
इस बार का तरही मिसरा है-
"तुझे ऐ ज़िन्दगी ! हम दूर से पहचान लेते हैं"
बहरे-हज़ज मसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन x 4
1222 x4
काफ़िया- पहचान, मान, जान आदि।
रदीफ़- लेते हैं।
ये मिसरा फ़िराक़ गोरखपुरी की मशहूर ग़ज़ल से लिया गया है।
ज़्यादा लंबी ग़ज़लें न भेजें और भेजने से पहले अच्छी तरह जाँच-परख लें। आप अपनी ग़ज़लें 20.10.2009 के बाद ही भेजें।पहली किश्त नवंबर के दूसरे हफ़्ते में प्रकाशित होगी।
1 comment:
परख लें, जांच लें, ग़ज़लें ,
न भेजें 'बीस' से पहले
चलो, हम आपका
इतना कहा भी मान लेते हैं
---muflis---
Post a Comment