Tuesday, March 16, 2010

गोपाल कृष्ण सक्सेना 'पंकज'- ग़जलें और परिचय














1934 में उरई (उ.प्र.) में जन्में गोपाल कृष्ण सक्सेना "पंकज" बहुत अच्छे शायर हैं। आपने अंग्रेजी में एम.ए. किया और सागर विश्वविधालय में अंग्रेजी साहित्य के प्राध्यापक रहे हैं। एक ग़ज़ल संग्रह "दीवार में दरार है" प्रकाशित हो चुका है। कल उनसे बात करके ग़ज़लें छापने की अनुमति ली। ग़ज़लें हाज़िर करने से पहले मैं इनके एक शे’र के बारे में बताना चाहता हूँ जिसने मुझे बहुत प्रभावित किया और ये एक बेमिसाल शे’र है-

फुटपाथों पर पड़ा हिमालय
टीलों के सम्मान हो गए


क्या बात है! फिर हिंदी में कही जाने वाली ग़ज़ल को लेकर इनका नज़रिया क़ाबिले-तारीफ़ है-

उर्दू की नर्म शाख पर रुद्राक्ष का फल है
सुन्दर को शिव बना रही हिंदी की ग़ज़ल है

ऐसा शायर दोनों भाषाओं कि किस तरह जीता है देखिए-

मुद्दतों से मयक़दे में बंद है
अब ग़ज़ल के जिस्म पर मट्टी लगे

बदलाव की बात भी है। ग़ज़ल को रिवायत से निकालने का हौसला भी है। गंगा-जमुनी तहज़ीब की रहनुमाई भी-

जुल्फ़ के झुरमट में बिंदिया आपकी
आदिवासी गाँव की बच्ची लगे

आज के दौर की त्रासदी भी-

पड़ोसी, पड़ोसी के घर तक न पहुँचा
सितारों से आगे जहाँ जा रहा है

ये सब बातें एक शायर को महानता की और लेके जाती हैं। लीजिए तीन ग़ज़लें मुलाहिज़ा कीजिए-

एक

शिव लगे , सुंदर लगे ,सच्ची लगे
बात कुछ ऐसी कहो अच्छी लगे

मुद्दतों से मयक़दे में बंद है
अब ग़ज़ल के जिस्म पर मट्टी लगे

याद माँ की उँगलियों की हर सुबह
बाल में फिरती हुई कंघी लगे

जुल्फ़ के झुरमट में बिंदिया आपकी
आदिवासी गाँव की बच्ची लगे

रक़्स करती देह उनकी ख़्वाब में
तैरती डल झील में कश्ती लगे

ज़िंदगी अपने समय के कुंभ में
भीड़ में खोई हुई लड़की लगे

जिस्म "पंकज" का हुआ खंडहर मगर
आँख में ब्रज भूमि की मस्ती लगे

रमल की मुज़ाहिफ़ शक्ल

दो

आप जब लाजवाब होते हैं
कितने हाज़िर जवाब होते हैं

जिनके घर रोटियां नहीं होतीं
उनके घर इन्क़लाब होते हैं

कुछ तो काँटे उन्हें चुभेंगे ही
जिनके घर में गुलाब होते हैं

पानी-पानी शराब होती है
आप जिस दिन शराब होते हैं

मौत के वक़्त एक लम्हें में
उम्र भर के हिसाब होते हैं

खफ़ीफ़ की मुज़ाहिफ़ शक्ल

तीन

बुझे दीयों के नाम हो गए
उजियाले बदनाम हो गए

चिड़ियों की नन्हीं चोंचों पर
चोरी के इल्ज़ाम हो गए

ढाई आखर पढ़ा न कोई
सौ-सौ पूर्ण विश्राम हो गए

वैसे तो ये ग़ज़ल चार फ़ेलुन की बहर है लेकिन इन बहरों में कई तरह की छूट ली जाती है। मसलन इस ग़ज़ल का मतला लघु से शुरू हो रहा है। जैसे हमने पहले भी मीर के मीटर को लेकर बात की थी (बेशक ये ग़ज़ल मीर के हिंदी मीटर में नहीं है), लेकिन फ़ेलुन की इस तरह की बहरों में, जो बहरे-मुतदारिक से भी मेल खाती हैं , शायर इनमें काफ़ी छूट लेते हैं। ऐसी छूट बड़े-बड़े शायरों ने भी ली हैं जैसे मीर के शे’र का मिसरा देखिए जो फ़’ऊल से शुरू होता है-

