Wednesday, June 3, 2009

दिल अगर फूल सा नहीं होता- दूसरी किश्त









मिसरा-ए-तरह "दिल अगर फूल सा नहीं होता" पर पाँच और ग़ज़लें.द्विज जी के आशीर्वाद से ही ये काम सफल हो रहा है.

नवनीत शर्मा की ग़ज़ल

उनसे गर राबिता नहीं होता
दरमियाँ फ़ासला नहीं होता

मैं भी ख़ुद से ख़फ़ा नहीं होता
तू जो मुझसे जुदा नहीं होता

फिर कोई हादसा नहीं होता
तू जो ख़ुद से ख़फ़ा नहीं होता

तू जो मुझसे मिला नहीं होता
मैं भी खुद को दिखा नहीं होता

सच से गर वास्‍ता नहीं होता
कुछ भी तो ख़्वाब-सा नहीं होता

ठान ही लें जो घर से चलने की
फिर कहाँ रास्‍ता नहीं होता

रोज़ कुछ टूटता है अंदर का
हाँ मगर, शोर-सा नहीं होता

सच की तालीम पा तो लें मौला
क्‍या करें दाख़िला नहीं होता

उनसे कहने को है बहुत लेकिन
उनसे बस सामना नहीं होता

याद रहते हैं हक़ उन्हें अपने
फ़र्ज़ जिनसे अदा नहीं होता

रोज़ मरते हैं ख्‍वाब सीने में
अब कोई ख़ौफ़-सा नहीं होता

अजन‍बीयत ने वहम साफ़ किया
आशना, आशना नहीं होता

ज़ख़्म इतना बड़ा नहीं फिर भी
दर्द दिल का हवा नहीं होता

ख़ुद को खोकर मिली समंदर से
ये नदी को गिला नहीं होता

लोग मिलते हैं, फिर बिछड़ते हैं
हर कोई एक सा नहीं होता

दुश्‍मनी खुद से गर नहीं होती
कोई जंगल कटा नहीं होता

याद जिंदा थी याद कायम है
खत्‍म ये सिलसिला नहीं होता

आंख होती है गर गिलास नहीं
अब कोई पारसा नहीं होता

इश्‍क की राह पे चला ही नहीं
पैर जो आबला नहीं होता

हाय दिल को भी ये खबर होती
दर्द होता है या नहीं होता

छाछ पीने से खौफ क्‍यों खाता
दूध से गर जला नहीं होता

साथ मेरे वही हुआ अक्‍सर
जो भी पहले नहीं हुआ होता

हां, तुझे भूलना ही अच्‍छा है
क्‍या करें हौसला नहीं होता

सुबह आती है लौट जाती है
देर तक जागना नहीं होता

सोच का फर्क है यकीन करो
वक्‍त कोई बुरा नहीं होता

काम आता है एक दूजे के
आदमी कब खुदा नहीं होता

तुम भी बदले अगर नहीं होते
मैं भी कुछ और सा नहीं होता

बात यह और है न देख सको
वरना आंखों में क्‍या नहीं होता

मीर-मोमिन न कह गए होते
हमने भी कुछ लिखा नहीं होता

साफ सुन लो यकीन मत करना
हमसे वादा वफा नहीं होता

ख्‍वाब सारे ही जब से टूट गए
अब कोई रतजगा नहीं होता

आदतन लोग अब सिहरते हैं
गो कोई हादसा नहीं होता

बात मज़लूम की सुने कोई
अब यही मोजज़ा नहीं होता

तुम जो ग़ैरों के काम आते हो
तुम से अपना भला नहीं होता?

चल मेरे यार ज़रा- सा हँस लें
आज कल कुछ पता नहीं होता

हर अदावत की धूप सह लेता
'दिल अगर फूल सा नहीं होता'

