Saturday, September 12, 2009
नज़र में सभी की खु़दा कर चले -अंतिम किश्त
कभी रात रोके अगर रास्ता
सितारों की चूनर बिछा कर चले
पुर्णिमा जी का मैं शुक्रगुज़ार हूँ कि "आज की ग़ज़ल" के लिए उन्होंने नये ब्लाग हैडर तैयार किए। सब शायरों का तहे-दिल से शुक्रिया जिन्होंने इस तरही को सफल बनाया और अपने तमाम शायर दोस्तों का मुफ़लिस जी का,मनु का,गौतम जी का,नीरज जी का, पुर्णिमा जी का और नए शायर तिलक राज कपूर और आशीष राज हंस का और बर्की साहब का और अपने गुरू जी श्री द्विजेन्द्र द्विज जिनके आशीर्वाद से ये सब हो रहा है। तो लीजिए अंतिम किश्त हाज़िर है-
पूर्णिमा वर्मन
अँधेरे में रस्ता बना कर चले
दिये हौसलों के जला कर चले
वे अपनो की यादों में रोए नहीं
वतन को ही अपना बना कर चले
कभी रात रोके अगर रास्ता
सितारों की चूनर बिछा कर चले
खड़े सरहदों पे निडर पहरुए
वो दिन-रात सब कुछ भुला कर चले
जिए ऐसे माटी के पुतले में वो
नज़र में सभी की खु़दा कर चले
सतपाल ख़याल
तुझे ज़िंदगी यूँ बिता कर चले
कि पलकों से अंगार उठा कर चले
चले जब भी तनहा अँधेरे में हम
तो मुट्ठी मे जुगनू छुपा कर चले
ग़ज़ल की भला क्या करूं सिफ़त मैं
ये क़ूज़े में दरिया उठा कर चले
हरिक मोड़ पर थी बदी दोस्तो
चले जब भी दामन बचा कर चले
कभी दोस्ती और कभी दुशमनी
निभी हमसे जितनी निभा कर चले
चले कर्ज़ लेकर कई सर पे हम
कई कर्ज़ थे जो अदा कर चले
हमीं थे जो इक *दिलशिकन यार को
नज़र में सभी की खु़दा कर चले
हुई दुशमनी की "खयाल" इंतिहा
मेरी खाक भी तुम उड़ा कर चले
*दिलशिकन-दिल तोड़ने वाला
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
-
ग़ज़ल लेखन के बारे में आनलाइन किताबें - ग़ज़ल की बाबत > https://amzn.to/3rjnyGk बातें ग़ज़ल की > https://amzn.to/3pyuoY3 ग़ज़...
-
स्व : श्री प्राण शर्मा जी को याद करते हुए आज उनके लिखे आलेख को आपके लिए पब्लिश कर रहा हूँ | वो ब्लागिंग का एक दौर था जब स्व : श्री महावीर प...
-
आज हम ग़ज़ल की बहरों को लेकर चर्चा आरम्भ कर रहे हैं | आपके प्रश्नों का स्वागत है | आठ बेसिक अरकान: फ़ा-इ-ला-तुन (2-1-2-2) मु-त-फ़ा-इ-लुन(...
14 comments:
वे अपनो की यादों में रोए नहीं
वतन को ही अपना बना कर चले
कभी रात रोके अगर रास्ता
सितारों की चूनर बिछा कर चले
पूर्णिमा बर्मन
***
चले जब भी तनहा अँधेरे में हम
तो मुट्ठी मे जुगनू छुपा कर चले
चले कर्ज़ लेकर कई सर पे हम
कई कर्ज़ थे जो अदा कर चले
सतपाल.
जिस मुशायरे में ऐसे कमाल के शेर कहे जाएँ उसने समझिये कामयाबी की आखरी मंजिल को छू लिया है...वाह...सारे के सारे फनकारों ने अपने तजुर्बात का निचोड़ गूँथ डाला है अपनी अपनी ग़ज़लों में...इस शानदार मुशायरे के लिए सतपाल जी आपकी जितनी तारीफ की जाये कम है..खुश रहें..
नीरज
इस तरही का सफल आयोजन के लिए सतपाल जी आपका बहुत बहुत बधाई और आभार , आखिरी किश्त में और भी गज़लें निखर कर आयी है पूर्णिमा जी की गज़लों के बारे में क्या कही जाए जो शे'र आपने कोट किया है वो तो लाजवाब है क्या उम्दा सोच है इसमें.. और आपके शे'र सुभानाल्लाह ... दिल से करोडो बधाई ...
