Sunday, May 24, 2009

ज़नाब अख़ग़र पानीपती - परिचय और ग़ज़लें









एक अगस्त 1934 मे जन्मे अख़ग़र पानीपती जी एक वरिष्ठ शायर हैं.अब तक इनके तीन संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं.उजालों का सफर उर्दू में, अर्पण हिंदी में,अक्षर नतमस्तक हैं हिंदी में.
आप पानीपत रत्न से नवाज़े जा चुके हैं और आप मुशायरों व कवि सम्मेलनों में शिरकत करते रहते हैं. इनकी तीन ग़ज़लें आप सब के लिए:

ग़ज़ल






हज़ार ज़ख़मों का आईना था
गुलाब सा जो खिला हुआ था

मेरी नज़र से तेरी नज़र तक
कईं सवालों का फासला था

खुलूस की ये भी इक अदा थी
करीब से वो गुज़र गया था

हमारे घर हैं सराये फ़ानी
ये साफ दीवार पर लिखा था

टटोल कर लोग चल रहे थे
ये चांदनी शब का वाक़या था

तलाश में किस हसीं ग़ज़ल की
रवां ख़यालों का काफिला था

वो इक चरागे-वफ़ा था अख़ग़र
जो तेज आंधी में जल रहा था

बहरे-मुतकारिब की मुज़ाहिफ़ शक्ल
फ़ऊल फ़ालुन फ़ऊल फ़ालुन
121 22 121 22

ग़ज़ल:







दीवारों ने आंगन बांटा
उतरा-उतरा धूप का चेहरा

एक ज़रा सी बात से टूटा
कितना नाजुक प्यार का रिश्ता

वो है अगर इक बहता दरिया
फिर क्यूं रहता प्यासा-प्यासा

तू किस दुनिया का मतवाला
सबकी अपनी-अपनी दुनिया

अब लगता है भाई-भाई
इक-दूजे के खून का प्यासा

आवारा-आवारा डोले
अंबर पर बादल का टुकड़ा

चेहरा तो है चांद सा रौशन
दामन मैला है अलबत्ता

सच्चाई के साथ न कोई
झूठ-कपट के संग ज़माना

ये भी इन्सां वो भी इन्सां
एक अंधेरा एक उजाला

गुरबत इक अभिशाप है यारो
सच्चा बन जाता है झूठा

कुत्तों को भरपेट है रोटी
भूखा इक खुद्दार का बच्चा

अंधों की इस भीड़ में अख़ग़र
किस से पूछें घर का रस्ता

(आठ फ़ेलुन)

ग़ज़ल:







हिसारे-ज़ात से निकला नहीं है
बशर खुद को अभी समझा नहीं है

किसी को भी पता मेरा नहीं है
जहां मैं हूं मेरा साया नहीं है

नज़र की हद से आगे भी है दुनिया
जिसे तुमने कभी देखा नहीं है

कमी शायद है अपनी जुस्तजू में
वो घर में है मगर मिलता नहीं है

खयालों की भी क्या दुनिया है यारों
कि इसकी कोई भी सीमा नहीं है

जो सब लोगों में खुशियां बांटता था
उसे हंसते कभी देखा नहीं है

जिसे देखो लगे है इक फरिश्ता
मगर इन में कोई बंदा नहीं है

उजालों का नगर है पास बिल्कुल
पहुंचने का मगर रस्ता नहीं है

लगाव हर किसी को है किसी से
जहां में कोई भी तन्हा नहीं है

तुम्हारी जा़ते-अक़दस पर भरोसा
खुदा रक्खे कभी टूटा नहीं है

रवां किन रास्तों पर हूं मैं अख़ग़र
कि पेड़ों का यहां साया नहीं है

बहरे-हज़ज की मुज़ाहिफ़ शक्ल:
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
1222 1222 122.

12 comments:

Unknown said...

satpalji aapne nihal kar diya
shayar-e aazam janab akhaghar panipati saheb ki ghazlen padh kar sukoon mila
AAPKO BADHAI

वीनस केसरी said...

सतपाल भाई,
बहुत शुक्रिया
सुन्दर गजल पढ़वाई आपने

वीनस केसरी

दर्पण साह said...

itni acchi acchi ghazlon ko share karne ke liye shukriya...

दर्पण साह said...

doosri ghazal....
"दीवारों ने आंगन बांटा
उतरा-उतरा धूप का चेहरा

एक ज़रा सी बात से टूटा
कितना नाजुक प्यार का रिश्ता
"
kya gramatically correct hai?
kyunki matle se spasht hota hai ki kafiya "aa" hai...
..par teesra sher kisliye?
(paanipati ji ke khayal ke baare main mujhe koi shq ya shubha nahi , infact bahut umda hain par main ghazal seekhan chanta hoon isliye ye sawal kiya...)

द्विजेन्द्र ‘द्विज’ said...

उम्दा कलाम.

सतपाल ख़याल said...

Darpan shah ji aap kaun se teesre she'r ki baat kar rahe haiN, quote to aapne 2 hee kiye aur inme to koi khot nahi hai, bhai.
aur kuch confusion ho to mail kar deN.

kavi kulwant said...

Very nice satpaal ji..

गौतम राजऋषि said...

शुक्रिया सतपाल जी जनाब अख़ग़र साब की इन तीनों ग़ज़लों के लिये

jogeshwar garg said...

bahut achchhee ghazalein hain akhgar saahab kee.

योगेन्द्र मौदगिल said...

Blog kuchh dukhi kar raha hai shayad Google Baba ki tabiyat nasaaz hai..

khair...

Akhgar saheb nischit hi hamare panipat ki naak hai saheb.. is me koi do rai nahi..

Satpal g aapka shukriya. agle sunday unki kuch or gazlen bhejunga.

"अर्श" said...

BHAEE SATPAAL JI SAHIB,
AKHGAR SAHIB KE TINO GAZALON SE RUBARU KARAA KAR AAPNE HAME TO DHNYA KIYA SAHIB... SHABD NAHI HAI ... KITNE SIDHE SAADE SHABDON ME ZINDAGI KE HAR PAHALU KO INHONE SABKE SAAMNE RAKHAA HAI .. TINO GAZALON KO SALAAM UNKI LEKHANI KE LIYE...


ARSH

Devi Nangrani said...

Nihayat hi khoobsoorat blog par ek se ek badkar gazal aur uspar yeh sher , sach ke saamne aaina

रवां किन रास्तों पर हूं मैं अख़ग़र
कि पेड़ों का यहां साया नहीं है
Devi Nangrani