वो है अपना या गैर का ‘नवनीत’
हमसे ये फ़ैसला नहीं होता



योगेन्द्र मौदगिल की ग़ज़ल

जब तलक सिरफिरा नहीं होता
आजकल फैसला नहीं होता

बात सच्ची बताने को अक्सर
घर में भी हौसला नहीं होता

सपने साकार किस तरह होते
तू अगर सोचता नहीं होता

सच तो सच ही रहेगा ऐ यारों
झूठ में हौसला नहीं होता

लूट लेते हैं अपने-अपनों को
आज दुनिया में क्या नहीं होता

शुद्ध हों मन की भावनाएं अगर
कोई किस्सा बुरा नहीं होता



प्रेमचंद सहजवाला की ग़ज़ल

हुस्न गर नारसा नहीं होता
इश्क तब सरफिरा नहीं होता

तू अगर बेवफा नहीं होता
मैं कभी ग़मज़दा नहीं होता

हम भी रिन्दों में हो गए शामिल
जश्न इस से बड़ा नहीं होता

इतने मायूस हम हुए हैं क्यों
क्या कभी सानिहा नहीं होता

ये तो अक्सर हुआ है हुस्न के साथ
तीर खींचा हुआ नहीं होता

अच्छी शक्लें अगर नहीं होती
क्या कहीं आईना नहीं होता

इश्क करना मुहाल होता क्या
दिल अगर फूल सा नहीं होता

गर्दिशों से भरे हों जब अय्याम
तब कोई हमनवा नहीं होता



गौतम राजरिषी की ग़ज़ल

मैं खुदा से खफ़ा नहीं होता
तू जो मुझसे जुदा नहीं होता

ये जो कंधे नहीं तुझे मिलते
तो तू इतना बड़ा नहीं होता

सच की खातिर न खोलता मुँह गर
सर ये मेरा कटा नहीं होता

कैसे काँटों से हम निभाते फिर
दिल अगर फूल-सा नहीं होता

चाँद मिलता न राह में उस रोज
इश्क का हादसा नहीं होता

पूछते रहते हाल-चाल अगर
फासला यूँ बढ़ा नहीं होता

छेड़ते तुम न गर निगाहों से
मन मेरा मनचला नहीं होता

होती हर शै पे मिल्कियत कैसे
तू मेरा गर हुआ नहीं होता

दूर रखता हूँ आइने को क्यूं
खुद से ही सामना नहीं होता

कहती है माँ, कहूँ मैं सच हरदम
क्या करूँ, हौसला नहीं होता



मनु 'बे-तखल्लुस'की ग़ज़ल

तू जो सबसे जुदा नहीं होता,
तुझपे दिल आशना नहीं होता,

कैसे होती कलाम में खुशबू,
दिल अगर फूल सा नहीं होता

मेरी बेचैन धडकनों से बता,
कब तेरा वास्ता नहीं होता

खामुशी के मकाम पर कुछ भी
अनकहा, अनसुना नहीं होता

आरजू और डगमगाती है
जब तेरा आसरा नहीं होता

आजमाइश जो तू नहीं करता
इम्तेहान ये कडा नहीं होता

हो खुदा से बड़ा वले इंसां
आदमी से बड़ा नहीं होता

ज़ख्म देखे हैं हर तरह भरकर
पर कोई फायदा नही होता

राह चलतों को राजदार न कर
कुछ किसी का पता नहीं होता,

जिसका खाना खराब तू करदे
उसका फिर कुछ बुरा नहीं होता

मय को ऐसे बिखेर मत जाहिद
यूं किसी का भला नहीं होता

इक तराजू में तौल मत सबको
हर कोई एक सा नही होता

मेरा सर धूप से बचाने को
अब वो आँचल रवा नहीं होता

रात होती है दिन निकलता है
और तो कुछ नया नहीं होता

हम कहाँ, कब, कयाम कर बैठें
हम को अक्सर पता नहीं होता

सोचता हूँ कि काश हव्वा ने
इल्म का फल चखा नहीं होता

मुझ पे वो एतबार कर लेता
जो मैं इतना खरा नहीं होता

होता कुछ और, तेरी राह पे जो
'बे-तखल्लुस' गया नहीं होता

15 comments:

रंजना said...

वाह सारी रचनाएँ एक से बढ़कर एक....एक शेर ऐसा नहीं मिला जिसे कमतर कहा जा सके....

सभी तो दिग्गज लिक्खाड़ हैं, आखिर कोई कमी मिले भी तो कैसे....

बहुत बहुत सुन्दर....वाह !!

दिगम्बर नासवा said...

Lajawaab...........ek se badh kar ek gazal.Goutam ji, Manu ji aur bhi sab ek se padh kar ek shayer.... kuch kahnaa sooraj ko roushni dikhaana hogaa.....

bahut bahut bahut sundar

सतपाल ख़याल said...

काबिले-तारीफ़ अशआर:
नवनीत शर्मा
रोज़ कुछ टूटता है अंदर का
हाँ मगर, शोर-सा नहीं होता

रोज़ मरते हैं ख्‍वाब सीने में
अब कोई ख़ौफ़-सा नहीं होता
वाह वा !

सोच का फर्क है यकीन करो
वक्‍त कोई बुरा नहीं होता
वाह !

साफ सुन लो यकीन मत करना
हमसे वादा वफा नहीं होता
क्या अदा है..