बहुत लिए तसबीह फिरे हम पहना है ज़ुन्नार बहुत

और फ़िराक़ का ये मिसरा देखें 22 को 2121 में रिपलेस कर रहा है।

लाख-लाख हम ज़ब्त करे हैं दिल है कि उमड़ावे है

और फ़िराक़ साहब के ये शे’र-

कभी बना दो हो सपनों को जलवों से रश्के-गुलज़ार
कभी रंगे-रुख बनकर तुम याद ही उड़ जाओ हो

बशीर साहब ने कैसे "आसमान" शब्द को फिट किया है-

आसमान के दोनों कोनों के आख़िर
एक सितारा तेरा है, इक मेरा है

एक महत्वपूर्ण लिंक जो मीर के मीटर के बारे में तफ़सील से बताता है-
http://www.columbia.edu/itc/mealac/pritchett/00garden/apparatus/txt_meters.html

लेकिन ये बात भी भी सच है कि इन छूटों से लय तो प्रभावित होती है लेकिन शायर चाहे तो ऐसा कर सकता है अगर और कोई सूरत न बची हो।

शायर का पता-

२५४ मोती निधि काम्पलेक्स, छिंदवाड़ा
मध्य प्रदेश
संपर्क-09926-54056

12 comments:

समय चक्र said...

सुन्दर प्रस्तुति ..

तिलक राज कपूर said...

मुद्दतों से मयक़दे में बंद है
अब ग़ज़ल के जिस्म पर मट्टी लगे
पानी-पानी शराब होती है
आप जिस दिन शराब होते हैं
और
चिड़ियों की नन्हीं चोंचों पर
चोरी के इल्ज़ाम हो गए
कहन सीखने वालों के लिये उदाहरण हैं।

तीसरी ग़ज़ल में काफिये का यह कोई नया प्रयोग है अथवा कुछ और?

‍मीटर को लेकर विवाद तो बहुत उठते हैं लेकिन मात्रिक गणना में दखिने वाले दोषों के हल भी मात्रिक गणना की बारीकियों में ही हैं।

Kavi Kulwant said...

bahut achcha..khoobsurat..

सतपाल ख़याल said...

आपने सही कहा कपूर जी ये मेरी पकड़ में नहीं आया फिलहाल ये दोनों शे’र निकाल रहा हूँ मैने उनको फोन किया था लेकिन वो सख़्त बीमार हैं और नागपुर में दाखिल हैं। हो सकता है कुछ और हो जिस किताब से मैने लिया उसमें ग़ल्त हो। ग़ल्ति के लिए मुआफ़ी चाहता हूँ।
यक़ीनन ये काफ़िए सही नहीं हैं।

फुटपाथों पर पड़ा हिमालय
टीलों के सम्मान हो गए

किसके आगे हाथ पसारें
इशवर तक कंगाल हो गए
ये मतले की बंदिश से अलग हैं।

बुझे दीयों के नाम हो गए
उजियाले बदनाम हो गए

सतपाल ख़याल said...

आप सब इस शायर की अच्छी सेहत के लिए प्रार्थना करें। ये हरिवंशराय बच्चन के शाग्रिद रह चुके हैं और बीमारी की वज़ह से आज नागपुर अस्पताल में दाखिल है।
भगवान इनको जल्द ठीक करदे और अच्छी सेहत बख्शे!
आमीन !!

daanish said...

