Saturday, August 22, 2009
दीक्षित दनकौरी की ग़ज़लें और परिचय
भुवनेश्वर प्रसाद दीक्षित उर्फ़ दीक्षित दनकौरी जी किसी परिचय के मोहताज़ नहीं है। आप "ग़ज़ल दुश्यंत के बाद" के तीन खंडो का संपादन कर चुके हैं जिसमें देश के नये-पुराने ग़ज़लकारों को शामिल किया गया है और चौथे खंड की तैयारी कर रहे हैं। दिल्ली में अध्यापक हैं और देश-विदेश के मुशायरों मे शिरकत करते रहते हैं। उनकी दो ग़ज़लें हम हाज़िर कर रहे हैं. इनका ग़ज़ल संग्रह "डूबते-वक्त" जल्द प्रकाशित हो रहा है.
एक
मुद्दआ वयान हो गया
सर लहू-लुहान हो गया।
कै़द से रिहाई क्या मिली
तंग आसमान हो गया।
तेरे सिर्फ़ इक वयान से
कोई बेजुबान हो गया।
छिन गया लो कागज़े-हयात
ख़त्म इम्तिहान हो गया।
रख गया गुलाब क़ब्र पर
कौन कद्रदान हो गया।
दो
आग सीने में दबाए रखिए
लब पे मुस्कान सजाए रखिए।
जिससे दब जाएँ कराहें घर की
कुछ न कुछ शोर मचाए रखिए।
गै़र मुमकिन है पहुँचना उन तक
उनकी यादों को बचाए रखिए।
जाग जाएगा तो हक़ मांगेगा
सोए इन्सां को सुलाए रखिए।
जुल्म की रात भी कट जाएगी
आस का दीप जलाए रखिए।
पता-
डी.डी.ए. फ्लैटस
७६, मानसरोवर पार्क
दिल्ली
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13 comments:
छिन गया लो कागज़े-हयात
ख़त्म इम्तिहान हो गया।
*****
जाग जाएगा तो हक़ मांगेगा
सोए इन्सां को सुलाए रखिए।
शुक्रिया सतपाल जी दीक्षित जी को पढने का मुदा दिया आपने...दोनों ग़ज़लें बहुत अच्छी हैं ऊपर वाले दोनों शेर अपने साथ लिए जा रहा हूँ...
नीरज
shaandaar gazlen.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।
जिससे दब जाएँ कराहें घर की
कुछ न कुछ शोर मचाए रखिए।
achchha sher hai.
बहुत बढिया गज़ल प्रेषित की हैं।आभार।
सतपाल जी नमस्कार,
दीक्षित जी के ग़ज़लों से रूबरू कराने के लिए किस तरह से आभार ब्यक्त करूँ समझ नहीं पा रहा... आपने जो एड्रेस दिया है वो मेरे घर के पास ही मगर कभी मिल नहीं पाया उम्मीद करता हूँ जल्द ही उनसे मुलाक़ात होगी... और फिर उनकी ग़ज़लों के एक बहाव में बहूँगा... बहोत ही खुबसूरत कही है इन्होने इनके काब्य संग्रह का बेशब्री से इंतज़ार करूँगा...
सलाम
अर्श
सतपाल जी
mai प्रस्तुत दोनों गजल का बहुत पुराना फैन हूँ ५ साल से इनको पढना होता रहा है
पुनः पढ़वाने के लिए धन्यवाद
एक निवेदन है की गजलकार का नाम दिक्षीत दनकौरी नहीं दीक्षित दनकौरी है कृपया पोस्ट में संशोधन करे
वीनस केसरी
behatareen gazlen padhane aur shayar se parichay karane ke liye aabhaar.
Wow, Bahut hi khoob gazal kahi hai,
I've added it to my collection
http://yogi-collection.blogspot.com/2009/08/blog-post_8438.html
सतपाल जी,
बहुत बहुत शुक्रिया, दीक्षित जी को पढवाने के लिए.
दोनों गज़लें बहुत उम्दा हैं, कुछ शेर के तो क्या कहने......
जैसे
तेरे सिर्फ़ इक वयान से
कोई बेजुबान हो गया।
जाग जाएगा तो हक़ मांगेगा
सोए इन्सां को सुलाए रखिए।
दनकौरी जी एक बेहद मंजे हुए शायर हैं. मुशायरों में उनकी गज़लें सुनकर अच्छा लगता है. इन दो गज़लों में निम्न दो शेर मन को गहराइयों तक छू गए:
रख गया गुलाब क़ब्र पर
कौन कद्रदान हो गया।
और
जाग जाएगा तो हक़ मांगेगा
सोए इन्सां को सुलाए रखिए।
दनकौरी जी की पुस्तक का बेताबी से इंतज़ार रहेगा.
प्रेमचंद सहजवाला
Dixit ji ko yahan laane ke liye aapka hardik shukriya..
कै़द से रिहाई क्या मिली
तंग आसमान हो गया।
जिससे दब जाएँ कराहें घर की
कुछ न कुछ शोर मचाए रखिए।
जाग जाएगा तो हक़ मांगेगा
सोए इन्सां को सुलाए रखिए।
ऐसे नायाब और पुख्ता अश`आर कहने वाले
शाइर को सलाम कहता हूँ .
दनकोरी जी की शायरी हमेशा-हमेशा से ही मुझे पसंद रही है .
आप अपने सुखन में हमेशा जिम्मेदार ग़ज़ल की तर्जुमानी करते हैं .
एक सुखन-फ़हम , शेरो-अदब के मुहाफिज़ ,
और एक बहुत ही नेक दिल इंसान ....
ये सब खूबियाँ दनकोरी जी में मौजूद हैं
नयी ग़ज़ल को जो लबो-लहजा आपने बख्शा है ...
वो काबिले-ज़िक्र तो है ही,,,,काबिले-कद्र भी है .
आज के अवाम की शायरी करने वाले इस शाइस्ता इंसान को एक बार फिर से मेरा नमन
---मुफलिस---
बहुत बेहतरीन गजल
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