चल मेरे यार ज़रा- सा हँस लें
आज कल कुछ पता नहीं होता
बहुत खूब!!
**
योगेन्द्र मौदगिल :
बात सच्ची बताने को अक्सर
घर में भी हौसला नहीं होता
बहुत खूब!!
**
प्रेमचंद सहजवाला :
गर्दिशों से भरे हों जब अय्याम
तब कोई हमनवा नहीं होता
**
गौतम राजरिषी :
पूछते रहते हाल-चाल अगर
फासला यूँ बढ़ा नहीं होता
क्या बात है !! वाह!!

मनु:
सोचता हूँ कि काश हव्वा ने
इल्म का फल चखा नहीं होता
नायाब शे’र..
रात होती है दिन निकलता है
और तो कुछ नया नहीं होता
बिल्कुल वाज़िब बात..बहुत खूब!!

सब शायरों का आभार और ऐसे ही महफिले सजती रहें यही दुआ है.

चल मेरे यार ज़रा- सा हँस लें
आज कल कुछ पता नहीं होता
यही सच है और यही दुआ कि सब हंसते-खेलते रहें

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

तारीफ़ में क्या कहूँ...शब्दों का अकाल पड़ गया है जेहन में...ये बहर और ये खूबसूरत शेर....वाह...वाह...वाह......
सतपाल जी,
एक प्रयास मैनें भी किया है ग़ज़ल पर.."समकालीन ग़ज़ल"के नाम से...

PRAN SHARMA said...

JANAAB NAVNEET SHARMA,JANAAB GAUTAM
RAJRISHI,JANAAB MANU ,JANAAB PREM-
CHAND AUR JANAAB YOGENDRA MAUDGIL
SABNE APNEE -APNE KHOOBSOORAT
QALAAM SE MAHFIL KO CHAAR CHAAND
LAGAA DIYE HAIN.SABKO MEREE BADHAAEE.

निर्मला कपिला said...

वाह सभी गज़लें एक से बढ कर एक हैं बहुत बहुत बधाई

Yogesh Verma Swapn said...

BEHAD HASEEN MEHFIL KE SHAANDAAR SITAARE AUR UN GAZALROOPI SITARON KI CHAMAK SHAANDAAR/ LAJAWAAB.

BADHAAI SWEEKAREN.

RAJNISH PARIHAR said...

जी, किन शब्दों में तारीफ करूँ ...बहुत ही बेहतरीन रचनाएँ है ये...ग़ज़ब..की ..अभिव्यक्ति!!!!

manu said...

सतपाल भाई ने क्या सही विश्ल्श्लेशन किया है,,,
इन सब के अलावा मौदगिल साहब का मतला भी जान निकाल रहा है,,
क्या बात है,,जब तलक सिरफिरा नहीं होता/ आजकल फैसला नहीं होता,,,,,क्या अदा है कहने की,,,
साफ़ सुन लो यकीन मत करना/ हम से वादा वफ़ा नहीं होता,,,,,,
बेहद खूबसूरत,,,,
हम भी रिन्दों में हो गए शामिल
जश्न इस से बड़ा नहीं होता

इतने मायूस हम हुए हैं क्यों
क्या कभी सानिहा नहीं होता
वाह प्रेम जी,,,,

और मेजर साहिब,,,,यूं तो पूरी ही गजल,,,
पर ये आखिरी के सात शेर,,,,
आजाद शेर होते हुए भी जाने क्यूं,,,,एक दूजे से जुड़े हुए कुछ ख़ास ही किस्सा कह रहे हैं.....
dear मेजर,,,,,,,,,!!!!!!!!!!!!!!!!!!
पूछते रहते हाल-चाल अगर
फासला 'यूं' बढा नहीं होता,,,,,
बस इतना ही ..क्यूंकि..
खामुशी के मकाम पर कुछ भी
अनकहा, अनसुना नहीं होता..और मेरी बेचैन धडकनों से बता,,,,?
कब तेरा वास्ता नहीं होता,,,,????????

दिल दुखता है... said...

सारी रचनायें एक से बढकर एक है.... गजब की लेखनी है आपकी...

neeraj1950 said...

1
ठान ही लें जो घर से चलने की
फिर कहाँ रास्‍ता नहीं होता

2
बात सच्ची बताने को अक्सर
घर में भी हौसला नहीं होता

3
अच्छी शक्लें अगर नहीं होती
क्या कहीं आईना नहीं होता

4
ये जो कंधे नहीं तुझे मिलते
तो तू इतना बड़ा नहीं होता

5
राह चलतों को राजदार न कर
कुछ किसी का पता नहीं होता

एक से बढ़कर एक शेरों से सजी ये ग़ज़लें लाजवाब हैं...सारे शायरों ने अपने कलाम का खूब जलवा दिखाया है...एक बेहद कामयाब तरही मुशायरे के लिए सतपाल जी आपको बहुत बहुत बधाई...नवनीत जी से शिकायत है की इसबार वो कुछ ज्यादा ही लम्बी ग़ज़ल लिख गए...:))

रात का इंतज़ार कौन करे
आजकल दिन में क्या नहीं होता

नीरज

"अर्श" said...