ज़ुल्फ़ के झुरमुट में बिंदिया आपकी
आदिवासी गाँव की लडकी लगे

जिंदगी अपने समय के कुम्भ में
भीड़ में खोई हुई लडकी लगे

कहन के लिहाज़ से एक दम
नयी और अलग-सी बात...
पढने में भी अच्छी लगती है
ग़ज़ल कहने का इक अपनी तरह का
मुनफ़रिद और मुक्तलिफ़ अंदाज़....
कुछ भी हो.......
अपनी हाजिरी तो दर्ज करवाने में
बिलकुल कामयाब हैं जनाब 'पंकज' साहब

और.....
आपकी और जनाब तिलक राज जी की
हैरत भी बेजा नहीं
मुद`दआ ये तो है ही कि
आज़ादी किस हद तक भली !?!

खैर....
शुक्रिया ...
आपका....इस पेशकश के लिए
और कपूर साहब का...राहनुमाई के लिए

खुदावंद से दुआ है
कि शाईर मौसूफ़ को
जल्द-अज़-जल्द अच्छी सिहत अता फरमाएं ...
आमीन .

तिलक राज कपूर said...

तहे दिल से ईश्‍वर से प्रार्थना है कि आदरणीय गोपाल कृष्‍ण सक्‍सेना 'पंकज' शीघ्र स्‍वास्‍थ्‍य लाभ कर पुन: हमारे बीच उपस्थित हों।

"अर्श" said...

फूटपाथों पर पडा हिमालय
टीले के सम्मान हो गया ...
यकीं झकझोर के रख देने वाला शे'र है ... क्या खूब आपने भी ढूंढे है सतपाल ही ...
दूसरी ग़ज़ल का मतला ही इतना जबरदस्त है के कुछ कहे नहीं बन रहा है .... लम्बी उम्र बख्शे अल्लाह मियाँ इन्हें ...


अर्श

निर्मला कपिला said...

ितनी सुन्दर गज़लों को पढवाने के लिये शुक्रिया। ईश्‍वर से प्रार्थना है कि आदरणीय गोपाल कृष्‍ण सक्‍सेना 'पंकज'जी को शीघ्र स्‍वास्‍थ्‍य लाभ दे। धन्यवाद

chandrabhan bhardwaj said...

Bhai Satpal ji
Teenon hi ghazalen achchhi hain lekin teesari ghazal men matale ke hisab se kafiyon men dosh tha jo apne nikal hi diye hain. Baki sher thik hain. In sunder ghazalon ke prakashan ke liye Pankaj ji aur apko badhai.

kumar zahid said...

शिव लगे , सुंदर लगे ,सच्ची लगे
बात कुछ ऐसी कहो अच्छी लगे

मुद्दतों से मयक़दे में बंद है
अब ग़ज़ल के जिस्म पर मट्टी लगे

याद माँ की उँगलियों की हर सुबह
बाल में फिरती हुई कंघी लगे

जुल्फ़ के झुरमट में बिंदिया आपकी
आदिवासी गाँव की बच्ची लगे
ज़िंदगी अपने समय के कुंभ में
भीड़ में खोई हुई लड़की लगे

जिस्म "पंकज" का हुआ खंडहर मगर
आँख में ब्रज भूमि की मस्ती लगे


भाई सतपाल जी ,
गोपाल जी की ग़जलों के जो षेर बेहद असरकारी लगे वा ेमैंने चुन कर प्रस्तुत किए है। बेहद नये अंदाज में बड़े सरल तरीक़े से गोपाल साहब ने ग़ज़लें कहीं है।
शायद मैं पहले भी कह चुका हूं कि ग़ज़ल की ज़मीन पर आप बहुत खास काम कर रहे हैं।
नायाब और हसीन षायरों को एक जगह हाजिर कर रहे हैं हमारा ख्याल रख रहे हैं

सैकड़ों बधाइयां
गोपाल साहब के बिगड़े स्वास्थ्य को पढ़कर दुख हुआ। यह दुआ है कि वे जल्द से जल्द स्वस्थ होकर लौटें

Pawan Kumar said...

फुटपाथों पर पड़ा हिमालय
टीलों के सम्मान हो गए
KYA KAH DAALA.......KURBAAN HO GAYE HAM.