल रहे हैं तो कुछ अर्थ का अनर्थ कर रहे हैं । कई सारे लोग मुझसे कहते हैं कि मैं टिप्पणी देने में कंजूस हूं । आज उन सारे लोगों को पता चल गया होगा कि वो कंजूसी है या मजबूरी है । मैं नहीं जानता कि ये पारो या चंद्रमुखी या देवदास कौन हैं किन्तु ये तो जानता हूं कि इन सज्जन ने अर्थ का अनर्थ निकालने की कोशिश की है । यदि मेरे कमेंट को पढ़ा जाये तो उसमें ऐसा कुछ नहीं है जो ये पारो जी कह रही हैं या कह रहे हैं । मैं व्यक्तिगत रूप से ये मानता हूं कि आज के इस दौर में जब साहित्य लगभग स्थगित सा है उस दौर में जो कुछ भी जहां भी जिस भी प्रकार से कार्य कर रहा है उसका हौसला बढ़ाना ही चाहिये । जो लोग मुझे जानते हैं ( पारो जी तो कतई नहीं ) वे ये जानते होंगें कि मैं कभी भी सार्वजनिक रूप से कोई बात नहीं कहता न तो सीधे और न ही इशारे में । मुझे अपने किसी व्यक्ति से भी कोई बात कहनी होती है तो मैं कमेंट के स्थान पर मेल करता हूं । क्योंकि मित्र की परिभाषा तुलसीदास जी ने दी है 'गुण प्रगटहिं, अवगुनहीं दुरावा ' अर्थात जो सार्वजनिक रूप से मित्र के गुण प्रकट करता है और अवगुणों को छिपाता है । घुमा कर बात कहने की मुझे आदत ही नहीं है । बल्कि इस कमेंट के बाद तो सतपाल जी से मेरी कई मेल हुईं और कई सारी बातें हुईं । उनकी विनम्रता है कि उन्होंने मुझे इस कमेंट के बारे में नहीं बताया, कल जब एक मित्र का फोन आया तो मुझे ज्ञात हुआ किसी ने मेरे कमेंट का एक अर्थ निकाल कर उसका अनर्थ कर दिया है । वैसे मैं विवादों में उलझने के बजाय काम करना पसंद करता हूं किन्तु आज यहां लगा कि आना आवश्यक है सो आया हूं । नहीं जानता कि ऐसा करना आवश्यक है कि नहीं किन्तु अपनी बात को रखना जरूरी लगा । पिछले साल एक बार ऐसा लगा था कि ब्लागिंग से दूर हो जाना चाहिये, आज फिर वैसा ही लग रहा है । सतपाल जी, डा दरवेश जी और द्विजेंद्र जी तथा उन सबसे उस अपराध के लिये क्षमाप्रार्थी हूं जो मैंने नहीं किया । तथा एक ही निवेदन है कि इस प्रकार से हम अपने ही इस ब्लाग जगत का जो अहित कर रहे हैं उसे रोकें । किसी के कमेंट का अर्थ निकाल कर उसका अनर्थ करना किसीकी निजता में बेवजह दखलअंदाजी है । मैं नहीं जानता कि ये पारो कौन हैं शरतचंद्र वाली हैं या कोई और हैं किन्तु चूंकि मेरे कमेंट का अनर्थ निकाला गया है अत: उनकी और से भी क्षमा प्रार्थी हूं ।
पारो जी,
हो सकता है के आपको इसमें शेरीयत ना लगी हो....आपकी समझ है,,,आपका हक़ भी है आलोचना करने का मगर बेहतर यही होता है के बात जिसे भी कहनी हो साफ़ कहें,,,नहीं कह सकते तो शेर में ही कह दें....कोई समझे तो ठीक ना समझे तो ठीक.....
पर ये जो एक ही कमेंट से आप कई बात कहने की कोशिश कर रहे हैं....कर रही हैं नहीं (मैं शायद सही हूँ,........इन मामलों में अक्सर ही सही पाया गया हूँ,,,,.).....वो समझ से बाहर हैं.......
खैर डा, साहिब की गजल पढ़ना अच्छा लगा,,,,,
सतपाल जी,
एक तो अब के तरही वाला मिसरा ज़रा मुश्किल है,,क्यूनके पूरी गजल मन में बचपन से बैठी है,,,
उपर से ये छुट put की पंगेबाजियां,,, ब्लोगेर्स का आये दिन का विवाद,,,,,
लगता है के गजल कहने या कार्टून बनाने से ज्यादा जरूरी काम दुनिया को समझाने का रह गया है...
बेहद खूबसूरत
Mai pankaj je se muafee chahta hooN ki unki baat ka ghalat arth nikala gya.
baaki ye log baat utha ki phie back foot pe chale jaate haiN. lekin ye log to har jagah hain.
mai phir se Pankaj ji se muafi chahta hooN aur request karta hoon ke vo apna aashirvaad dete raheN.
saadar khyaal
भाई पंकज सुबीर
जी का बड़प्पन है कि उन्होंने स्वयं आकर हमारी स्थिति स्पष्ट कर दी.
मैं उनका दिल से आभारी हूँ. उनका आशीर्वाद हमारे साथ है. फिर हमें किसी बात का डर नहीं है.
रही बात आशार में शेरियत की वो तो अपनी-अपनी नज़र की बात है लेकिन अपनी नज़र की बात को दूसरों की आँखिन देखी का नाम देना ग़लत है.
पारो जी....... अब हम क्या कहें.
डा. दरवेश भारती जी की गजल बहुत अच्छी लगी प्रस्तुती के लिए धन्यवाद
सतपाल जी आपसे निवेदन है की टिप्पडी माडरेशन लगाइये और विवादित टिप्पडी को प्रकाशित न करे
ये तो आप भी जानते है की ऐसे कमेन्ट (पारो) विवाद के सिवा हमें कुछ नहीं दे सकते
जब इस तरह किसी का मन आहात हो तो लिखने का दिल भी नहीं करता
धन्यवाद
वीनस केसरी
प्यार कर लो किसी लाचार से बेबस से फकत
चाहे पूजा किसी पत्थर की करो या न करो
... behad khoobsoorat.
हम सब गिलहरी की तरह राम सेतु के निर्माण में अपना अपना योगदान दे रहे हैं । उम्मीद है कि साहित्य की सुनहरी सुबह कभी वापिस आयेगी । भाई पंकज से सुनहरे शब्द हमारे साथ साथ साहित्य की राह पर पथिक बनकर राह रौशन करेंगे, ऐसा विश्वास है. डॉ. दरवेश भारती जी, श्री आर.पी.शर्मा 'महरिष ' जी की तरह ग़ज़ल कि विधा के अनमोल माहिर उस्ताद है और उनसे मिलने पर मुझे हमेशा यही लगा है कि मैं ग़ज़ल के साथ गुफ्तगू कर रही हूँ. सरलता से, अपनी बयानी समझाने में और मार्गदर्शन करने में भी पीछे नहीं हटते. उन्हें मेरा विनम्र नमन.
देवी नागरानी
उत्कृष्ट रचना वाह वाह
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