Sunday, May 23, 2010

छटी क़िस्त-कौन चला बनवास रे जोगी














छ्टी क़िस्त की तीन ग़ज़लें-

योगेन्द्र मौदगिल

तन का क्या विश्वास रे जोगी
तन तो मन का दास रे जोगी

भगवे में भगवान बसे हैं
जटा-जूट विन्यास रे जोगी

उर्मिल पूछ रही लछमन से
कौन दोष मम् खास रे जोगी

जाम-सुराही छूट गये सब
टूट गया अभ्यास रे जोगी

सूरज, चंदा, जुगनू, तारे
किसको किसकी आस रे जोगी

तितली, भंवरे, कोयल, खुशबू
किसको दुनिया रास रे जोगी

मंत्र मणि मंदिर मर्यादा
मन माया मधुमास रे जोगी

पाहुन कुत्ता जांच रहा है
कुत्ता पाहुन-बास रे जोगी

जे विध राखे राम-रमैय्या
सो विध खासमखास रे जोगी

गंगा गये सो गंगादासा
जमना-जमनादास रे जोगी

कूंए में गूंगी परछाई
जगत पे अट्टाहास रे जोगी

चप्पा-चप्पा मौन खड़ा है
कौन चला बनवास रे जोगी

मैच अभी है शेष ’मौदगिल’
अभी हुआ है टास रे जोगी

प्राण शर्मा

जीवन आया रास रे जोगी
मैं क्यों लूँ बनवास रे जोगी

इतनी उदासी अच्छी नहीं है
कुछ तो हो परिहास रे जोगी

सोच ज़रा ये भी ,मधुवन में
क्यों आये मधुमास रे जोगी

तुलसी, केशव, सूर कबीरा
सबके सब थे दास रे जोगी

जीवन के ये भी हिस्से हैं
सुख,दुःख,भोग-विलास रे जोगी

तू न बुरा माने तो पूछूँ
तुझमें क्या है ख़ास रे जोगी

हर कोई दिल को थामे है
कौन चला बनवास रे जोगी

गिरीश पंकज

किनसे रक्खें आस रे जोगी
टूटा हर विश्वास रे जोगी

पतझर से डरता है काहे
आयेगा मधुमास रे जोगी

जीत ले सबका दिल बढ़ कर के
बन जा खासमख़ास रे जोगी

रोती है ये सारी नगरी
कौन चला बनवास रे जोगी

तोते को सोने का पिंजरा
आता है क्यों रास रे जोगी

प्यार से मिट जाती है दूरी
आयें बैरी पास रे जोगी

मत रोना , होता आया है
सच का तो उपहास रे जोगी

ये तो प्रेम-पियाला पंकज
इसमें है बस प्यास रे जोगी

6 comments:

निर्झर'नीर said...

awaysome ....speechless

चैन सिंह शेखावत said...

निरंतर अच्छी ग़ज़लें आ रही हैं.
बेहद शुक्रिया.

तिलक राज कपूर said...

योगेन्द्र मौदगिल साहब के नये काफियों के प्रयोग, प्राण जी का जीवन अनुभव और पंकज जी की आज की परिस्थितियों पर विहंगम द्ष्टि ने आज की प्रस्‍तुति को एक नया स्‍तर दिया है।
पंकज जी आपके एक शेर पर तो आपसे पूर्व परिचय के बिना भी लड़ने का मूड बना लिया है मैनें और कहता हूँ कि:
हो चाहे सोने का, पिंजरा
किसको आया रास रे जोगी।

daanish said...

छठी किस्त में भी बहुत अच्छी गज़लें
पढने को मिली हैं .....
तन का क्या विश्वास रे जोगी
तन तो मन का दास रे जोगी
(य मोदगिल जी)
जीवन आया रस रे जोगी
मैं क्यूं लूं बनवास रे जोगी
(प्राण जी)
मत रोना, होता आया है
सच का तो उपहास रे जोगी
(गिरीश पंकज जी)
ये सभी शेर ख़ास तौर पर काबिल-ए-ज़िक्र हैं

संजय भास्‍कर said...

इन प्रेरणादायक पंक्तियों के लिए आभार

संजय भास्‍कर said...

सुंदर, सटीक और सधी हुई।