Tuesday, May 12, 2009
मेरे लिए भी क्या कोइ उदास बेकरार है - अखिरी दो ग़ज़लें
मिसरा-ए-तरह : "मेरे लिए भी क्या कोई उदास बेक़रार है " पर दो ग़ज़लें :
1.ग़ज़ल: ख़ुर्शीदुल हसन नैय्यर
चमन में जो बहार है गुलों पे जो निखार है
तेरी निगाह का असर तेरे लबों का प्यार है
भिगो गई है जो फ़ज़ा हवा जो मुश्कबार है
ये ज़ुल्फ़े-यार की महक वो चश्म-ए-आबदार है
उफ़क़ पे जो धनक चढ़ी शफ़क़ का जो सिंगार है
यही है ओढ़नी का रंग, यही जो हुस्न-ए-यार है
न नींद आँख में रही न दिल पे इख़्तियार है
मेरे लिए भी क्या कोई उदास बेक़रार है
झुकी नज़र ख़मोश लब अदाओं में शुमार है
इन्हीं अदा-ए-दिलबरी पे जान-ओ-दिल निसार है
किसी से इश्क़ जब हुआ तो हम पे बात ये खुली
जुनूँ के बाद भी कोई मकाँ कोई दयार है
सुना कि बज़्म में तेरी मेरा भी ज़िक्र आएगा
तो ख़ुश हुआ कि दोस्तों में मेरा भी शुमार है
‘हसन’ की है ये आरज़ू कि उनसे जा कहे कोई
तेरी अदा पे जाने मन ग़ज़ल का इन्हेसार है
2.ग़ज़ल: सतपाल खयाल
किसी को इस जहाँ मे क्या मेरा भी इंतज़ार है !
मेरे लिए भी क्या कोई उदास बेक़रार है.
ये रौनकें , ये महिफ़िलें ये मेले इस जहान के
ए ज़िंदगी ! खुदा का भी तुझी से कारोबार है.
उसी ने डाले मुश्किलों मे मेरे जानो-दिल मगर
उसी पे जाँ निसार है उसी पे दिल निसार है.
तुमीं को हमने पा लिया , तुमीं को हमने खो दिया
तू ही हमारी जीत है, तू ही हमारी हार है
यही सवाल आज तक मैं खुद से पूछता रहा
मेरे लिए भी क्या कोई उदास बेक़रार है.
हमारे हिस्से मे सदा शिकस्त ही रही ख्याल
मुकद्दरों के खेल इनपे किसका इख्तियार है.
द्विज जी के आशिर्वाद से ये तरही आयोजन सफ़ल रहा और मै सब शायरों का तहे-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ कि उन्होंने अपने कलाम हमे भेजे.अगला तरही मिसरा जल्द दिया जायेगा.
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9 comments:
न नींद आँख में रही न दिल पे इख़्तियार है
मेरे लिए भी क्या कोई उदास बेक़रार है
बहूत ही लाजवाब और सच बात कही है.......
तुमीं को हमने पा लिया , तुमीं को हमने खो दिया
तू ही हमारी जीत है, तू ही हमारी हार है
ये जिंदगी भी तो अक्सर khone paane, हारने और जीतने में ही बीत जाती है...............
सतपाल जी
आपको बहुत बहुत बधाई हो इस सफल ayojan की..........gazal के prasaar और nikhaar के लिए bahot mehnat का काम आप कर रहे हैं...................मेरी shubh kaamnayen है आपको
BAHOT BAHOT BADHAAYE IS SAFAL AAYOJAN KE LIYE SATPAAL JI...DHERO BADHAAYEE AAPKO....
ARSH
Bhai Satpal ji,
tarahi ghazal ke is doosare safal aayojan ke liye bahut bahut badhai sweekaren. sabhi shayaron ki behad umda ghazalen dekar apne aanand la diya.apki bhi bahut sunder ghazal hai sabhi se hatkar.
usi ne daale mushkilon men mere jano dil magar,
usi pe jan nisar hai usi pe dil nisar hain.
bahut khoob punah badhai.
Hasan ji - bahut khoob.
Poori Ghazal bahut achchi lagi.
किसी से इश्क़ जब हुआ तो हम पे बात ये खुली
जुनूँ के बाद भी कोई मकाँ कोई दयार है
God bless
RC
SABHEE KE SHERON MEIN
NIKHAAR PAR AJAB NIKHAAR HAI
CHAMAN MEIN JIS TARAH
BAHAAR PAR AJAB BAHAAR HAI
वाह,,,
शानदार,,,,
par अगला मिसरा ऐसा दीजियेगा जो कभी सूना न हो,,,
कम से कम उसका फिल्म में तो प्रयोग ना हुआ हो,,,,,
शायद इसी लिए उमराव जान की गजल मुश्किल लगी थी,,,,
नैय्यर साब के इन दो मिस्रों ने हाय-तौबा मचा दी है "जुनूँ के बाद भी कोई मकाँ कोई दयार है" और
"उफ़क़ पे जो धनक चढ़ी शफ़क़ का जो सिंगार है"
वाह !
और सतपाल जी आपके इस शेर पे तो करोड़ों दाद
"उसी ने डाले मुश्किलों मे मेरे जानो-दिल मगर
उसी पे जाँ निसार है उसी पे दिल निसार है"
एक और शानदार मुशायरा के आयोजन के लिये शस्त्रो बधाई...
अगले मिस्रे का इंतजार!
muhtaram Satpal jee
adaab
ek shaandaar mushaae're ke inaqaad peh aap ko bahut bahut mubaarak baad pesh kartaa hooN. ek se ek GhazleN doston kee paRhne ko milee tamaam kee khidmat meiN daad pesh hai or saath hee tamaam shoa'rah kaa shukrguzaar bhee hooN jinko meree adnaa see koshish pasand aai,y.
Naiyer
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