वाह तरही खूब जमी हुई है क्या महफ़िल सजी है... हर तरफ शे'र ही शे'र... और वो भी नायाब...
बड़े भी नवनीत जी की ग़ज़लों के बारे में क्या कही जाये....हुस्ने शे'र कहने में तो माहिर हैं ये ...
हर शे'र पे दिल खोल के तालियाँ....

और वहीँ मौदगिल साहब के ग़ज़ल का ये शे'र तो काबिले दाद है ...
लूट लेते हैं अपने-अपनों को
आज दुनिया में क्या नहीं होता..

प्रेमचंद साहिब के मतले ने ही कहर बरपा दिया और हम ढेर होगये...और कुछ कहने लायक नहीं रहने दिया...

और गुरु भाई गौतम जी के इस शे'र पे तो खड़े होकर दाद दी जानी चाहिए... जो भरसक काबिले दाद है...

छेड़ते तुम न गर निगाहों से
मन मेरा मनचला नहीं होता..

इनके ही लहजे में ...उफ्फ्फ्फ्फ्फ...

और अब आये मेरे दिलेअजीजी शाईर दोस्त और भाई ... हुजुर तख्खालुस जी ...पहले तो इनके मतले ने ही मुझे चुरा लिया...
मगर इस शे'र पे क्या कहूँ मेरे दिल की बात इनको कहाँ से पता चल जाती है वो समाज नहीं आता ...
इस शे'र पे गौर करें....
मेरी बेचैन धडकनों से बता,
कब तेरा वास्ता नहीं होता..

कमाल कर देते है ये हमेशा ki तरह....
इस विशेष तरही पे ... सतपाल भाई जी का और मेरे बड़े भाई और गुरु सरीखे द्विज जी का आभार करना बिलकुल नहीं भूल सकता...


अर्श

गौतम राजऋषि said...

नवनीत जी की इतनी लंबी ग़ज़ल कि उफ़्फ़्फ़
इस शेर ने सबसे ज्यादा लुभाया "रोज़ कुछ टूटता है अंदर का/हाँ मगर, शोर-सा नहीं होता"
बहुत खूब !
और योगेन्द्र जी के आखिरी शेर ने मन मोह लिया "शुद्ध हों मन की भावनाएं अगर
कोई किस्सा बुरा नहीं होता"। क्या बात है, सर..!
प्रेमचंद साब के इस शेर ने ग़ालिब की याद दिला दी"ये तो अक्सर हुआ है हुस्न के साथ
तीर खींचा हुआ नहीं होता"...अहा!
और मनु जी के कुछ शेर तो हम फोन पर ही सुन कर दाद दे चुके थे..
"रात होती है दिन निकलता है
और तो कुछ नया नहीं होता"
इतने आसान सहज शब्दों में भी ये शेर सब पर भारी पड़ रहा है।

daanish said...

श्री ख़याल जी की मेहरबानी से
एक और नायाब तर`ही मुशायरे
के लुत्फ़ उठाने का मौक़ा मिला ......

हर ग़ज़ल अपनी कहानी आप कह रही है
सब की अपनी अपनी क़ैफ़ियत है...रवानी है.....

कुछ क़ाबिले-ज़िक्र अश`आर . . . .

रोज़ कुछ टूटता है अंदर का
हाँ मगर, शोर-सा नहीं होता

याद रहते हैं हक़ उन्हें अपने
फ़र्ज़ जिनसे अदा नहीं होता

जब तलक सिरफिरा नहीं होता
आजकल फैसला नहीं होता

सपने साकार किस तरह होते
तू अगर सोचता नहीं होता

हम भी रिन्दों में हो गए शामिल
जश्न इस से बड़ा नहीं होता

सच की खातिर न खोलता मुँह गर
सर ये मेरा कटा नहीं होता

होती हर शै पे मिल्कियत कैसे
तू मेरा गर हुआ नहीं होता

खामुशी के मकाम पर कुछ भी
अनकहा, अनसुना नहीं होता

राह चलतों को राजदार न कर
कुछ किसी का पता नहीं होता,


इसके इलावा भी सारे शेर क़ाबिले-दाद हैं
जनाब सतपाल जी और द्विज जी को जी भर के
मुबारकबाद और खाक़सार का सलाम ....

---मुफलिस---

Unknown said...

dhnya hai yah mahfil !
ghazalon ka teerth kar liya hum ne
BADHAI!