अर्श
पूर्णिमा वर्मन
अँधेरे में रस्ता बना कर चले
दिये हौसलों के जला कर चले
सतपाल ख़याल
कभी दोस्ती और कभी दुशमनी
निभी हमसे जितनी निभा कर चले
अछा ही किया क ऐसे नायाब शेरों को आपने
मुशायरे के मक्ते के लिया महफूज़ रख छोडा था
आप की म्हणत हमेशा की तरह इस बार भी
कामयाब रही है .....बधाई
---मुफलिस---
हैँ दोनोँ ही ग़ज़ले बहत दिल नशीँ
सभी रंग अपना दिखा कर चले
वह होँ पूर्णिमा या कि सतपाल होँ
सभी अपना सिक्का जमा कर चले
यह सतपाल के है हुनर का कमाल
जो रंग-ए-तग़ज़्ज़ुल दिखा कर चले
अहमद अली बर्क़ी आज़मी
behatareen khazana. badhaai, aabhaar.
कभी दोस्ती और कभी दुशमनी
निभी हमसे जितनी निभा कर चले
चले कर्ज़ लेकर कई सर पे हम
कई कर्ज़ थे जो अदा कर चले
laajawaab she'r...
di ke kareeb se gujarte huye...
aur..
कभी रात रोके अगर रास्ता
सितारों की चूनर बिछा कर चले
satpal
ग़ज़ल की भला क्या करूं सिफ़त मैं
ये क़ूज़े में दरिया उठा कर चले
Poornima ji
कभी रात रोके अगर रास्ता
सितारों की चूनर बिछा कर चले
nayaab sher !!!
Devi Nangrani
namaste aur aadaab!
donoN ghazleN achchhee haiN. meree daad qabool keejiye.
कभी रात रोके अगर रास्ता
सितारों की चूनर बिछा कर चले
maiN sher ke mafhoom bilkul samajh naheeN paayaa. is kam-fehmee ke liye mazaarat khwaah huN.
kyaa darj sher pichhle sher ke saath qitaa-band hai?
raat kiskaa rastah rok rahee hai?
avval to raah meN chhadar bichhaa kar chalne se kyaa maanee hai aur yeh rastah roke jaane kaa solution kaise hai?
aap kuchh raushanee Daale to mamnoon rahungaa.
shukriyaa!
तुझे ज़िंदगी यूँ बिता कर चले
कि पलकों से अंगार उठा कर चले
matlaa bahut pasand aayaa. daad qabool keejiye!
-Dheeraj Ameta "dheer"
खड़ा हूँ हमेशा से बन के रदीफ़
वो खुद को मगर काफ़िया कर चले - गौतम जी
कोई उसका इनआम दे या न दे
जो था फ़र्ज़ अपना अदा कर चले - बर्की साहब
जो काँटों से उलझा किये उम्र भर
वो फूलों से दामन बचाकर चले - देवी जी
कभी रात रोके अगर रास्ता
सितारों की चूनर बिछा कर चले - पूर्णिमा जी
चले जब भी तनहा अँधेरे में हम
तो मुट्ठी मे जुगनू छुपा कर चले - सतपाल जी
सतपाल साहब यकीन मानिए, ऐसे लाजवाब शेरों से सजे इस मुशायरे ने मेरा दिन बना दिया! मैं तमाम शायरों का शुक्रगुजार हूँ जिन्होंने इस तरही मुश्यारे को अपनी कलम का रंग दिया! बस खुदा से यही दुआ है की सफ़र जारी रहे.... आमीन!!
KYA BAAT HAI ......HAR EK PANKTI LAZBAAW ......BADHAYI
कभी रात रोके अगर रास्ता
सितारों की चूनर बिछा कर चले
aadaab dheer saaheb!
जैसा मुझे लगता है कि ये शे’र पिछले शे’र के साथ किता-बंद नहीं है और इसकी अगर व्याख्या करूँ तो-
कि रात कभी अगर रास्ता रोके तो हम सितारों की चूनर यानि ख्वाबों -ख्यालों की चूनर बिछा कर चलते हैं जिससे अँधेरे का अहसास नहीं होता और जब मिसरे के अंत मे "चले" आया तो इससे साफ़ है कि हम/शायर चले..बाकी over to muflis ji and all readers...
Purnima jee aur Satpaal jee kee ghazloN ne mushaiyre ko naye aayaam diye hain.
badhaai
Tejendra Sharma
पूर्णिमा जी सतपाल जी के लाजवाब शेरों के साथ एक और शानदार तरही मुशायरे का समापन...अहा!
धीर साब का डूब कर पढ़ना और सतपाल साब की व्याख्याय ने मन मोह लिया है।
तुझे ज़िंदगी यूँ बिता कर चले
कि पलकों से अंगार उठा कर चले
bahut hi nayaab Bunaawat hai
Devi nangrani
Post a Comment