Monday, July 13, 2009
समीर कबीर की दो ग़ज़लें
समीर कबीर को शायरी विरासत मे मिली है. आप स्व: शाहिद कबीर के बेटे हैं. महज़ 34 साल की उम्र मे बहुत अच्छी ग़ज़लें कहते हैं और अक़्सर पत्र-पत्रिकाओं मे छपते रहते हैं. इनकी दो ग़ज़लें हाज़िर हैं.
एक
टूटा ये सिलसिला तो मुझे सोचना पड़ा
मिलकर हुए जुदा तो मुझे सोचना पड़ा
क्या-क्या शिकायतें न थी उस बदगुमान से
लेकिन वो जब मिला तो मुझे सोचना पड़ा
पहले तो *एतमाद हर एक हमसफ़र पे था
जब काफ़िला चला तो मुझे सोचना पड़ा
तय कर चुका था अब न पिऊँगा कभी मगर
जैसे ही दिन ढला तो मुझे सोचना पड़ा
क्या जाने कितने *रोज़नो-दर बे- चिराग़ थे
घर मे दिया जला तो मुझे सोचना पड़ा
जिस आदमी को कहते हैं शायद समीर लोग
उस शख़्स से मिला तो मुझे सोचना पड़ा
*एतमाद - भरोसा ,*रोज़नो-दर -छिद्र और दरवाज़े
बहरे-मज़ारे(मुज़ाहिफ़ शक्ल)
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईल फ़ाइलुन
221 2121 1221 2 12
दो
अजीब उससे भी रिश्ता है क्या किया जाए
वो सिर्फ़ ख्वाबों मे मिलता है क्या किया जाए
जहां-जहां तेरे मिलने का है गुमान वहां
न ज़िंदगी है न रस्ता है क्या किया जाए
ग़लत नहीं मुझे मरने का मशविरा उसका
वो मेरा दर्द समझता है क्या किया जाए
किसी पे अब किसी ग़म का असर नहीं होता
मगर ये दिल है कि दुखता है क्या किया जाए
कमी न की थी तवज़्ज़ों मे आपने लेकिन
हमारा ज़ख़्म ही गहरा है क्या किया जाए
बहरे-मजतस(मुज़ाहिफ़ शक्ल)
म'फ़ा'इ'लुन फ़'इ'लातुन म'फ़ा'इ'लुन फ़ा'लुन
1212 1122 1212 22/ 112
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14 comments:
अजीब उससे भी रिश्ता है क्या किया जाए
वो सिर्फ़ ख्वाबों मे मिलता है क्या किया जाए
जहां-जहां तेरे मिलने का है गुमान वहां
न ज़िंदगी है न रस्ता है क्या किया जाए
लाजवाब पूरी गज़ल ने की दिल को छू लिया समीर जी को बहुत बहुत बहुत बधाइ आपका भि शुक्रिया इतनी बदिया गज़ल से रुबरु करवाने के लिये आज पिछली गज़लें भी पढी और आपके चयन के लिये कह सकती हूं कि बहुत खूब पार्खी नज़र है आपकी
Dear Satpal ji ;
Adaab !
Thanks for giving me place to your nice web site
SAMEER kABIR
बहुत लाजवाब ग़ज़लें हैं
--
प्रेम अंधा होता है - वैज्ञानिक शोध
jaandar gazale hai ..........bahut badhiya
तय कर चुका था अब न पिऊँगा कभी मगर
जैसे ही दिन ढला तो मुझे सोचना पड़ा
ग़लत नहीं मुझे मरने का मशविरा उसका
वो मेरा दर्द समझता है क्या किया जाए
दोनों ही lajawaab हैं.......... sher इतने मस्त हैं की अपने आप bah रहे हो जैसे..........आपका भी शुक्रिया जो आपने इन से milwaaya............
जहां-जहां तेरे मिलने का है गुमान वहां
न ज़िंदगी है न रस्ता है क्या किया जाए
कमाल...महज़ एक शेर से ही मालूम पढता है की समीर साहेब किस पाए के ग़ज़लकार हैं...दोनों ग़ज़लें बहुत खूबसूरत हैं...जोरे कलम और जियादा....
नीरज
Wah Samir bhai ! Bohot khoob ....
क्या जाने कितने *रोज़नो-दर बे- चिराग़ थे
घर मे दिया जला तो मुझे सोचना पड़ा
इस एक शे'र पे समीर जी जो जीतनी दाद दी जाए वो कम है ... क्या बेबाकी से उन्होंने ये शे'र कहे होंगे कितनी आत्मीयता के साथ वाह कमाल की बात कही है उन्होंने इस एक शे'र में ही ... दोनों ही ग़ज़ल एक दुसरे पे भारी ... बहोत बहोत बधाई
अर्श
ग़लत नहीं मुझे मरने का मशविरा उसका
वो मेरा दर्द समझता है क्या किया जाए
एक और नायाब शायर से और उनकी बेमिसाल ग़ज़लों से परिचय करवाने का शुक्रिया सतपाल जी!
अजीब उससे भी रिश्ता है क्या किया जाए
वो सिर्फ़ ख्वाबों मे मिलता है क्या किया जाए
जहां-जहां तेरे मिलने का है गुमान वहां
न ज़िंदगी है न रस्ता है क्या किया जाए
बेहद ख़ूबसूरत अशआर
शाहिद कबीर जी की ग़ज़लें भी बहुत शानदार थी पता नहीं कितने मित्रों को बुला-बुला कर पढवाईं.
भाई सतपाल जी आपका चयन बहुत अच्छा है.
क्या-क्या शिकायतें न थी उस बदगुमान से
लेकिन वो जब मिला तो मुझे सोचना पड़ा
समीर साहब की ग़ज़लें पढ़ कर एक अजब सी
कैफियत तारी हुई है ....
लहजा चुस्त, दुरुस्त ...
अंदाज़ संजीदा ...
और बात कह लेने का सलीक़ा लाजवाब . . . .
मुबारकबाद . . .
---मुफलिस---
उमदा लिखी ग़ज़ल जो है, फ़िर दाद क्यूं न दूं
पढ़ कर मिला मजा ,तो मुझे सोचना पड़ा
क्या-क्या शिकायतें न थी उस बदगुमान से
लेकिन वो जब मिला तो मुझे सोचना पड़ा
wah sabhi sher nageene hai ek se badhkar ek
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